भारत का हथियारों पर खर्च बढ़ा लेकिन चीन के मुक़ाबले क्या स्थिति

हथियार

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दुनिया पर अपना प्रभाव बढ़ाने और बनाए रखने के लिए विभिन्न देशों के बीच की हथियारों की होड़ लगातार बढ़ती जा रही है.

हाल में आई 'स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट' (SIPRI) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से दुनिया में हथियारों पर होने वाला खर्च आसमान छू रहा है.

पिछले साल दुनिया भर में डिफेंस सेक्टर पर खर्च 2.24 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच गया, जो एक रिकॉर्ड है. यूरोप में रक्षा खर्च में हुई बढ़ोतरी पिछले 30 सालों में सबसे ज़्यादा थी.

हथियारों पर हो रहे खर्च के मामले में अभी भी अमेरिका, चीन और रूस का दबदबा है. इन तीनों देशों की रक्षा पर होने वाले कुल खर्च में 56 प्रतिशत की हिस्सेदारी है. इन तीनों देशों के बाद चौथा नंबर भारत का है. भारत ने पिछले साल डिफेंस सेक्टर पर 8,140 करोड़ डॉलर का खर्च किया.

हालांकि चीन से केवल दो पायदान नीचे होने के बावजूद भारत का रक्षा खर्च चीन से काफी कम है. 2022 में चीन के कुल रक्षा खर्च की तुलना में भारत का खर्च महज 28 प्रतिशत रहा. वैसे भारत की चिंता का कारण यूरोप में हो रहा युद्ध नहीं है. भारत को तो अपने दो पड़ोसी देशों चीन और पाकिस्तान की चिंता लगी रहती है.

इस बात का सबूत SIPRI की इस रिपोर्ट से मिलती है. इसके अनुसार, भारत के कुल रक्षा बजट की लगभग एक चौथाई (23 प्रतिशत) राशि चीन से लगती सीमा के बुनियादी ढांचे के विकास और हथियारों के आधुनिकीकरण पर खर्च की गई.

यूक्रेन की स्पेशल फोर्सेज़ के जवान

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यूरोप के रक्षा खर्च में वृद्धि

वहीं यूरोप की बात करें तो मध्य और पश्चिमी यूरोप के देशों ने पिछले साल डिफेंस सेक्टर पर 34,500 करोड़ डॉलर खर्च किए. यह राशि शीत युद्ध के अंतिम समय में हुए खर्च से भी आगे बढ़ गई है.

ऐसा नेटो के सदस्यों के बीच लंबे समय से लंबित एक कमिटमेंट को पूरा करने की कोशिश के कारण हुआ है. नेटो देशों के बीच पहले ही सहमति बनी थी कि वे सब रक्षा क्षेत्र पर हर साल अपनी जीडीपी का दो प्रतिशत खर्च करेंगे.

वहीं कई देशों ने अपना रक्षा खर्च पहले ही बढ़ा दिया था. दूसरी ओर कई देश अगले एक दशक में चरणबद्ध तरीके से खर्च बढ़ाने का इरादा रखते हैं.

वैसे रक्षा खर्च बढ़ाने में यूक्रेन युद्ध की भूमिका बहुत अहम है. इस युद्ध में शामिल यूक्रेन और रूस के पड़ोसी देशों का रक्षा खर्च तेज़ी से बढ़ा है.

रक्षा बजट में सबसे तेज़ी से वृद्धि फिनलैंड (36 प्रतिशत), लिथुआनिया (27 प्रतिशत), स्वीडन (12 प्रतिशत) और पोलैंड (11 प्रतिशत) की रही है.

जर्मनी के चांसलर ओलाफ़ स्कोल्ज़

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जर्मनी की नीति में बड़ा बदलाव

हालांकि सबसे अहम परिवर्तन जर्मनी में हुआ है. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी को मजबूत सेना रखने की छूट नहीं थी, लेकिन अब तो उसने एक 'पुनः शस्त्रीकरण' कार्यक्रम की शुरुआत की है.

