ख़तने की रस्म यहूदियों में क्यों बची रही और ईसाइयों ने इसे क्यों छोड़ दिया?

    • Author, फ़ेलेपे याम्बयास
    • पदनाम, बीबीसी न्यूज़,मुंडो

अपने जन्म के आठवें दिन हज़रत ईसा (ईसा मसीह) का भी ख़तना किया गया मगर उनके बाद आने वालों ने इस रस्म को त्याग दिया.

हालांकि यहूदियों और ईसाइयों में कई परंपराएं अब भी साझा हैं. उदाहरण के लिए महत्वपूर्ण दिनों में की जानी वाली सामूहिक उपासना.

ईसाई लोग क्यों अपने नवजात बच्चों का ख़तना नहीं करते, इसका जवाब बाइबल में मौजूद है.

बाइबल के 'न्यू टेस्टामेंट' के अनुसार, यहूदी और ईसाई धर्म में ख़तने के बारे में विपरीत विचार सन 50 ईस्वी में आया और सेंट पॉल और सेंट पीटर के बीच इस विषय पर जमकर बहस हुई.

कैथॅलिक यूनिवर्सिटी ऑफ़ उरुग्वे में धार्मिक दर्शन के प्रोफ़ेसर मैगील पास्तोरीनो ने बीबीसी मुंडो सर्विस को बताया, "यह गिरजाघर का पहला संस्थागत विवाद था."

सेंट पॉल को उस समय तक सेंट या संत का दर्जा नहीं दिया गया था और वह मात्र पॉल ऑफ़ तरसूस के नाम से जाने जाते थे.

पॉल शुरू में हज़रत मूसा (मोसेस) की शरीअत (विधान) के फ़रीसी यानी विधि-विधान वेत्ता थे और ईसा मसीह के अनुयायियों को सताया करते थे.

मगर फिर बाइबल के अनुसार, वह बदल गए और उन्होंने पूरी दुनिया में यीशु मसीह का संदेश फैलाया. गलील या अल जलील शहर से संबंध रखने वाले पीटर नाज़रेथ या अल नासिरा शहर से संबंध रखने वाले यीशु मसीह की तरह पॉल भी यहूदी मसीही थे और इसलिए उनका ख़तना हुआ था.

उस समय तक यहूदी धर्म वह एकमात्र धर्म था जो एक ख़ुदा की इबादत का प्रचार किया करता था जबकि यूनानी, रोमन और मिस्री उस समय कई ख़ुदाओं पर आस्था रखते थे.

यहूदियों के अनुसार ख़ुदा ने इब्राहीम (अब्राहम) से कहा, "तुम्हें मेरे और तुम्हारे और तुम्हारी नस्लों के बीच इस समझौते का पालन करना होगा कि तुम में से हर मर्द का ख़तना किया जाए. यहूदियों के अलावा मुसलमान भी आज तक ख़तने की रस्म जारी रखे हुए हैं.

ख़तने की ऐतिहासिक स्थिति

जननांग पर से पतली झिल्ली को उतार देने की परंपरा को ख़तना कहा जाता है और इसकी शुरुआत धर्मों से भी पहले हुई थी.

यह दुनिया की प्राचीनतम शल्य क्रिया है. हालांकि इस बारे में कोई विस्तृत साक्ष्य उपलब्ध नहीं है मगर पेडियाट्रिक (शिशु) सर्जन अहमद अल सलीम की किताब 'ऐन इलस्ट्रेटेड गाइड टू पेडियाट्रिक यूरोलॉजी' के अनुसार, माना जाता है कि यह 15 हज़ार साल पहले मिस्र में शुरू हुई थी.

अल सलीम बताते हैं कि कैसे कई समाजों ने सफ़ाई से लेकर बालिग़ होने तक की रस्मों जैसी अलग-अलग वजहों से ख़तने का रिवाज जारी रखा जिसका मक़सद ख़ुदा को ख़ुश करना या अपनी सांस्कृतिक पहचान का इज़हार करना होता था.

