महिलाओं का ख़तना कराने के फ़तवे पर शक

इराक़ी महिलाएं

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इराक़ के मोसुल शहर में चरमपंथी समूह- इस्लामिक स्टेट इन इराक़ एंड सीरिया (आईएसआईएस) के महिलाओं से संबंधित ख़तना कराने के फ़तवे की प्रमाणिकता पर शक ज़ाहिर हो रहा है.

संयुक्त राष्ट्र के एक शीर्ष अधिकारी ने एक बयान के हवाले से कहा था कि आईएसआईएस चाहता है कि 11 से 46 साल की सभी महिलाएँ ख़तना कराएं.

संयुक्त राष्ट्र की अधिकारी जैक्लिन बैडकॉक ने इस फ़तवे पर चिंता जताई थी.

लेकिन मीडिया विश्लेषकों का कहना है कि सोशल मीडिया पर आने वाला यह फ़तवा ग़लत हो सकता है.

भाषा की ग़लती?

इसमें टाइपिंग और भाषा की ग़लतियां हैं. यह फ़तवा "इस्लामिक स्टेट इन इराक़ एंड लेवांत" के नाम से आया है. इस नाम का इस्तेमाल आईएसआईएस समूह काफ़ी लंबे समय से नहीं कर रहा है.

इराक़ी महिलाएं

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इसके बदले वह अपने लिए "इस्लामिक स्टेट" का इस्तेमाल कर रहा है.

कुछ ब्लॉगरों का मानना है कि सोशल मीडिया पर दो दिनों से शेयर होने वाला यह कथित फ़तवा आईएसआईएस को बदनाम करने की साज़िश है.

आईएसआईएस के नेतृत्व में सुन्नी लड़ाकों ने इराक़ के उत्तर पश्चिमी इलाक़े पर नियंत्रण किया हुआ है.

महिलाओं के ख़तने की प्रथा कुछ अफ़्रीक़ी, मध्य-पूर्व के देशों और एशियाई समुदाय में प्रचलित है.

आईएसआईएस चरमपंथी

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उनका मानना है कि ख़तने से महिलाओं को युवावस्था या शादी लायक़ बनाया जाता है.

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दिसंबर 2012 में एक प्रस्ताव पारित करके कहा था कि सभी सदस्य देशों को इस अमानवीय प्रथा पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए.

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