कविता ने बदल दिया एक ख़ूनी कैदी का जीवन

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- Author, हेलियर शेओंग
- पदनाम, बीबीसी न्यूज
कैदी से कवि बने कोसल खेव की कहानी कहती है कि जब तक जेलें रहेंगी, तब तक रहेंगी कविताएं और उनके ज़रिए फूटती उम्मीदें भी.
अमरीका में <link type="page"><caption> जेल की सलाखों</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2013/09/130926_yoga_in_prison_rd.shtml" platform="highweb"/></link> के पीछे हत्या की कोशिश के जुर्म में सजा काट रहे कोसल खेव ने उम्मीदों को थामे रखने के लिए, लिखनी शुरू की एक अदद कविता. इसके बाद कविता लिखने का सिलसिला रुका नहीं.
कोसल खेव का जन्म और लालन-पालन अमरीका के शरणार्थी शिविर में हुआ. उनके माता पिता कंबोडिया के खेमर रूज शासन से भाग कर अमरीका आ गए थे.
यहां 13 साल की उम्र में वे एक गिरोह के सदस्य बन गए. एक बार गिरोह की गोलीबारी में दो लोग घायल हो गए. इस गोलीबारी में वे भी शामिल थे.
16 साल के कोसल खेव को हत्या के प्रयास का दोषी पाया गया और उन्हें 14 साल की कैद की सजा सुनाई गई.
खेव उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं, "मुझे किसी ने कहा था, ग़लती करने में एक पल लगता है मगर सुधारने में सदियां लग जाती हैं. मैं अभी भी अपनी ग़लतियों की सजा भुगत रहा हूं."
अमरीका के जेल में 14 साल की सजा काटने के बाद खेव को कंबोडिया वापस भेज दिया गया.
शरणार्थी शिविर

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अमरीका में जेल में खेव ने <link type="page"><caption> कविता लिखनी</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2013/06/130628_prisoners_turning_entrepreneurs_ar.shtml" platform="highweb"/></link> शुरू की. आज वे एक कंबोडिया के एक प्रतिष्ठित कवि माने जाते हैं. उन्होंने लंदन 2012 सांस्कृतिक ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व किया.
खेव के कैदी से कवि बनने की कहानी शरणार्थी शिविर से हुई.
खेव बताते हैं, "मेरे माता पिता थाईलैंड में चल रहे खेमर रूज युद्ध के कारण वहां से निकल भागे. मां के सामने ही उनके पहले पति को मार डाला गया. उनके पास पिता की एक ही निशानी बची थी, उनकी टूटी हुई खोपड़ी."
एक साल की उम्र में खेव अपनी मां, छह भाई बहन और दादी के साथ अमरीका आ गए थे.
अमरीका में जीवन कठिन था. अलग थलग पड़ जाने के अहसास ने उन्हें गिरोह की तरफ खींचा.
वे बताते हैं, "नौ लोगों का हमारा परिवार आजीविका के लिए दिन रात जूझ रहा था. मैं कुछ इसी तरह की पृष्ठभूमि वाले बच्चों से मिला. वे भी खुद को दुनिया में अकेला समझते थे."
खेव को गोलीबारी में शामिल होने के कारण 16 साल की उम्र में सजा सुनाई गई.
जेल का जीवन
खेव को नौ अलग अलग तरह के <link type="page"><caption> जेलों</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2013/01/130128_iran_evin_prison_hotel_sdp.shtml" platform="highweb"/></link> में रहे. वहां उन्होंने खूनी संघर्ष देखा. उन्हें जेल में सब पागल दिखते थे और यह लड़ाई का मैदान लगता था. वे कहते हैं, "जब आप क्रूर लोगों के बीच रहते हैं तो आपको भी उनके बीच जिंदा रहने के लिए क्रूर बनना पड़ता है."
वैसे तो खेव के जेल का अनुभव बेहद बुरा रहा मगर 14 साल के कैदी जीवन में एक पल ऐसा आया जिसने सब कुछ बदल दिया.

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वे बताते हैं, "जेलवालों ने मुझे डेढ़ साल तक एकांत कारावास में रखा. मैं लगभग पागल हो गया था."
जेल के उन दिनों को याद करते हुए खेव बताते हैं, "मैं खुद से बातें करता था. खुद को कहता था, खुद को सुनता था. वहां बस मैं ही मैं था. तब मैंने सोचना शुरू किया- क्या मैं जीवन इसी तरह बीत जाएगा? क्या मैं जेल में ही मर जाऊंगा? "
उन्होंने आगे बताया, "भावनाओं का ऐसा तूफान मचा जो शब्दों के जरिए पन्ने पर उतरने लगा. मैंने अपने डर, उम्मीदें, ख्वाब और बुरे सपनों के बारे में लिखा. मैं जो भी लिखता उसे जोर जोर से बोल कर सुनाता ताकि मेरी ही तरह एकांत कारावास में रह रहे दूसरे कैदी इसे सुन सके. कैदी सुनते और कहते- और सुनाओ साथी."
कोसर ने कहा, "एक मायने में यह मेरा पहला कविता पाठ था. मेरे पहले श्रोता थे अकेलेपन से ऊबे हुए वे कैदी."
कंबोडिया में वापसी
<link type="page"><caption> एकांत कारावास</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2013/04/130423_tim_jenkin_prison_ap.shtml" platform="highweb"/></link> की सजा काटने के बाद जेल से निकलने पर खेव दूसरे कवियों से मिले. फिर उन्होंने अपनी कविता में कुछ सुधार लाने के लिए उन्होंने करेक्शन प्रोग्राम में भी हिस्सा लिया.
वे कहते हैं, "कविता ने मुझे वह ताकत दी जिससे मैंने अपनी सोच और नजरिए को बदला."
जब उन्हें लंदन 12 ओलंपिक के लिए बुलावा आया तो वे रो पड़े.

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खेव अपना वह अनुभव सुनाते हैं, "मेरे पास तब घर नहीं था. मैंने कविता के लिए फिल्म प्रक्षेपक की नौकरी छोड़ दी थी. या तो मैं लोगों के बिस्तर पर सोता था या रात भर घूम कर रात गुजारता था."
"संघर्ष खत्म होने का नाम नहीं ले रहे थे. मैं आजिज आकर वापस सिनेमा में लौटने की सोच रहा था. तभी मुझे आमंत्रण पत्र मिला. मुझे विश्वास नहीं हो रहा था. लंदन में कविता पाठ करना यादगार पल था."
खेव का सपना है कि एक दिन वे अमरीका लौटे और अपने परिवार से मिले.
आजकल खेव स्टूडियो रिवोल्ट के कलाकार के बतौर काम कर रहे हैं और युवाओं के लिए कविता कार्यशाला चलाते हैं.
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