सूडान: दो जनरलों की लड़ाई में कैसे एक शहर हो रहा है तबाह

इमेज स्रोत, Getty Images
- Author, बीबीसी मुंडो
- पदनाम, .
धमाकों की आवाज़ के साथ दूर तक उठता घना धुआं. ये हर दिन की दहशत का मंज़र है. गोलियों और रॉकेट के साथ उड़ती अफ़वाहों से अनिश्चितता कहीं ज़्यादा घनी हो गई है.
सूडान की राजधानी खार्तूम और देश के अन्य हिस्से में ज़िंदगी ने बीते हफ़्ते अचानक नाटकीय मोड़ ले लिया जब इस अफ़्रीकी देश पर कब्ज़े को लेकर दो सैन्य बल आपस में भिड़ गए.
इस टकराव के केंद्र में दो जनरल हैं. सूडानी आर्म्ड फ़ोर्सेस (एफ़एएस) के प्रमुख अब्देल फ़तह अल बुरहान और अर्द्धसैनिक बल रैपिड सपोर्स फ़ोर्सेस (आरएसएफ़) के लीडर मोहम्मद हमदान दगालो जिन्हें हेमेदती के नाम से भी जाना जाता है.
एक समय दोनों ने एक साथ काम किया और मिलकर देश में तख़्तापलट किया था लेकिन अब दबदबे के लिए दोनों के बीच की लड़ाई ने सूडान को बदहाल कर दिया है.

इमेज स्रोत, Getty Images
पुराने दोस्त
ख़ार्तूम में मौजूद बीबीसी संवाददाता जेम्स कोपनल के अनुसार, दोनों सैन्य अधिकारियों के बीच दोस्ती बहुत पुरानी रही है.
साल 2003 में जब पश्चिमी सूडान में गृह युद्ध शुरू हुआ तो दारफ़ुर विद्रोहियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई में इन दोनों ने मुख्य भूमिका निभाई थी.
इसके बाद जनरल बुरहान, दारफ़ुर में सूडान आर्मी के नेता के तौर पर उभरे.
हेमेदती कई अरब मिलिशिया (जिन्हें सामूहिक रूप से जंजावीड़ के नाम से जाना जाता था) में से एक के कमांडर हुआ करते थे. सरकार दारफ़ुर में ग़ैर अरब विद्रोहियों को बर्बर तरीक़े से कुचलने के लिए जंजावीड़ का इस्तेमाल करती थी.
मजक डी'अगूत उस समय नेशनल इंटेलिजेंस एंड सिक्युरिटी सर्विसेज़ के डिप्टी डायरेक्टर हुआ करते थे. जब 2011 में साउथ सूडान अलग हुआ तो वो उसके डिप्टी डिफ़ेंस मिनिस्टर हो गए.
मजक की बुरहान और हेमेदती से मुलाक़ात दारफ़ुर में ही हुई थी. वो बताते हैं कि उस समय दोनों ने एक टीम की तरह काम किया.
उन्होंने बीबीसी को बताया कि उस समय उन्होंने एक हल्का सा संकेत दिखा कि उनमें से कोई एक सरकार के शीर्ष पर पहुंच सकता है.
हेमेदती एक साधारण मिलिशिया लीडर थे जो "चरमपंथ विरोधी अभियान में भूमिका" निभा रहे थे और "सेना की मदद" कर रहे थे जबकि बुरहान एक पेशेवर सैनिक थे, हालांकि "एक सूडानी आर्मी अफ़सर की सभी महात्वाकांक्षाओं के साथ कुछ भी संभव था. "
देश की आज़ादी के बाद अधिकांश समय तक सेना ही सूडान की कर्ताधर्ता रही.
सूडान के एक्सपर्ट एलेक्स डी वाल के अनुसार, दारफ़ुर में सरकार ने चरमपंथ विरोधी बहुत भोंड़े तरीक़े अपनाए, जिसमें विद्रोहियों से लड़ने के लिए सैनिकों, कबीलाई मिलिशिया और एयरफ़ोर्स का इस्तेमाल किया गया और हताहतों या नागरिकों के प्रति ज़रा भी नरमी नहीं बरती गई.
दारफ़ुर को 21वीं सदी का पहला नरसंहार कहा जाता है और जंजावीड़ पर जातीय नरंसंहार और सामूहिक रेप को युद्ध के हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने का आरोप लगा.
आख़िरकार हेमेदती आरएसएफ़ के कमांडर बन गए जिसे जंजावीड़ का ही एक ब्रांच कहा जा सकता है.
हेमेदती ने यमन में सऊदी नीत गठबंधन की ओर से लड़ने के लिए सैनिकों की सप्लाई करनी शुरू की, उसके बाद से उनकी ताक़त बहुत बढ़ गई.

