प्रथम विश्व युद्ध: पहली चिंगारी - आर्चड्यूक की हत्या-3

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आज से ठीक 100 साल पहले 28 जून 1914 को ऑस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य के उत्तराधिकारी आर्चड्यूक फ़र्डिनेंड अपनी पत्नी के साथ बोस्निया में साराएवो के दौरे पर थे. वहाँ उनकी और उनकी पत्नी की हत्या कर दी गई जिसके बाद शुरू हुआ वो घटनाक्रम जो प्रथम विश्व युद्ध कहलाया.
बीबीसी आपके लिए लाया है 28 जून 1914 की सुबह का घटनाक्रम और कुछ मुख्य पल STYप्रथम विश्व युद्ध: पहली चिंगारी - आर्चड्यूक की हत्या-2प्रथम विश्व युद्ध: पहली चिंगारी - आर्चड्यूक की हत्या-2आज से ठीक 100 साल पहले 28 जून 1914 को ऑस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य के उत्तराधिकारी आर्चड्यूक फ़र्डिनेंड और उनकी पत्नी की हत्या कर दी गई, जिसे प्रथम विश्व युद्ध की वजह बताया जाता है. इसी पर बीबीसी की ख़ास पेशकश.2014-06-27T22:09:30+05:302014-06-28T16:02:21+05:302014-06-28T18:34:52+05:302014-06-30T17:15:05+05:30PUBLISHEDhitopcat2 :-
स्थानीय समय 1028
आर्चड्यूक को यह कहते हुए सुना गया कि घटना को गंभीरता से न लिया जाए. उन्होंने कहा, "यह व्यक्ति पागल है. हम लोग पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम को जारी रखेंगे."
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आर्चड्यूक और सोफ़ी सिटी हॉल में पहुंचे.
इस शाही युगल का स्वागत करने के लिए साराएवो के ईसाई, मुसलमान और यहूदियों के गणमान्य लोग पहुंचे थे.
(सौ साल पहले सारायेवो में आर्चड्यूक फ़्रांज़ फ़र्डिनेंड की हत्या के ऐतिहासिक क्षणों को बीबीसी ने यहां प्रस्तुत किया है. सौ साल पुरानी यह घटना आज के श्रोताओं-पाठकों के लिए आधुनिक न्यूज़ रिपोर्टिंग की तकनीकों के ज़रिए इस तरह से बताई गई है जैसे आज का न्यूज़ मीडिया उसे कवर करता.)
आर्चड्यूक को स्वागत समारोह में भाग लेना था और सोफ़ी को मुसलमान अधिकारियों की बीवियों से मिलना था.
मेयर चूयर्चिच आर्चड्यूक से ज़रा ही पहले पहुंचे. वह कारों के काफ़िले की पहली गाड़ी में थे. फिर वह शाही युगल से समारोह में औपचारिक रूप से मिलने के लिए उनका इंतज़ार करने लगे.
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उधर विस्फोट के स्थल पर पुलिस ने कई गिरफ़्तारियां कर ली थीं. लेकिन यह पता नहीं चल पाया था कि उन लोगों में से कोई बम फेंकने वाला व्यक्ति भी था या नहीं.
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बाद में विस्फोट स्थल में घायल एक अधिकारी, जिनका नाम कर्नल एरिक वॉन मरीत्ज़ी था, को गैरिसन अस्पताल ले जाया गया.
विस्फोट स्थल पर सेना के सर्जन पहुंच चुके थे. पुलिस ने इलाक़े को ख़ाली करवाना शुरू कर दिया था.
STYप्रथम विश्व युद्ध: पहली चिंगारी- आर्चड्यूक की हत्या-1प्रथम विश्व युद्ध: पहली चिंगारी- आर्चड्यूक की हत्या-1आज से ठीक 100 साल पहले 28 जून 1914 को ऑस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य के उत्तराधिकारी आर्चड्यूक फ़र्डिनेंड और उनकी पत्नी की हत्या कर दी गई, जो प्रथम विश्व युद्ध के शुरू होने की वजह बनी. इसी पर बीबीसी की ख़ास पेशकश.2014-06-27T20:52:04+05:302014-06-28T15:58:01+05:302014-06-28T16:06:43+05:302014-06-30T17:17:30+05:30PUBLISHEDhitopcat2
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सिटी हॉल में आर्चड्यूक गणमान्य व्यक्तियों से मिल रहे थे.
