ये हैं फिनलैंड के डिब्बाबंद बच्चे

- Author, हेलेना ली
- पदनाम, बीबीसी न्यूज
पिछले 75 सालों से फिनलैंड की सरकार गर्भवती महिलाओं को एक डिब्बा देती है--बच्चों के कपड़े, चटाई, खिलौनों, स्लीपिंग बैग, नैपकिन से भरे इस डिब्बे का इस्तेमाल बच्चों के बिस्तर के तौर पर भी किया जा सकता है.
कुछ लोग तो ये भी कहते है कि फिनलैंड में सबसे कम बाल मृत्यु दर की वजह ये डिब्बा भी है.ये परंपरा 1930 के दशक से ही फिनलैंड में शुरू हो गई थी.
बच्चा चाहे जिस पृष्ठभूमि से आता हो उसे ये डिब्बा दिया ही जाता है. सभी बच्चों की जिंदगी समान स्तर पर शुरु होती है.
ये मातृत्व पैकेज सरकार की ओर से एक उपहार है जो हर गर्भवती महिलाओं को दिया जाता है.
इस डिब्बे की निचली सतह पर एक चटाई बिछी होती है. ये डिब्बा ही हर बच्चे का पहला बिस्तर होता है. हर तरह की समाजिक पृष्ठभूमि के लड़के कार्डबोर्ड की चार दीवारों से घिरे इस डिब्बे में पहली झपकी लेते हैं.
मां के पास विकल्प
मां के पास हालांकि विकल्प होता है कि वो चाहे तो मातृत्व का डिब्बा ले ले या फिर नकद पैसा. फिलहाल जो इस मामले में 140 यूरो नकद दिए जाते हैं.95 फीसदी लोग डिब्बा ही चुनते हैं.
1949 तक ये परंपरा केवल निम्न आय वर्ग के परिवारों को दी जाती थी लेकिन बाद में इसे बदल दिया गया.

फिनलैंड के सामाजिक बीमा संस्थान में काम करने वाली हाइदी लिसिवेसी कहती हैं,“गर्भ के चौथे महीने से पहले ही हर गर्भवती महिला को डॉक्टर या स्थानीय अस्पताल में जाना पड़ता था. ये हर गर्भवती महिला को दिया जाता था.”
इस डिब्बे में वो तमाम सामान मुहैया कराए जाते हैं जो बच्चे की देखभाल के लिए जरूरी होते हैं. 1930 के दशक में फिनलैंड गरीब देश था. और यहां पर बाल मृत्यु दर बहुत ज्यादा थी. 1000 में से हर 65 बच्चे की मौत हो जाया करती थी.
हालांकि बाद के आने वाले वर्षों में स्थिति तेजी से बेहतर हुई.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य कल्याण संस्थान की प्रोफेसर मीका गिसलर इसके लिए कई कारण बताती है. 40 के दशक तक हर महिला को मातृत्व का डिब्बा दिया जाता था. जबकि 60 के दशक में राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा लागू कर दिया गया.
मातृत्व का रिवाज
आज 75 साल बीत जाने के बाद फिनलैंड में मातृत्व का डिब्बा एक रिवाज बन चुका है.
हेलसिंकी की रहने वाली 49 साल की रेया क्लेमेटी याद करते हुए बताती हैं कि कैसे वो अपने छह बच्चों के लिए पोस्ट ऑफिस जाकर मातृत्व का डिब्बा इकट्ठा किया करती थीं.
वो कहती हैं,“ ये बहुत प्यारा और उत्साहवर्धक था. एक तरह से ये बच्चे के लिए ये पहला वायदा था. मेरी मां और मेरे सारे रिश्तेदार ये देखने के लिए उत्सुक रहा करते थे कि इस बार सरकार ने डिब्बे में क्या क्या रखा है और कपड़ों का रंग क्या है.”

दो बच्चों की मां 35 साल की टिटा वेरिने कहती हैं,“ मातृत्व के डिब्बे को देखकर ये आसानी से जाना जा सकता है कि आपका बच्चा किस साल में पैदा हुआ था क्योंकि डिब्बे के अंदर रखा कपड़ा न के बराबर बदलता है. डिब्बे के साथ बच्चे की तुलना करना काफी अच्छा लगता है. हम्म्म्म मेरा बच्चा उसी साल पैदा हुआ था जिस साल में वो बच्चा.”
कुछ परिवार तो इतने गरीब हैं कि वो मातृत्व के डिब्बे में दिए गए सामान को खरीद नहीं सकते अगर ये सब मुफ्त में न दिए जाए तो.
जब वेरिने के पेट में जब पहला बच्चा था तो उस दौर में उन्हें बहुत काम करना पड़ता था. हलांकि वो इस बात से बहुत खुश थीं कि उन्हें बच्चे के लिए भागदौड़ और शॉपिंग नहीं करनी पड़ रही है.
जब उनका दूसरा बच्चा हुआ तो उन्होंने डिब्बे के बजाय नकदी को प्राथमिकता दी. उन्होंने पहले बच्चे के कपडों को दूसरे बच्चे को पहनाने के लिए इस्तेमाल किया.
ये कपड़े किसी को भी दिए जा सकते हैं. जैसे एक लड़का अपने कपड़े किसी लड़की दे सकता है. लड़की भी अपने कपड़े किसी लड़के को दे सकती है क्योंकि कपड़ों के रंग बूझकर लैगिंग रूप से उदासीन रखा गया है.
वक्त के साथ बदलाव
30 और 40 के दशक में इसमें हाथ से बनाए कपड़े रखे जाते थे क्योंकि तब मां तब बच्चों के कपड़े बनाया करती थीं.

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसमें कागज के सामान रखे जाने लगे. उस जमाने में सादे सूत की जरूरत सेनाओं को थी इसलिए मातृत्व के कपड़े में पेपर का इस्तेमाल होने लगा.
50 के दशक में रेडी मेड कपड़े का चलन बढ़ा तो 60 और 70 के दशक में नए कपड़ों का इस्तेमाल होने लगा.
1968 में इसमें स्लीपिंग बैग जोड़ा गया. इसके एक साल बाद इसमें नैपकिन शामिल कर ली गई.लेकिन बच्चों का अच्छा पालन पोषण हमेशा से मातृत्व के डिब्बे की नीति रही है.
हेलसिंकी विश्वविद्यालय में फिनिश और नॉर्डिक के प्रोफेसर पानु पुल्मा कहते हैं, “पहले बच्चे मां बाप के बिस्तर पर ही सोते थे लेकिन ये सलाह दी गई थी कि इसे बंद कर देना चाहिए. बिस्तर की तरह डिब्बे के इस्तेमाल का मतलब था कि बच्चों ने अपने मां बाप से अलग सोने की शुरुआत की.”
एक वक्त ऐसा भी आया जब स्तन से दूध पिलाने की परंपरा को प्रोत्साहित करने के लिए डिब्बे से दूध के बोतल हटा दिए गए.
पूल्मा कहते हैं इसका मकसद महिलाओं को स्तन से दूध पिलाने के लिए प्रोत्साहित करना था. और ऐसा हुआ भी.
वो कहते हैं कि मातृत्व के डिब्बे में किताब को शामिल करने का सकारात्मक असर हुआ है. इससे बच्चे पहले हाथ में किताब पकड़ना सीखते हैं इसके बाद एक दिन पढ़ना भी सीख जाते हैं.
वो कहते हैं कि इन सबके अलावा मातृत्व का डिब्बा समानता का प्रतीक भी है.
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