इमेज स्रोत, Getty Images
सरकार में उठापटक
क़रीब एक दशक तक देश पर सैन्य शासन करने वाले ओमर अल बशीर सेना के साथ संतुलन बनाने के लिए हेमेदती और आरएसएफ़ पर बहुत भरोसा करते थे. उन्हें उम्मीद थी कि केवल एक सैन्य समूह उनका तख़्ता पलट नहीं कर सकता.
लेकिन अप्रैल 2019 में जब महीनों तक विरोध प्रदर्शन हुआ तो बशीर का तख़्तापलट करने के लिए दोनों जनरल एक हो गए.
इसके बाद उसी साल दोनों जनरलों ने प्रदर्शनकारियों से एक नागरिक सरकार के गठन का समझौता किया. इसकी निगरानी का जिम्मा एक संप्रभु समित पर था जिसमें नागरिक और सैन्य नेता शामिल थे. इसके चेयरमैन जनरल बुरहान और डिप्टी हेमेदती बने.
यह सरकार अक्टूबर 2021 तक दो साल चली. इसके बाद सेना ने हमला करके सत्ता हथिया ली, इस दौरान भी सरकार के शीर्ष नेता जनरल बुरहान बने और हेमेदती उनके डिप्टी.
इस संप्रभु समिति में नागरिक सदस्य के रूप में सादिक़ तोवर काफ़ी थे, उनका दोनों जनरलों से अक्सर मिलना होता था.
वो दावा करते हैं कि 2021 के तख़्तापलट तक दोनों जनरलों के बीच किसी भी क़िस्म की असहमति का संकेत उन्होंने नहीं देखा.
सादिक़ ने बीबीसी को बताया, "उस समय जनरल बुरहान ने पुरानी सरकार के सदस्यों और इस्लामिक रिवाज़ों को मानने वालों को उनके पदों पर बहाल करना शुरू कर दिया."
उनके मुताबिक़, "बाद में ये साफ़ होता गया कि जनरल बुरहानी की योजना ओमर अल बशीर की पुरानी सरकार को सत्ता में लाने की थी."
सादिक़ का मानना है कि यही वो समय था जब हेमेदती को उन पर शुबहा होने लगा क्योंकि उन्हें लगने लगा कि बशीर के सहयोगियों का उन पर कभी पूरा भरोसा नहीं था.