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शुरुआती ख़बरों के अनुसार पुलिस ने कहा कि उन्होंने आर्चड्यूक पर हमले के सिलसिले में एक व्यक्ति को गिरफ़्तार किया. संदिग्ध 19 साल का एक बोस्नियाई सर्ब था, जिसका नाम नेडल्को कब्रीनोविच था.
उसे पुलिस स्टेशन में रखा गया था. उसकी एक तस्वीर जारी कर दी गई थी.
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सिटी हॉल में कार्यक्रम समाप्त होने वाला था. शाही युगल सिटी हॉल से निकल रहे थे. दौरे का अगला पड़ाव राष्ट्रीय संग्रहालय था.
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बाद में अधिकारियों ने आर्चड्यूक के कार्यक्रम में एक बदलाव का ऐलान किया. उन्हें और उनकी बीवी को गैरिसन अस्पताल में घायलों को देखने जाना था, जिनमें कर्नल मरीत्ज़ी भी शामिल थे.
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कारों का काफ़िला सिटी हॉल से निकला और तेज़ रफ़्तार से आगे बढ़ा. ऐसा लगता था कि कुछ अतिरिक्त सुरक्षा इंतज़ाम भी किए गए थे. सेना के एक अधिकारी को कार के रनिंग (फ़ुट) बोर्ड पर खड़ा कर दिया गया था ताकि आर्चड्यूक का बचाव कर सकें.
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तभी ख़बर आई कि लटाइनर ब्रिज के पास गोलियां चली हैं. यह जगह सिटी हॉल से 300 मीटर दूर थी.
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ख़बर आई कि आर्चड्यूक फ़र्डिनेंड को गोली लग गई है.
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गोलीबारी एप्पल घाट और फ्रांज़ जोसेफ़ गली के किनारे हुई.
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ख़बरों में कहा गया कि आर्चड्यूक की कार एप्पल घाट के साथ-साथ दक्षिण की ओर तेज़ी से गई.
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आर्चड्यूक की स्थिति का पता नहीं चल पा रहा था.
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पुलिस गोलीबारी के स्थल पर पहुंची. उधर भीड़ कुछ लोगों के बीच हिंसा शुरू हो गई.
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बाद में पुलिस ने भीड़ को एक युवक पर हमला करने से रोका.
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बाद में एक व्यक्ति को गिरफ़्तार कर लिया गया. भीड़ में मौजूद लोगों का दावा था कि उसने आर्चड्यूक को गोली मारी थी.
यह पता नहीं चल पाया था कि उसका पहले हुए बम विस्फ़ोट या इस हमले से कोई संबंध था या नहीं.
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प्रत्यक्षदर्शियों का कहना था कि एक ग़लत मोड़ लेने के बाद आर्चड्यूक की कार मुड़ने की कोशिश कर रही थी.
बंदूकधारी को आगे बढ़ते और फिर नज़दीक से दो गोलियां मारते हुए देखा गया.
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प्रत्यक्षदर्शियों का कहना था कि आर्चड्यूक सीधे बैठे हुए थे जबकि उनकी पत्नी आगे की ओर झुकी हुई थीं.
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अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की कि आर्चड्यूक और उनकी पत्नी को गवर्नर ऑस्कर पोट्यिरेक के आधिकारिक निवास, द कोनाक, ले जाया गया. लेकिन उनकी स्थिति के बारे में कुछ स्पष्ट नहीं था.
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द कोनाक, में आर्चड्यूक और डचेस का मेडिकल स्टाफ़ इलाज कर रहा था.
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द कोनाक में दो पादरियों को जाते हुए देखा गया.
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पूरे साराएवो में घंटी की गूंज सुनाई देने लगी.
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तभी ख़बर आई कि ऑस्ट्रिया के आर्चड्यूक और डचेस की मौत हो चुकी है.
एक अधिकारी ने इसकी पुष्टि की कि आर्चड्यूक फ्रांज़ फ़र्डिनेंड और उनकी पत्नी सोफ़ी गोलियां लगने से मारे गए हैं.
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आर्चड्यूक फ़्रांज़ फ़र्डिनेंड (50), और होहेनबर्ग की डचेस सोफ़ी (46), की मौत की घोषणा.
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बम हमले में गिरफ़्तार कब्रीनोविच ने पुलिस को बताया कि बम को एक अचिन्हित 'संगठन' से हासिल किया गया था. उसने आगे कुछ भी कहने से इनकार कर दिया और यह भी नहीं बताया कि वह हत्या की किसी व्यापक योजना का हिस्सा था या नहीं.
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ख़बर आई कि पुलिस ने संदिग्ध हत्यारे की गिरफ़्तारी की पुष्टि की है.
