You’re viewing a text-only version of this website that uses less data. View the main version of the website including all images and videos.
चीन विमानवाहक युद्धपोत, परमाणु ज़ख़ीरे और हथियारों की दौड़ में कैसे आगे निकल सकता है
चीन तेज़ रफ़्तार से अपनी सेनाओं को मज़बूत कर रहा है. हाल ही में चीन ने एक एयरक्राफ़्ट कैरियर (विमानवाहक युद्धपोत) तैनात किया है.
कई पश्चिमी विश्लेषक अब ये मानते हैं कि सैन्य ताक़त के वैश्विक संतुलन में अब पलड़े बदल रहे हैं.
राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन की सेनाओं का साल 2035 तक आधुनिकीकरण करने का आदेश दिया है.
शी जीनपिंग ने कहा है कि चीन की सेनाएं विश्व स्तर की सैन्य शक्ति बनेंगी और साल 2049 तक उनके पास युद्ध लड़ने और जीतने की क्षमता होगी.
चीन के राष्ट्रपति शी ज़िनपिंग ने देश की आंतरिक सुरक्षा को लेकर चिंता ज़ाहिर की है. साथ ही ये चेतावनी भी दी है कि दुनिया की सबसे बड़ी और सशक्त सेना की श्रेणी में कोई दूसरा देश उसे चुनौती न दे, ये सुनिश्चित करने के लिए चीनी सेना का नेतृत्व केवल सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति वफादार "विश्वसनीय लोगों" को ही देना चाहिए.
आगामी 1 अगस्त को चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के गठन को 95 साल पूरे हो जाएंगे.पीपुल्स लिबरेशन आर्मी दुनिया की सबसे बड़ी सेना है.
इससे पहले गुरुवार को सेना के प्रशिक्षण और मज़बूती को लेकर आयोजित की गई एक स्टडी सेशन में बोलते हुए चीन के राष्ट्रपति ने कहा, "हमें सैन्यकर्मियों की नियुक्ति करते व़क्त राजनीतिक अखंडता पर ज़ोर देना चाहिए, ताकि सेना पर पार्टी का पूर्ण नेतृत्व बरकरार रहे."
अपने वक्तव्य में ज़िनपिंग ने युद्ध की आहट और दुनिया में जारी अशांति की ओर इशारा करते हुए कहा कि सैन्यकर्मियों का केवल एक मकसद होना चाहिए कि वो मिलकर एक ऐसी सेना तैयार करें जो लड़ने और जीतने में सक्षम हों. देश राष्ट्रीय सुरक्षा में बढ़ती अस्थिरता और अनिश्चितता का सामना कर रहा है.
दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना लेकिन सबसे शक्तिशाली नहीं
इसी साल जून में शंघाई में फूजियान को लॉन्च किया गया था, जो टाइप 003 विमानवाहक युद्धपोत है. ये चीन में निर्मित अब तक का सबसे उन्नत युद्धपोत है.
ये पोत चीन की नौसेना का तीसरा विमानवाहक पोत है लेकिन बाक़ी दो से ये इसलिए अलग है क्योंकि इसे चीन के इंजीनियरों ने ही डिज़ाइन किया है.
सैन्य विश्लेषकों का कहना है कि फूजियान का इलेक्ट्रोमैगनेटिक एयरक्राफ्ट लांच सिस्टम चीन की नौसेना के लिए एक बड़ा क़दम है. इससे युद्धपोत से विमान बहुत कम समय में उड़ान भर सकेंगे और भारी लड़ाकू विमानों को भी पोत पर तैनात किया जा सकेगा.
अभी ये स्पष्ट नहीं है कि फूजियान के सभी परीक्षण करने और उसे पूरी तरह हथियारों से लैस करने में कितना समय लगेगा और ये सेवा में कब लागू होगा. लेकिन ये उस नौसैनिक बेड़े का हिस्सा होने जा रहा है, जो 2014 में अमेरिकी नौसेना को पीछे छोड़कर दुनिया की बसे बड़ी नौसेना बन गई थी.
हालांकि सिर्फ़ युद्धपोतों की संख्या की तुलना करने से नौसेना की क्षमता को तय करने वाले कई अन्य कारकों की अनदेखी हो सकती है लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि इसकी समीक्षा करने से कई नए ट्रेंड पता चलते हैं.
अभी नौसेना की क्षमताओं के मामलों में कई स्तर पर अमेरिका काफ़ी आगे है. अमेरिका के पास 11 विमानवाहक युद्धपोत हैं जबकि चीन के पास तीन हैं. यही नहीं परमाणु संपन्न पनडुब्बियां, क्रूज़र और विध्वंसक युद्धपोत भी अमेरिका के पास अधिक हैं.
लेकिन चीन अभी अपनी नौसेना का और विस्तार करने जा रहा है.