मैगील पास्तोरीनो कहते हैं, "धर्म का हर क्षेत्र पर शासन था, सफ़ाई-सुधराई से लेकर भोजन, यौन संबंध और राजनीति- हर चीज़ पर. किसी सभ्यता में जन्म लेने वाली हर चीज़ की तरह धार्मिक व्यवस्था भी उनके साथ ही जन्म लेती है और प्राचीन काल में उन्हें अलग करना मुश्किल था.''

''जब उन्हें सफ़ाई के किसी ढंग पर क़ानून बनाना होता था तो उसके लिए भी धर्म का इस्तेमाल किया जाता क्योंकि क़ानून ख़ुदा का क़ानून था, उसके अलावा कोई क़ानून नहीं था."

यहूदी धर्म में इस विचार को नकारा नहीं जाता लेकिन यह कुछ अंतर के साथ मौजूद है.

रब्बी डेनियल डोलेंसकी कहते हैं, "कुछ ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि धार्मिक दृष्टि के अलावा साफ़-सफ़ाई में इसकी भूमिका की वजह से लोग अधिकांशतः इस पर अमल करने लगे लेकिन अगर हम यह न भी जान पाएं कि यह धार्मिक कारण से शुरू हुआ या सिर्फ़-सफ़ाई के लिए, ख़तना और स्वास्थ्य व स्वच्छता के बीच एक निर्विवाद संबंध है."

प्राचीन काल में सुमेरी और सेमेटिक समाजों में ख़तने किए जाते थे मगर सन 2007 में संयुक्त राष्ट्र के एड्स प्रोग्राम की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन संस्कृतियों से दूर माया और एस्टीक समाजों में भी इस पर अमल किया जा रहा था.

लेकिन व्यापक पैमाने पर प्रचलित होने के बावजूद इस रस्म को हर किसी ने स्वीकार नहीं किया था.

प्राचीन यूनान में व्यायाम का बहुत महत्व था और पुरुष नग्नता को बहुत पसंद किया जाता था. उस समाज में जननांग की खाल को सौंदर्य का प्रतीक समझा जाता था और ख़तने को अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था.

अमेरिका की एसोसिएशन फ़ॉर हिस्ट्री ऑफ़ मेडिसिन और जॉन हापकिंस इंस्टीट्यूट फ़ॉर हिस्ट्री ऑफ़ मेडिसिन की एक पत्रिका 'बुलेटिन ऑफ़ हिस्ट्री ऑफ़ मेडिसिन' के लिए सन 2001 में एक आलेख में फ़्रेडरिक एम हॉजेज़ ने लिखा, "लंबी और क्रमशः पतली होती हुई खाल को पसंद करना वास्तव में सांस्कृतिक पहचान, नैतिकता, स्वीकार्य रवैयों, सदाचार, सौंदर्य और स्वास्थ्य की चाहत का प्रतीक था."

इसलिए ख़तना न किए गए जननांग की झिल्ली अगर छोटी होती और पूरे जननांग पर न होती तो उसे त्रुटि माना जाता था.

कनाडा के मैकमास्टर डिविनिटी कॉलेज में न्यू टेस्टामेंट की प्रोफ़ेसर सन्थिया लॉन्ग वेस्टफ़ॉल अपनी किताब 'पॉल एंड जेंडर' में लिखती हैं, "यूनानी दौर में यहूदियों के लिए ख़तने की परंपरा पर चलना समस्या बन गई थी क्योंकि यहूदी प्रचलित संस्कृति से सामंजस्य बिठाना चाहते थे."

"इसके अलावा एक ऐसा दौर भी था जब ख़तना करना ग़ैरक़ानूनी घोषित किया गया था."

सेंट पॉल और सेंट पीटर का मतभेद

यहूदी अपने धर्म का प्रचार करके दूसरे लोगों को यहूदी नहीं बनाया करते थे मगर ईसा मसीह ने अपने अनुयायियों को अपनी शिक्षा को संभव हद तक आगे फैलाने के लिए कहा.