इमेज स्रोत, Getty Images
प्रतिद्वंद्वी ताक़तें
सूडानी राजनीति में हमेशा से ही सम्पन्न वर्ग का दबदबा रहा है और इसमें ज़्यादातर ख़ार्तूम और नील नदी के आस पास बसे जनजातीय समूहों के लोग आते हैं.
हेमेदती दारफ़ुर से आते हैं और सूडानी सम्पन्न वर्ग अक्सर उनके और उनके सैनिकों के बारे में अपमानजनक शब्दावली का इस्तेमाल करते हैं जैसे 'गांव वाले', 'जो सरकार नहीं चला सकते.'
पिछले दो या तीन सालों में उन्होंने खुद को एक राष्ट्रीय नेता और हाशिए पर रहने वाले लोगों के प्रतिनिधि के रूप में स्थापित करने की कोशिश की और इस तरह उन्होंने दारफ़ुर और साउथ कोरदोफ़ान के विद्रोही गुटों के साथ गठबंधन बनाने की कोशिश की, जिनके साथ पहले वो चरमपंथी विरोधी अभियानों में हिस्सा ले चुके थे.
वो लगातार लोकतंत्र बहाली को लेकर बातें करते रहे हैं, हालांकि उनके सुरक्षाबलों ने अतीत में नागरिक प्रदर्शनों को बर्बर तरीक़े से कुचला था.
जैसे जैसे नागरिक सरकार बनाने की समय सीमा क़रीब आती गई, सेना और आरएसएफ़ के बीच तनाव बढ़ गया और सेना में आरएसएफ़ को मिलाने का मुद्दा तीखा होता गया.
और इसके बाद सूडानी सरकार पर नियंत्रण पाने के लिए सेना और आरएसएफ़ में, बुरहान और हेमेदती के बीच लड़ाई शुरू हो गई.
कम से कम एक मायने में तो हेमेदती ने सेना के शीर्ष जनरलों का रास्ता अपनाया, जिनसे वो अब लड़ रहे हैं. हाल के सालों में उन्होंने कारोबार का एक पूरा साम्राज्य खड़ा कर लिया है जिसमें सोना खनन और अन्य क्षेत्र भी शामिल हैं.
दारफ़ुर और अन्य जगहों पर हुए कथित उत्पीड़नों को लेकर बुरहान और हेमेदती दोनों के ख़िलाफ़ मुकदमा चलाए जाने की मांग होती रही है.
दोनों के लिए ही बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है और कई कारण हैं कि कभी सहयोगी रहे और कट्टर दुश्मन पीछे नहीं हटेंगे.

इमेज स्रोत, Getty Images
भूखा और प्यासा ख़ार्तूम
इस बीच नागरिकों के हालात बहुत बुरे हो गए हैं. बताया जा रहा है कि ख़ार्तूम में पानी सप्लाई करने वाले मुख्य पंपिंग स्टेशन पर हमला हुआ है.
एक स्थानीय निवासी हिंदा ने बीबीसी को बताया कि लगातार पानी की क़िल्लत उनका इलाका अबरी (मक्के का एक ड्रिंक) से प्यास बुझाने पर मजबूर हो गया है.
उनके मुताबिक़, उनके आस पास की दुकानें बंद हो चुकी हैं. कुछ बेकरी खुली हैं लेकिन वहां भी आटे की क़िल्लत हो गई है.
लड़ाई शुरू होने से पहले सेना ने नागरिकों को राशन इकट्ठा कर लेने की चेतावनी जारी की थी क्योंकि आरएसएफ़ के सुरक्षा बल शहर के आस पास तैनात किए गए थे.
ख़ार्तूम की एक अन्य निवासी हेबा ने बीबीसी को बताया कि इस चेतावनी को कुछ ही परिवारों ने गंभीरता से लिया, क्योंकि किसी ने भी सोचा था कि हालात इस क़दर ख़राब हो जाएंगे.
राजधानी निवासियों को डर है कि उनका राशन भी जल्द ख़त्म हो जाएगा और लड़ाई का अंत जल्द नहीं दिख रहा है. एक अन्य शहरी शाक़िर की तरह लोग अधिक तक राशन चलाने के लिए खाने में कटौती कर रहे हैं.
शाक़िर ने बीबीसी को बताया, "हम सब उम्मीद कर रहे हैं कि ये टकराव जल्द ख़त्म हो क्योंकि हमारा राशन ख़त्म होता जा रहा है."
उन्होंने कहा, "अगर हमें ज़िंदा बचे रहना है तो हमें अपने खाने में कटौती करनी होगी."
ये भी पढ़ेंः-
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)














