फ़ेसबुक कहे 'मैं हूं आईना तेरा'

फेसबुक लाईक्स

इंसान की नब्ज़ पहचानने में कंप्यूटर दोस्तों और परिजनों से ज़्यादा तेज़ हो सकता है.

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की एक टीम ने हज़ारों लोगों पर किए गए अध्ययन के बाद ये पता लगाया है.

अध्ययन में शामिल डॉक्टर यूयू वू और उनके सहयोगियों ने ख़ास कंप्यूटर सिस्टम की मदद से 70,520 फ़ेसबुक यूज़र्स से जानकारी इकट्ठी की.

वैसे तो कैम्ब्रिज और स्टैनफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ता पहले ही बता चुके हैं कि फ़ेसबुक <link type="page"><caption> 'लाइक्स'</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2014/11/141109_social_media_literature_sk.shtml" platform="highweb"/></link> से व्यक्ति की राजनीतिक प्रतिबद्धताओं, यौन रुझानों जैसी बेहद निजी बातों का पता चलता है.

फ़ेसबुक 'लाईक्स'

फेसबुक के लाईक्स यौन रुझानों और राजनीतिक प्रतिबद्धताओं के संकेत देते हैं.
इमेज कैप्शन, फेसबुक के लाईक्स यौन रुझानों और राजनीतिक प्रतिबद्धताओं के संकेत देते हैं.

मौजूदा अध्ययन में इससे भी एक क़दम आगे जाकर ये पता लगाने की कोशिश की गई है कि इंसान का चरित्र और व्यक्तित्व पहचानने में कौन आगे है, इंसान के क़रीबी दोस्त रिश्तेदार या मशीन?

इसके लिए अध्ययनकर्ताओं ने <link type="page"><caption> फ़ेसबुक</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2013/03/130306_facebook_global_india_da" platform="highweb"/></link> 'लाइक्स' के आधार पर कंप्यूटर का एक मॉडल तैयार किया जिसने इंसान की शख़्सियत के पांच ज़रूरी पहलुओं को खंगाल कर बताया कि वह भाई, बहन और कई जीवनसाथी से भी ज़्यादा जानकारी रखता है.

इन पांच ज़रूरी पहलू में लोकप्रियता, सच्चाई, खुलापन, तंत्रिका तंत्र और सामाजिकता है.

डिजिटल फ़ुटप्रिंट

फेसबुक लाईक्स, डिजिटल फुटप्रिंट्स

अमरीका की जानी मानी शोध पत्रिका 'प्रोसिडिंग ऑफ़ द नेशनल एकेडमी ऑफ़ साइंसेज़' यानी <link type="page"><caption> 'पीएनएएस'</caption><url href="http://www.pnas.org/?gclid=CPiNoaupkMMCFQwmjgodGEcAIQ" platform="highweb"/></link> में छपी रिपोर्ट के अनुसार 'डॉक्टर हू' के फ़ेसबुक फ़ैन्स शर्मीले पाए गए जबकि 'बिग ब्रदर' के प्रशंसक रूढ़िवादी विचार के.

कैम्ब्रिज विश्वविद्याल में पीएचडी स्टूडेंट और फ़ेसबुक में विज़िटिंग इंटर्न डॉ वू का मानना है कि आजकल लोग ऑनलाइन समय ज़्यादा बिताने लगे हैं जिससे कंप्यूटर को ये सहूलियत मिल गई है.

मनोविज्ञानी एलन रेडमैन का कहना है कि विज्ञापन कंपनियां हमारे बारे में जानने के लिए हमारे डिजिटल <link type="page"><caption> फ़ुटप्रिंट</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2013/08/130827_facebook_users_sks" platform="highweb"/></link> का इस्तेमाल कर रही हैं.

यही नहीं, नौकरी देने के पहले कंपनियां योग्य उम्मीदवार का पता लगाने के लिए लोगों के सोशल मीडिया अकाउंट खंगालने लगी हैं.

<bold>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए यहां <link type="page"><caption> क्लिक</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2013/03/130311_bbc_hindi_android_app_pn.shtml" platform="highweb"/></link> करें. आप हमें <link type="page"><caption> फ़ेसबुक</caption><url href="https://www.facebook.com/bbchindi" platform="highweb"/></link> और <link type="page"><caption> ट्विटर</caption><url href="https://twitter.com/BBCHindi" platform="highweb"/></link> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</bold>