भारत ने संयुक्त राष्ट्र में श्रीलंका को घेरा, चीन बचाव में उतरा

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- Author, टीम बीबीसी हिन्दी
- पदनाम, नई दिल्ली
पिछले महीने चीनी युद्धपोत 'यूआन वांग 5' के श्रीलंका पहुंचने के बाद से भारत और श्रीलंका के बीच आपसी रिश्तों में दूरियां आने के लगातार संकेत मिल रहे हैं.
भारत सरकार ने श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह में इस युद्धपोत के रुकने पर सार्वजनिक रूप से चिंता ज़ाहिर की थी. इसके बाद भी श्रीलंका सरकार ने इस युद्धपोत को हंबनटोटा में रुकने की इजाज़त दी.
इसके कुछ हफ़्तों बाद ही भारत सरकार ने बीते सोमवार को श्रीलंका के तमिल समुदाय के मानवाधिकारों के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार संस्था यूएनएचसीआर में श्रीलंका को घेरा है.
श्रीलंका ने अपने बचाव में कहा है कि वह मानवाधिकारों को सहेजने और उनके विकास की दिशा में काम कर रहा है.
चीन ने इस मुद्दे पर श्रीलंका का बचाव करते हुए भारत का नाम लिए बग़ैर कहा है कि वह मानवाधिकारों के नाम पर श्रीलंका के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का विरोध करता है.

श्रीलंकाः कुछ अहम तथ्य

- भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका 1948 में ब्रिटेन से आज़ाद हुआ.
- श्रीलंका की आबादी क़रीब 2 करोड़ 20 लाख है, सिंहला बहुसंख्यक हैं, तमिल और मुसलमान अल्पसंख्यक
- राजपक्षे परिवार पिछले कई वर्षों से सत्ता में रहा है
- 1983 में तमिल विद्रोही संगठन एलटीटीई और सरकार के बीच गृहयुद्ध छिड़ा
- भारत सरकार ने 1987 में उत्तरी श्रीलंका में शांति स्थापित करने के उद्देश्य से अपनी शांति सेना भेजी
- 2005 में प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे राष्ट्रपति चुनाव में विजयी रहे
- 2009 में एलटीटीई के साथ लंबा युद्ध समाप्त हुआ, तमिल विद्रोही हारे, महिंदा राजपक्षे नायक बनकर उभरे
- तब गोटाबाया राजपक्षे रक्षा मंत्री थे जो 2019 में राष्ट्रपति बने, वे महिंदा राजपक्षे के छोटे भाई हैं
- 2022 में कई महीनों के ज़बर्दस्त विरोध के बाद पहले महिंदा राजपक्षे ने प्रधानमंत्री पद से और फिर गोटाबाया ने राष्ट्रपति पद से इस्तीफ़ा दिया
- रनिल विक्रमसिंघे पहले प्रधानमंत्री और फिर राष्ट्रपति बनाए गए, वो 2024 तक पद पर रहेंगे
- श्रीलंका में राष्ट्रपति देश, सरकार और सेना प्रमुख होता है

भारत ने इस मामले में क्या कहा?

संयुक्त राष्ट्र (यूएनएचसीआर का मुख्यालय जेनेवा) में भारत के स्थाई प्रतिनिधि इंद्रमणि पांडेय ने कहा है कि भारत सरकार हमेशा से ये मानती रही है कि यूएन चार्टर के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए मानवाधिकारों एवं रचनात्मक अंतरराष्ट्रीय संवाद एवं सहयोग को बढ़ाना देशों की ज़िम्मेदारी है.
श्रीलंका में रहने वाले तमिल समुदाय के प्रति अपनी चिंताएं ज़ाहिर करते हुए भारत ने कहा कि श्रीलंका ने नस्लीय समस्या के निदान के लिए जिस राजनीतिक हल को अमल में लाने की बात की थी, उस दिशा में अब तक पर्याप्त प्रगति नहीं हुई है. ये संविधान के 13वें संशोधन के ज़रिए किया जाना था जिससे प्रांतीय परिषदों को शक्ति मिले और जल्द से जल्द प्रांतीय परिषदों के चुनाव हों.
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भारतीय राजनयिक ने ये भी कहा कि भारत मानता है कि श्रीलंका में शांति और सुलह का रास्ता संयुक्त श्रीलंका के ढांचे के तहत राजनीतिक समाधान से होकर गुजरता है जिसमें श्रीलंका के तमिल समुदाय के लिए न्याय, शांति, समानता और सम्मान सुनिश्चित हो.

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श्रीलंका अपने बचाव में क्या बोला?