पुलिस ने संदिग्ध का नाम गैवरिलो प्रिंत्सिप बताया. उसे पुलिस स्टेशन में रखा गया था.
यह साफ़ नहीं हो सका था कि दोनों हमलों का आपस में कोई संबंध था या नहीं.
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पुलिस ने मामले में गैवरिलो प्रिंत्सिप को संदिग्ध बताया.
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ख़बर आई कि प्रिंत्सिप की गिरफ़्तारी के दौरान एक पुलिस अधिकारी घायल हो गया था.
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एक प्रत्यक्षदर्शी, डनीलो प्यूसिलि, गोलियां चलाए जाने के समय आर्चड्यूक की कार के पास ही खड़ा था.
प्यूसिलि का दावा था कि इसके बाद उन्होंने हत्यारे का कॉलर पकड़ लिया था. उन्होंने कहा, "मैंने सोचा कि उसका गला घोंट दूं, लेकिन फिर, मैंने ऊपर वाले (भगवान) के बारे में सोचा, और अपनी इस इच्छा को त्याग दिया."
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सिटी हॉल में 10.10 पर मौजूद एक दर्शक, जो उस कार्यक्रम में मेहमान थे, ने बताया कि आर्चड्यूक लंबे क़दम भरते हुए इमारत में दाखिल हुए थे. लेकिन उन्होंने जोड़ा कि यह 'अजीब' लगा क्योंकि "मुझे लगता है कि वह यह दिखाने की कोशिश कर रहे थे कि वे डरते नहीं हैं."
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उस शुक्रवार के दौरे को लेकर किए गए सुरक्षा इंतज़ामों पर सवाल ज़रूर उठे.
जब 1910 में सम्राट फ़्रांज़ जोसेफ़ साराएवो के दौरे पर गए थे तो 28 जून के मुक़ाबले उनके सुरक्षा इंतज़ाम कई गुना कड़े थे. पूरे रास्ते में सैनिक खड़े थे और शहर में दाख़िल होने वाले हर व्यक्ति को छह घंटे के भीतर अपना नाम दर्ज करवाने का आदेश था.
बाद में शाही युगल की एक तस्वीर सामने आई. जिसे उस घातक गोलीबारी से कुछ वक़्त पहले ही लिया गया था.
आर्चड्यूक के एड (सहायक), काउंट फ़्रैंक हैरैख़, जो हमले के वक्त आर्चड्यूक के साथ खड़े थे, ने आर्चड्यूक और सोफ़ी के अंतिम क्षणों के बारे में बताया:
हैरेख़ ने बताया कि गोलियां चलने के बाद उन्होंने देखा कि "ख़ून की पतली धार महामहिम के मुंह से निकली और मेरे दाएं गाल पर गिरी." हैरेख़ जैसे ही आर्चड्यूक की सहायता को दौड़े, डचेस चीखीं – ‘तुम्हें क्या हो गया?’ - और फिर वह अपनी सीट पर गिरीं और अपना चेहरा अपने घुटनों में छुपा लिया.
उन्होंने बताया, "मुझे बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि उन्हें भी गोली लग गई है और सोचा कि वह दहशत के कारण बेहोश हो गई हैं. लेकिन फिर मैंने महामहिम को कहते सुना, 'सोफ़ेरल, सोफ़ेरल, मत मरो. अपने बच्चों के लिए ज़िंदा रहो!'"
लेफ़्टिनेंट कर्नल हैरैख़ ने कहा, "मैंने आर्चड्यूक को कॉलर से थामा, ताकि उनका सिर आगे की ओर न गिरे और उनसे पूछा कि क्या उन्हें बहुत तकलीफ़ हो रही है. उन्होंने मुझे बहुत साफ़-साफ़ कहा, 'नहीं, ये तो कुछ भी नहीं!'"
उन्होंने कहा, “उनका चेहरा थोड़ा टेढ़ा होने लगा लेकिन वह बार-बार (6-7 बार, धीरे-धीरे जैसे-जैसे वे चेतना खो रहे थे) दोहराते रहे - 'नहीं, ये तो कुछ भी नहीं!’ फिर कुछ समय के बाद, ख़ून के रिसाव के साथ गला घुटने की आवाज़ आई और जब तक हम कोनाक पहुंचे वो आवाज़ बंद हो गई थी.’’
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द कोनाक में आर्चड्यूक और डचेस के पार्थिव शरीर दर्शनार्थ रख दिए गए.
पूरे शहर में झंडों को आधा झुका दिया गया.
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