पॉल जो संभव तौर पर अपनी जवानी के शुरुआती वर्षों में यरुशलम आए थे और उन्होंने अपना बचपन यूनानियों के बीच गुज़ारा था, वह यीशु मसीह के बाद प्रथम श्रेणी के प्रचारकों में शामिल हुए.

उन्होंने उन क्षेत्रों का दौरा किया जो अब इसराइल, लेबनान, सीरिया, तुर्की, यूनान और मिस्र हैं और कभी सिकंदर महान के साम्राज्य का हिस्सा रह चुके थे. उन्होंने ईसा मसीह का संदेश उन लोगों में फैलाया जो ग़ैर यहूदी थे.

प्रोफ़ेसर सन्थिया लॉन्ग वेस्टफ़ॉल कहती हैं कि ग़ैर यहूदी लोगों के निकट ख़तना करना यौन अंगों को कुचलकर ख़त्म करने जैसा था. "इसलिए यूनानी रोमी दुनिया में ख़तनों के साथ एक बहुत बड़ी बदनामी जुड़ी हुई थी और बालिग़ होने वाले मर्दों के लिए यह एक दर्दनाक समय होता था."

अपनी शिक्षा में पॉल ने लोगों को बताया था कि उन्हें ख़तना नहीं करवाना चाहिए बल्कि उन्होंने कहा कि मुक्ति प्राप्ति के लिए सिर्फ़ आस्था का होना ज़रूरी है.

उन्होंने कुरन्थियों को अपने पहले पत्र में लिखा, "मैं सभी गिरजाघरों में इस रस्म की बुनियाद डालता हूँ. क्या किसी का ख़तना हो चुका है? वह उसे न छिपाए."

"क्या किसी का ख़तना नहीं हुआ है? वह ख़तना न करवाए. ख़तना करने या न करने से कोई अंतर नहीं पड़ता. जो बात महत्वपूर्ण है वह ईश्वर के आदेशों का पालन करना है."

मैगील पास्तोरीनो ने कहा, "तरसूस के पॉल एक यहूदी थे. वह एक रोमी (इटली की राजधानी रोम के) नागरिक थे. उनकी संस्कृति यूनानी थी और वह अत्यंत शिक्षित व्यक्ति थे और तीनों संस्कृतियों यानी यहूदी, यूनानी और रोमी पर समान अधिकार रखते थे और उनका अनुवाद करना भी जानते थे."

पॉल ने गलतियों के नाम अपने पत्र में हज़रत मूसा की शरीअत का उल्लेख किया जिसमें ख़तना के आदेश थे और कहा, "यीशु ने हमें क़ानून की पकड़ से मुक्ति दिलवा दी है."

मगर दूसरे अनुयायियों ने उनकी यह राय नहीं मानी.

मसीही बाइबल में मौजूद अपने पत्र में पॉल ने लिखा, "कई विद्रोही, बदमाश और धोखेबाज़ हैं, विशेष कर जो ख़तने का समर्थन करते हैं. तुम्हें उनका मुंह बंद करना पड़ेगा."

पॉल के अनुसार, पीटर ग़ैर यहूदियों के साथ खाना खाया करते थे मगर जब अनुयायी जेम्स यानी याक़ूब का एक प्रतिनिधिमंडल शहर में आया तो वह उनसे अलग होने लगे "क्योंकि उन्हें ख़तना के समर्थकों का डर था."

उन्होंने ग़लतियों को बताया, "मैंने इस निंदनीय रवैये पर उसे टोका."

"मैंने पीटर को सबके सामने कहा, ''अगर तुम, एक यहूदी, ऐसे रह रहे हो जैसे कि यहूदी नहीं हो, तो फिर तुम ग़ैर यहूदियों को यहूदी धर्म पर चलने के लिए क्यों मजबूर करते हो?"

जब इस मामले पर सहमति हुई

'न्यू टेस्टामेंट' के अनुसार, कुछ यहूदी मसीही जो इस परंपरा और हज़रत ईसा की शरीअत पर अमल कर रहे थे, वह अंताकिया गए और वहां आरंभिक ईसाइयत की ओर आकर्षित होने वाले ग़ैर यहूदियों से कहा कि अगर उन्होंने ख़तना नहीं करवाया तो वह मुक्ति नहीं पा सकेंगे.