अमेरिकी नौसेना के अनुमान के मुताबिक साल 2020 से 2040 के बीच चीन की नौसेना में युद्धपोतों की संख्या 40 फ़ीसदी तक बढ़ जाएगी.
बीजिंग की शिंगुआ यूनिवर्सिटी से जुड़े चीन की सेना के पूर्व वरिष्ठ कर्नल झाऊ बो मानते हैं कि चीन के सामने समंदर आधारित जो ख़तरे हैं उनसे निबटने के लिए चीन की नौसेना का विस्तार 'रणनीतिक रूप से बेहद अहम है.'
वो ख़ासतौर पर कहते हैं, "चीन के जल क्षेत्र में हम जिस अमेरिकी चुनौती का सामना कर रहे हैं वहीं हमारे लिए सबसे बड़ी समस्या है."
आधुनिकीकरण पर हो रहा बड़ा निवेश
कई अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ रक्षा से जुड़े आंकड़ों के लिए चीन की आलोचना करते हैं. इनका मानना है कि इसे लेकर चीन में 'पारदर्शिता की कमी' है और उसके 'आंकड़े सही नहीं होते.'
हालांकि चीन रक्षा क्षेत्र पर होने वाले ख़र्च के आधिकारिक आंकड़े प्रकाशित करता है, पर पश्चिम के अनुमान अक्सर इससे काफ़ी अधिक होते हैं.
यह सब मानते हैं कि वर्तमान में सेना पर होने वाले ख़र्च के मामले में चीन से आगे केवल अमेरिका ही है.
सेंटर फ़ॉर स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज़, वॉशिंगटन की एक जानी-मानी संस्था है. इसके अनुसार चीन के रक्षा बजट में हाल में जो वृद्धि हुई है, वह अपनी अर्थव्यवस्था के विकास के लिहाज से कम से कम एक दशक आगे चली गई है.
परमाणु ज़ख़ीरे में तेज़ वृद्धि
बीते नवंबर में अमेरिका के रक्षा विभाग ने अनुमान लगाया कि इस दशक के अंत तक चीन अपने परमाणु भंडार को चौगुना कर लेगा. हालांकि चीन का कहना है कि "2030 तक उसके पास कम से कम 1,000 परमाणु वॉरहेड होंगे."
चीन के सरकारी मीडिया ने अमेरिका के दावे को 'मनमाना और पक्षपातपूर्ण' क़रार देते हुए कहा कि परमाणु हथियारों को 'न्यूनतम स्तर' पर रखा गया है.
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट दुनिया के परमाणु भंडार को लेकर हर साल अपना आकलन प्रकाशित करता है. उसके विशेषज्ञों का कहना है कि चीन पिछले कई सालों से अपने परमाणु हथियार बढ़ाने में लगातार जुटा हुआ है.
हालांकि चीन अभी भी अमेरिका के 5,550 परमाणु हथियारों से काफ़ी दूर है. लेकिन इसके परमाणु ढांचे को पश्चिमी देशों के वर्चस्व के लिए सबसे बड़ा ख़तरा माना जा रहा है.
लंदन के रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज़ इंस्टीट्यूट के वीरले नूवन्स इस बारे में अपनी राय रखते हैं. उनका कहना है, "चीन के परमाणु हथियार सबसे अहम मुद्दा है. दोनों पक्षों में भरोसे की भारी कमी है, लेकिन इसे दूर करने के लिए पर्याप्त बातचीत नहीं हो रही. हालांकि ख़तरे बहुत बड़े हैं."
भविष्य हाइपरसोनिक तकनीक का
हाइपरसोनिक मिसाइलें ध्वनि की गति से भी पांच गुना तेज़ी से अपने लक्ष्य पर वार करती हैं.
भले ये मिसाइलें इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों जितनी तेज़ नहीं होतीं. लेकिन उड़ान के दौरान इनका पता लगाना काफ़ी मुश्किल होता है. इसका परिणाम यह होता है कि ये कई एयर डिफ़ेंस सिस्टम को भी बेकार बना सकती हैं.
किंग्स कॉलेज लंदन के डॉक्टर जेनो लियोनी के अनुसार, "चीन समझता है कि वो बहुत पीछे हैं. इसलिए दूसरी ताक़तों को पछाड़ने के लिए वो बड़ी सफलता हासिल करने की कोशिश कर रहा है. हाइपरसोनिक मिसाइलों के विकास का प्रयास उन्हीं कोशिशों में से एक है."
हालांकि चीन हाइपरसोनिक मिसाइलों की टेस्टिंग से इनकार करता है, लेकिन पश्चिमी देशों के विशेषज्ञ ऐसा नहीं मानते. उनका कहना है कि पिछली गर्मी में चीन के किए गए दो रॉकेट लॉन्च से संकेत मिलता है कि उसकी सेना हाइपरसोनिक मिसाइल बनाने की राह पर है.