जर्मनी के चांसलर ओलाफ़ स्कोल्ज़ ने 2022 में 'ज़ीटेनवेंडे' यानी टर्निंग पॉइंट नाम का एक कार्यक्रम शुरू किया. दूसरे विश्व युद्ध के बाद जर्मनी का यह सबसे बड़ा सशस्त्रीकरण कार्यक्रम है.

सैन्य बजट के आकार के लिहाज से पिछले साल जर्मनी दुनिया में सातवें स्थान पर था. 2022 में उसने 10,500 करोड़ डॉलर का ऑफ-बजट फंड बनाया, जिसका इस्तेमाल सेना की मारक क्षमता बढ़ाने पर होना है.

हालांकि डिफ़ेंस पर होने वाले खर्च के मामले में ब्रिटेन अभी भी पूरे यूरोप में सबसे आगे बना हुआ है. पिछले साल उसने सेना की जरूरतें पूरी करने पर 68,500 करोड़ डॉलर का खर्च किया. उसमें से लगभग 250 करोड़ डॉलर यूक्रेन की मदद के लिए दिया गया.

रूस के साथ लड़ाई में शामिल यूक्रेन के खर्च में पिछले साल 640 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. इसके कारण रक्षा खर्च के लिहाज से पूरी दुनिया में यूक्रेन की रैंकिंग पिछले साल 11 हो गई.

यूक्रेन का रक्षा बजट अब उसकी जीडीपी का रिकॉर्ड 34 प्रतिशत है. किसी भी देश के लिए यह आंकड़ा काफ़ी बड़ा है.

पेट्रियट मिसाइल

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सबसे आगे अमेरिका

इस सूची में पहले नंबर पर अमेरिका है. 2022 में अमेरिका का रक्षा खर्च 87,700 करोड़ डॉलर रहा. यह राशि दुनिया के कुल रक्षा खर्च का 39 प्रतिशत है.

हालांकि अमेरिकी नागरिकों का मानना है कि उसके रक्षा बजट में हो रही इस वृद्धि की मुख्य वजह चीन है.

चीन ने पिछले साल रक्षा मामलों पर 29,200 करोड़ डॉलर खर्च किए, जो अमेरिका से काफी कम है.

इसके बावजूद, अमेरिकी नेताओं और सेना को डर है कि चीन तेजी से अपनी पकड़ बढ़ा रहा है और इस सेक्टर के अंतर को पाट रहा है.

प्रशांत क्षेत्र में चीन की महत्वाकांक्षाओं को देखते हुए अमेरिका के लिए यह परेशानी बढ़ाने वाली बात है.

वहीं रूस अपना असली सैन्य खर्च छुपाता है, लेकिन स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट का अनुमान है कि वो इस सूची में चीन के बाद तीसरे नंबर पर है.

विशेषज्ञों के अनुसार, 2022 में रूस का रक्षा खर्च 9.2 प्रतिशत बढ़कर लगभग 8,640 करोड़ डॉलर हो गया. यह राशि रूस की जीडीपी का 4.1 प्रतिशत है.

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और क्या है इस रिपोर्ट में

अमेरिका, चीन, रूस और भारत के अलावा इस सूची के शीर्ष 10 दिग्गज देशों में फ्रांस, दक्षिण कोरिया और जापान शामिल हैं.

सऊदी अरब ने 2022 में रक्षा पर 7,500 करोड़ डॉलर का खर्च किया, जो पिछले साल की तुलना में 16 प्रतिशत अधिक है. बताया गया है कि यमन युद्ध के कारण सऊदी अरब के रक्षा बजट में वृद्धि हुई है.

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की इस रिपोर्ट से पता चलता है कि दुनिया के कई देश तेजी से अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने में जुटे हैं.

इन देशों का रुख़ देखकर ऐसा लगता है कि ये मानते हैं कि निकट भविष्य में हालात नहीं सुधरने वाले. इसलिए उन्हें किसी भी चुनौती के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है.

हालांकि इस रिपोर्ट में एक अच्छी बात ये मालूम हुई कि अफ्रीका का सैन्य खर्च 2018 के बाद पहली बार कम हुआ है. 2021 की तुलना में 2022 में अफ्रीका का रक्षा खर्च 5.3 प्रतिशत कम होकर 3,940 करोड़ डॉलर हो गया.

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