'पहले भूल जाओ जादू-टोना...'

चाड, बोल्साने, मनोविज्ञान
इमेज कैप्शन, डॉक्टर बोल्साने अफ्रीकी देश चाड में इकलौते मनोचिकित्सक हैं.
    • Author, सेलेस्ट हिक्स
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता

अफ्रीकी देश चाड में सिर्फ़ एक मनोचिकित्सक हैं. डॉक्टर एगिप बोल्साने नाम के इन मनोचिकित्सक की मुश्किल ये है कि उन्हें अपने मरीज़ों को ये समझाना होता है कि उनकी समस्याओं का इलाज जादू-टोने से नहीं दवाओं से होगा.

चाड की राजधानी जामेना में डॉक्टर एगिप बोल्साने के क्लिनिक के बाहर एक बोर्ड पर लिखा है "द पायोनियर" यानी पथ प्रदर्शक.

डॉक्टर बोल्साने कहते हैं, "किसी मनोचिकित्सक से इलाज करवाने जाना यहां लोगों के लिए बड़ी मुश्किल बात है. लोगों को लगता है कि आपके दिमाग़ में कुछ गड़बड़ी है शायद इसलिए क्योंकि आप पर किसी आत्मा का असर है."

डॉक्टर बोल्साने एयरकंडीशनर का खर्च नहीं उठा सकते इसलिए उन्हें एक पंखे से काम चलाना पड़ता है.

चाड में ज़्यादातर लोग मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं नहीं समझ पाते और वो अवसाद और शाइज़ोफ्रेनिया जैसी बीमारियों को भूत-प्रेत से जोड़कर देखते हैं.

चाड, मानसिक स्वास्थ्य, कुपोषण
इमेज कैप्शन, चाड संयुक्त राष्ट्र के मानव विकास सूचकांक में बहुत नीचे है.

'सरकार से मदद नहीं'

चाड में ऐसे लोग आसानी से देखे जा सकते हैं जिनकी मानसिक बीमारी का इलाज नहीं हुआ और जिनके परिवार अब उन्हें संभाल नहीं सकते और वो राजधानी जामेना की सड़कों पर रहते हैं.

डॉक्टर बोल्साने कहते हैं, "समाज में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं पर चर्चा नहीं होती."

चाड में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की हालत सुधारना आसान नहीं है, संयुक्त राष्ट्र के मानव विकास सूचकांक में चाड नीचे से चौथे पायदान पर है.

डॉक्टर बोल्साने को सरकार से मदद नहीं मिलती, उनके मरीज़ मुश्किल से फीस चुका पाते हैं और अक्सर दवाइयां नहीं मिल पाती.

मनोचिकित्सा की पढ़ाई की इच्छा रखने वालों को फ्रांस जाना पड़ता है.

1980 के दशक की शुरुआत से कुछ साल पहले तक चाड ने गृह युद्ध झेले हैं. गृह युद्ध, विद्रोहों और तख्तापलट ने चाड में हज़ारों लोगों को सदमे में छोड़ दिया है.

इनमें से बहुत कम लोगों को कभी डॉक्टरों से मदद मिली.

मलेरिया, पोलियो और खसरे से जूझ रहे देश में साफ़ समझा जा सकता है कि क्यों मानसिक स्वास्थ्य पर पैसा खर्च नहीं होता.

तो डॉक्टर बोल्साने को किस बात से प्रेरणा मिलती है?

वो एक मुस्कुराहट के साथ कहते हैं, "इंसान कोई मशीन नहीं है जिसकी मरम्मत की जा सके, मानव अनुभवों को समझना और कैसे भावनाएं सेहत से जुड़ी हैं ये जानना बहुत चुनौतीपूर्ण बात है."

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