श्रीलंका के विदेश मंत्री एमयूएम अली सबरी ने यूएनएचसीआर में कहा है कि उनकी सरकार मानवाधिकारों के संरक्षण की दिशा में काम कर रही है.
उन्होंने कहा, "तमाम चुनौतियों के बावजूद, श्रीलंका स्वतंत्र लोकतांत्रिक संस्थाओं के ज़रिए मानवाधिकारों के संरक्षण और सुलह की दिशा में आंकी जा सकने वाली प्रगति करने के लिए समर्पित है."
उन्होंने कहा है कि एशिया के सबसे पुराने लोकतांत्रिक समुदायों में से एक श्रीलंका के लोगों ने अपने लोकतांत्रिक मूल्यों को कायम रखते हुए दृढ़ता और चुनौतियों को झेलने की क्षमता का परिचय दिया है.
सबरी ने कहा कि "इस समय श्रीलंका की प्राथमिकता अर्थव्यवस्था को पटरी पर लौटाना है. लेकिन श्रीलंकाई लोगों के मानवाधिकारों को आगे बढ़ाना भी हमारे लिए इतना ही ज़रूरी है."

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इस मुद्दे पर क्या बोला चीन?

भारत की ओर से घेरे जाने के बाद चीन ने श्रीलंका का समर्थन किया है.
संयुक्त राष्ट्र में चीन के स्थायी प्रतिनिधि चेन शू ने यूएनएचसीआर में दिए अपने बयान को ट्विटर पर साझा करते हुए लिखा है, "मैंने श्रीलंका की संप्रभुता और स्वतंत्रता की सुरक्षा के प्रति अपना मजबूत समर्थन जाहिर किया है. मैं सभी पक्षों से आग्रह करता हूं कि वे विकास के लिए स्वतंत्र रूप से रास्ता चुनने के श्रीलंका के अधिकार का सम्मान करें."
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चीनी के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने भी ट्वीट करके चेन शू का बयान जारी किया है.
इस बयान में लिखा गया है, "चीन मानवाधिकारों को बढ़ाने एवं उनके संरक्षण की दिशा में श्रीलंका के प्रयासों की सराहना करता है और मानवाधिकारों के ज़रिए श्रीलंका के आंतरिक मामलों में दखल देने की कोशिशों का विरोध करता है."
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भारत का पलटवार?

भारत और श्रीलंका के रिश्तों पर नज़र रखने वाले विश्लेषक भारत की इस प्रतिक्रिया को बेहद दिलचस्पी से देख रहे हैं.
क्योंकि इसी बयान में भारत ने ये भी कहा है कि 'श्रीलंका के मौजूदा संकट ने ऋण आधारित अर्थव्यवस्था की सीमाओं को उजागर कर दिया है और जीवन स्तर पर इसके असर को भी सामने ला दिया है."
विश्लेषक इसे नाम लिए बग़ैर चीन की ओर संकेत बता रहे हैं.
तक्षशिला संस्थान से जुड़े यूसुफ़ उंझावाला ने एक ट्वीट करके लिखा है, "भारत ने श्रीलंका में तमिल समुदाय की समस्याओं के राजनीतिक हल की दिशा में पर्याप्त प्रगति नहीं होने पर चिंता जताई है. इसके साथ ही कर्ज के बोझ तले दबी अर्थव्यवस्था के संकट पर भी बात की है. ये घटनाक्रम हंबनटोटा में चीनी युद्धपोत आने एवं भारत द्वारा इस पर सार्वजनिक रूप से चिंता व्यक्त करने के कुछ दिन बाद सामने आया है."
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अब तक भारत का रुख क्या रहा?

भारत सरकार एक लंबे समय से श्रीलंका में रहने वाले तमिल समुदाय के मुद्दों के राजनीतिक समाधान के लिए श्रीलंका सरकार पर दबाव बनाती आ रही है.
भारत सरकार चाहती है कि श्रीलंका 1987 में हुए भारत-श्रीलंका समझौते के तहत लाए गए 13वें संशोधन को पारित करे.
लेकिन श्रीलंका के सत्तारूढ़ दल श्रीलंका पीपुल्स पार्टी के बहुमत वाले सिंघला समुदाय के कट्टरपंथी नेता साल 1987 में बनाए गए प्रांतीय परिषद व्यवस्था को पूरी तरह ख़त्म करने के पक्षधर हैं.
लेकिन भारत इस मुद्दे पर इस तरह सार्वजनिक रूप से अपना पक्ष रखने से बचता रहा है.
इससे पहले 23 मार्च, 2021 को संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार एजेंसी यूएनएचसीआर में श्रीलंका के ख़िलाफ़ लाए गए एक प्रस्ताव में भारत मतदान की प्रक्रिया से दूर रहा था.
ये प्रस्ताव एक ऐसे समय आया था जब तमिलनाडु विधानसभा चुनाव की ओर बढ़ रहा था और श्रीलंकाई तमिल समुदाय का मुद्दा स्थानीय राजनीति में काफ़ी अहम है.
पर तमाम सकारात्मक राजनीतिक समीकरणों के बावजूद भारत ने इस वोटिंग प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लिया.
लेकिन चीनी युद्धपोत 'यूआन वांग 5' के श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर खड़े होने से जुड़ी चिंताएं सार्वजनिक रूप से दर्ज कराने के बाद भी उसे इजाज़त मिलने के बाद भारत का रुख़ बदलता दिख रहा है.
हालांकि, भारत सरकार हाल ही में श्रीलंका की आर्थिक संकट से उबरने में मदद करने के लिए उसे 3.8 अरब डॉलर की आर्थिक मदद दे चुकी है.
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