सऊदी अरब-यूएई से कारोबारी रिश्ते बेहतर कर क्या हासिल करना चाहता है हॉन्ग कॉन्ग

सऊदी अरब के निवेश मंत्री ख़ालिद अल फ़लीह के साथ हॉन्ग कॉन्ग के सीईओ जॉन ली.

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इमेज कैप्शन, सऊदी अरब के निवेश मंत्री ख़ालिद अल फ़लीह के साथ हॉन्ग कॉन्ग के सीईओ जॉन ली.

चीन और खाड़ी सहयोग परिषद के पहले शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने दिसंबर में सऊदी अरब का दौरा किया था.

उसके दो महीने बाद हॉन्ग कॉन्ग के सीइओ जॉन ली 30 सदस्यों के एक व्यापार प्रतिनिधिमंडल के साथ सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात पहुंचे. उनका दौरा एक हफ़्ते का रहा.

जॉन ली ने इस दौरे में सऊदी अरब की दिग्गज तेल कंपनी अरामको के शेयरों को हॉन्ग कॉन्ग स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध करने का करार किया.

इस दौरान उन्होंने दोनों देशों के साथ 13 समझौते किए. ये समझौते तकनीक, ऊर्जा और परिवहन जैसे क्षेत्रों में किए गए.

सऊदी अरब की मीडिया के अनुसार जॉन ली ने अरामको के साथ साझेदारी कायम करने और भविष्य की संभावानाएं तलाश करने की कोशिश भी की.

वहीं यूएई की मीडिया ने हॉन्ग कॉन्ग और यूएई के बीच के आर्थिक सहयोग को 'सकारात्मक' बताते हुए कहा कि 2021 में इन दोनों देशों के बीच तेल से इतर चीज़ों का कारोबार क़रीब 12 अरब डॉलर का रहा.

शी जिनपिंग

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चीन के लक्ष्य, हॉन्ग कॉन्ग के प्रयास

जानकारों की राय में चीन चाहता है कि उसकी 'बेल्ट एंड रोड इनिशियटिव' में दूसरे देशों का सहयोग बढ़े और मध्य पूर्व की कंपनियां चीन में अपना निवेश बढ़ाएं.

चीन की योजना अमेरिका और यूरोप पर निर्भरता घटाने की है. इसलिए वो एशिया और खाड़ी के देशों के साथ नजदीकी रिश्ते बनाने में जुटा है. हालांकि जानकारों ने चेतावनी दी है कि पश्चिमी देशों को नजरअंदाज करने का दांव कहीं चीन को उल्टा न पड़ जाए.

दिसंबर में चीन और खाड़ी सहयोग परिषद के पहले शिखर सम्मेलन के दौरान शी जिनपिंग ने रियाद में कहा कि खाड़ी देशों के साथ रणनीतिक सहयोग मजबूत किया जाएगा.

उनके अनुसार, ऊर्जा, वित्त, निवेश, ​विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाया जाएगा. समाचार रिपोर्टों के अनुसार, दोनों पक्षों ने इस दौरान 50 अरब डॉलर के समझौते पर दस्तख़त किए.

जिनपिंग की योजना लागू करने के मकसद से जॉन ली की मध्य पूर्व की इस यात्रा को 'रणनीतिक लिहाज से अहम' करार दिया है.

हॉन्ग कॉन्ग न्यूज़ एजेंसी को दिए एक साक्षात्कार में जॉन ली ने कहा कि उन्होंने हॉन्ग कॉन्ग की लोकेशन और उसके फ़ायदों का पूरी तरह से उपयोग किया है. उनके अनुसार, इस यात्रा से चीन की ज़रूरतें पूरी करने में मदद मिलेगी.

चीनी सरकार के अख़बार 'चाइना डेली' ने हॉन्ग कॉन्ग के भविष्य के बारे में सकारात्मक उम्मीद जताई है. उसने लिखा कि सऊदी अरब और यूएई की यात्रा से 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' को लागू करने में और आसानी होगी.

हॉन्ग कॉन्ग की सरकार से जुड़े 'ता कुंग पाओ' अख़बार ने लिखा कि मध्य पूर्व की कंपनियों को इस परियोजना के साथ जोड़ने में हॉन्ग कॉन्ग का योगदान सराहनीय है.

वहीं 'साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट' ने लिखा कि मध्य पूर्व की कई छोटी बड़ी कंपनियों के चीन की इस परियोजना से जुड़ने की उम्मीद है.

यह परियोजना हॉन्ग कॉन्ग और ग्वांगडॉन्ग के मकाउ से भी जुड़ने वाली है. इसलिए यहां की सरकारें इसे लेकर काफ़ी उत्साहित हैं.

जो बाइडन

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पश्चिमी देशों पर निर्भरता कम करने की कोशिश

हॉन्ग कॉन्ग की पूर्व सीईओ कैरी लैम की तुलना में मौजूदा सीईओ जॉन ली ने विकासशील देशों के साथ घनिष्ठ आर्थिक संबंध बनाने पर ज़ोर दिया है.

कैरी लैम ने 2017 में सिंगापुर का दौरा किया था और कहा था कि वो सिंगापुर की नकल करना चाहती हैं. उन्होंने कहा था कि उनकी सरकार हॉन्ग कॉन्ग की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में सक्रिय भूमिका निभाएगी.

हालांकि मौजूदा सीईओ जॉन ली सिंगापुर को एक प्रतियोगी के दौर पर देखते हैं. उन्होंने कहा कि कोविड-19 प्रतिबंधों को छोड़ने और दुनिया के लिए अपने दरवाज़े खोल देने के बाद सिंगापुर की सरकार हांगकांग की तुलना में बेहतर स्थिति में है.

जॉन ली का मानना है कि सिंगापुर से आगे निकलने के लिए खाड़ी के देशों के साथ बेहतर रिश्ते बनाना ज़रूरी है. उन्होंने कहा कि उनका अगला गंतव्य एशियाई देश होंगे.

नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर में एसोसिएट प्रोफेसर अल्फ्रेड वू ने हॉन्ग कॉन्ग के अख़बार 'मिंग पाओ' को बताया कि मध्य पूर्व और एशिया पर हॉन्ग कॉन्ग का फोकस, चीन की नीति के अनुरूप है.

सरकार समर्थक 'सिंग ताओ' नामक अख़बार के अनुसार, अमेरिका और यूरोपीय देशों ने पिछले कुछ सालों में हॉन्ग कॉन्ग पर लगातार आरोप लगाया है. इस कारण उसे नए बाज़ारों की ज़रूरत है.

हालांकि मध्य पूर्व के देशों के साथ सहयोग बढ़ाने पर कुछ संदेह भी पैदा होते हैं.

हॉन्ग की एक न्यूज़ एजेंसी ने दावा किया कि अमेरिका के दबाव के कारण चीन की मुद्रा युआन को लेकर चीन और सऊदी अरब के बीच कोई समझौता नहीं हो पाया है. एजेंसी का मानना है कि इस बारे में कोई सहमति बन पाना मुश्किल ही होगा.

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