अभी यह स्पष्ट नहीं है कि चीन कौन सी हाइपरसोनिक मिसाइल बना रहा है. वैसे इसके दो मुख्य प्रकार हैं:
- हाइपरसोनिक ग्लाइड मिसाइलें जो पृथ्वी के वायुमंडल में ही उड़ती हैं.
- फ़्रैक्शनल ऑर्बिटल बॉम्बार्डमेंट सिस्टम (एफ़ओबीएस), जो लो ऑर्बिट में चली जाती हैं.
यह भी मुमकिन है कि एफ़ओबीएस युद्ध अभ्यास वाले अंतरिक्ष यान से हाइपरसोनिक मिसाइल दागकर चीन इन दोनों सिस्टम को मिलाने में कामयाब रहा हो.
हालांकि डॉक्टर लियोनी कहते हैं कि हाइपरसोनिक मिसाइलें अपने आप में 'गेम-चेंजर' नहीं हो सकतीं, लेकिन इसके चलते कई टारगेट पर हमले का ख़तरा ज़रूर बढ़ जाएगा.
वे कहते हैं, "ख़ासकर विमानवाहक पोतों को हाइपरसोनिक मिसाइलों से बचा पाना बहुत कठिन हो जाएगा.''
हालाांकि उनका यह भी कहना है कि चीन की हाइपरसोनिक मिसाइलों से ख़तरा वास्तविक होते हुए भी हो सकता है कि पश्चिम के अधिकारियों ने इसे थोड़ा बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया हो.
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और साइबर हमले
अमेरिका के रक्षा विभाग के अनुसार, चीन अब 'बुद्धिमान' हथियारों या विघटन करने वाली तकनीकों ख़ासकर आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के सहारे अपनी भविष्य की लड़ाई लड़ने के लिए ख़ुद को तैयार कर रहा है.
चीन की सैनिक विज्ञान एकेडमी को 'सिविल-मिलिट्री गठजोड़' के ज़रिये ऐसा करने का आदेश दिया गया है. दूसरे शब्दों में कहें तो चीन के निजी क्षेत्र की तकनीकी कंपनियों को देश के रक्षा उद्योगों के साथ जोड़कर काम किया जाना है.
कई रिपोर्टों के अनुसार, चीन पहले से मिलिट्री रोबोटिक्स और मिसाइल गाइडेंस सिस्टम के साथ मानवरहित एरियल व्हीकल और मानवरहित नौसैनिक जहाज़ों में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है.
हाल के एक आकलन में बताया गया कि चीन ने पहले ही विदेशों में बड़े पैमाने पर साइबर ऑपरेशन किए हैं. अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ ने जुलाई में चीन पर आरोप लगाया कि उसने माइक्रोसॉफ़्ट के एक्सचेंज सर्वरों को निशाना बनाकर एक बड़ा साइबर हमला किया था.
ऐसा माना जाता है कि इस हमले से दुनिया भर के कम से कम 30,000 संगठन प्रभावित हुए थे. इस हमले का मक़सद बड़े पैमाने पर निजी जानकारी के साथ बौद्धिक संपदा हासिल करना था.
अनिश्चित भविष्य
क्या चीन अब न भिड़ने की अपनी नीति को छोड़कर अधिक जोख़िम लेने की दिशा में आगे बढ़ रहा है?
इस बारे में डॉक्टर लियोनी कहते हैं कि फ़िलहाल चीन का नज़रिया बिना लड़े जीत हासिल करने वाला ही है. हालांकि उन्होंने कहा कि कुछ वक़्त बाद वह इस रणनीति को बदल सकता है.
उनके अनुसार, "अपनी नौसेना को पूरी तरह से आधुनिक बना लेना अहम पड़ाव हो सकता है."
हालांकि सीनियर कर्नल झाऊ ज़ोर देकर कहते हैं कि पश्चिम की आशंकाओं का कोई आधार नहीं है.
वे कहते हैं, ''अमेरिका के विपरीत चीन का पूरी दुनिया पर पुलिस लगाने का कोई इरादा नहीं है. चीन यदि कभी और मज़बूत भी हुआ तो भी वह अपनी बुनियादी नीतियों को ही बनाए रखेगा."
चीन ने 1979 के वियतनाम युद्ध के बाद से कोई युद्ध नहीं लड़ा है. इसलिए उसकी अधिकांश सैनिक क्षमताओं का कोई परीक्षण नहीं हुआ है.
(ग्राफ़िक्स: सैंड्रा रोड्रिग्ज़ चिल्लिडा, जॉय रोक्सस और सीन विलमोट द्वारा)
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूबपर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)