इसलिए पॉल वापस येरुशलम आए और इस समस्या के हल के लिए अनुयायियों की एक बैठक हुई जिसे काउंसिल ऑफ येरुशलम कहा जाता है.

वहां पॉल ने यहूदी राज्य से बाहर अपने हाथ पर ईसाइयत स्वीकार करने वालों की संख्या से आगाह किया और उनकी राय को प्राथमिकता दी गई.

अनुयायी जेम्स आरंभिक तौर पर इसके विरोधी थे मगर बाद में वह इसके समर्थक हो गए जिन्होंने कहा, "हमें ग़ैर यहूदियों को ईश्वर की ओर आने से रोकना नहीं चाहिए."

पीटर ने भी यह राय मान ली. "वह क्यों उन आस्थावानों की गर्दन पर बोझ डालकर ईश्वर को नाराज़ करना चाहते हैं जो न हम और न हमारे पूर्वज उठा सकेंगे. ऐसा नहीं हो सकता."

इसके बाद यह विवाद अनुयायियों के बीच समझौते पर समाप्त हुआ. पास्तोरीनो बताते हैं कि पॉल ने मूर्ति पूजने वालों के बीच धर्म प्रचार जारी रखा और पीटर व जेम्स यहूदियों को धर्म की शिक्षा देते रहे.

बाइबल के अनुसार, अनुयायियों ने इसके बाद अंताकिया मिस्र, सीरिया और सलीसिया (क़ैलीक़ीया, वर्तमान तुर्की) के ग़ैर यहूदियों के नाम एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने लोगों को बताया कि उन्होंने निर्णय लिया है कि बुतों को दी गई बलि, ख़ून, गला घोटकर मारे गए जानवरों और यौन दुराचार के अलावा कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा."

जब यह पत्र अंताकिया पहुंचा तो आस्था रखने वाले लोगों ने उसे पढ़ा और ख़ुशी मनाई कि उन्हें अब ख़तना नहीं करवाना होगा.

प्रोफ़ेसर सन्थिया वेस्टफ़ॉल कहती है कि पॉल ग़ैर यहूदी मर्दों में एक हीरो बन गए और उन्होंने इंजील (यहूदी धार्मिक पुस्तक) की शिक्षा के फैलाव में एक बड़ी रुकावट दूर कर दी थी.

ख़तना कराए ईसाई

मसीही गिरजाघर की ओर से मूसा के विधान के प्रतिबंध ख़त्म किए जाने के बावजूद अफ़्रीका में कई क्षेत्र हैं जहां ख़तना एक रस्म है. मिस्र में क़िबती ईसाई, इथियोपिया में पुरातन पंथी ईसाई और केन्या में नोमिया चर्च इसके कुछ उदाहरण है.

और धार्मिक कारणों के अलावा भी दुनिया में पांच ऐसे देश हैं जहां ईसाई संस्कृति होने के बावजूद अधिकतर लड़कों का ख़तना हुआ है.

उनमें से एक अमेरिका है. सन 1870 में अमेरिकी मेडिकल एसोसिएशन के संस्थापक सदस्य डॉक्टर लुईस सायर कुछ रोगों की रोकथाम या इलाज के लिए ख़तना करने लगे.

अहमद अल सलीम कहते हैं कि उनके वैज्ञानिक शोधों और ख़तने के लिए उनके समर्थन के कारण लगभग सभी नवजात बच्चों का ख़तना किया जाने लगा.

अमेरिका से यह परंपरा कनाडा और ब्रिटेन पहुंची और इसके बाद न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया में भी फैल गई.

फिर कई देशों में लाभ और हानि पर होने वाले वैज्ञानिक मतभेदों के कारण नवजात बच्चों के ख़तने बंद कर दिए गए मगर अमेरिका में अब भी अधिकतर मर्द ख़तना कराए हुए होते हैं.

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