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अरब के युवा नामर्दी से जुड़ी दवाओं का इस्तेमाल क्यों कर रहे हैं?
- Author, होसम फ़ज़ुल्ला
- पदनाम, बीबीसी अरबी
मिस्र की राजधानी काहिरा के बीचों-बीच ऐतिहासिक बाब अल-शारिया में अपनी दवा की दुकान पर औषधि के जानकार अल-हबाशी बताते हैं कि वो उनकी जादुई घोल को क्या कहते हैं.
हबाशी ने मिस्र की राजधानी काहिरा में कामोत्तेजक और प्राकृतिक यौन इच्छा बढ़ाने के प्राकृतिक उपायों को बेचने वाले दुकानदार के रूप में अपना नाम बनाया है. हालांकि बीते कुछ वर्षों के दौरान उन्होंने अपने ग्राहकों की चाहत में बदलाव देखा है.
वो कहते हैं, "अब ज़्यादातर पुरुष नीली गोलियां ले जा रहे हैं जो पश्चिम की कंपनियों से आती हैं."
कई शोधों के मुताबिक, अरब देशों के युवा पुरुष सिल्डेनाफिल (जो व्यावसायिक रूप से वियाग्रा के रूप में जाना जाता है), वार्डेनाफिल (लेविट्रा, स्टैक्सिन) और ताडालाफिल (सियालिस) जैसी ड्रग्स का इस्तेमाल कर रहे हैं.
सुबूत होने के बावजूद, आश्चर्यजनक रूप से बीबीसी ने मिस्र और बहरीन की सड़कों पर जिस किसी भी व्यक्ति से ये पूछा कि क्या वो इरेक्टाइल से जुड़ी समस्याओं के कारण इसे ले रहे हैं तो न केवल अधिकांश युवा पुरुषों ने इससे साफ़ इनकार कर दिया बल्कि कइयों ने तो इसके बारे में किसी जानकारी के होने से भी साफ़-साफ़ इनकार कर दिया.
कुछ ने तो इस मुद्दे पर बात करने से भी इनकार कर दिया क्योंकि वे इसे समाज की नैतिकता के विपरीत मानते हैं.
सऊदी अरब लिस्ट में सबसे ऊपर
वास्तव में, 2012 में हुई एक स्टडी के मुताबिक अरब देशों में प्रति व्यक्ति एंटी इम्पोटेंसी ड्रग के मामले में मिस्र सबसे बड़ा उपभोक्ता है. सऊदी अरब इस लिस्ट में सबसे ऊपर है.
इस रिपोर्ट को छापने वाले सऊदी अख़बार अल-रियाद ने तब अनुमान लगाया था कि सऊदी अरब ने यौन इच्छा जगाने वाली गोलियों पर सालाना 1.5 बिलियन डॉलर खर्च किए थे.
उसके मुताबिक, सऊदी अरब में इसकी खपत रूस की तुलना में लगभग 10 गुना थी, जहां आबादी तब पांच गुना अधिक थी.
हाल ही में अरब जर्नल ऑफ़ यूरोलॉजी के एक शोध के मुताबिक उसमें भाग लेने वाले सऊदी युवा पुरुषों में 40 फ़ीसद ने अपने जीवन में किसी न किसी समय वियाग्रा जैसी दवा का इस्तमाल किया है.
मिस्र अब भी शीर्ष स्थान पर मौजूद है. 2021 के आंकड़ों के मुताबिक, वहां मर्दानगी रोधी दवाओं की बिक्री हर साल लगभग 127 मिलियन डॉलर है जो कि समूचे मिस्र के फ़ार्मा बाज़ार के 2.8 फ़ीसद के बराबर है.
कुछ लोग चाहते हैं कार्रवाई
नामर्दगी से जुड़ी अल-फंकौश नामक एक दवा 2014 में मिस्र के किराने की दुकानों में एक चॉकलेट बार के रूप में दिखाई दी थी.
अल-फंकौश की कीमत मिस्र के एक पाउंड के बराबर थी.
अल-फंकौश के बाज़ार में आने के कुछ दिनों बाद ही जब स्थानीय मीडिया में बताया गया कि इसे बच्चों को बेचा गया है तो इसके उत्पादक को गिरफ़्तार कर लिया गया.
एंटी-इम्पोटेंसी ड्रग का चलन युवाओं की तुलना में बड़ों में ज़्यादा प्रचलित माना जाता है.
यमन के स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक वहां 20 से 45 आयु वर्ग के बीच ये सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है.
स्थानीय रिपोर्ट से पता चलता है कि 2015 में हूती आंदोलन के विद्रोहियों और सऊदी समर्थित सरकार के बीच गृह युद्ध की शुरुआत के बाद से पार्टियों में वियाग्रा और सियालिस का उपयोग युवाओं के बीच प्रचलित हो गया.
यूरोलॉजी और प्रजनन सर्जरी से जुड़ीं ट्यूनीशियाई प्रोफ़ेसर मोहम्मद सफ़ाक्सी ने बीबीसी के साथ एक इंटरव्यू में ज़ोर देकर कहा कि इस तरह की दवाएं उत्तेजना बढ़ाने वाली नहीं हैं और अधिकांश मामलों में ये बुज़ुर्गों के इलाज में इस्तेमाल की जाती हैं.
इस बीच, मध्य-पूर्व में सेक्सुअलिटि के एक जानकार कहते हैं कि मौजूदा संस्कृति के कारण अरब के युवाएं इन दवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं.
मिस्र-ब्रिटेन की पत्रकार और सेक्स ऐंड द सिटाडेलः इंटिमेट लाइफ इन अ चेंजिंग अरब वर्ल्ड की लेखक शरीन अल फेकी के मुताबिक, "इसकी वजह कोई बड़ा कारण हो सकता है."
2017 में मध्य-पूर्व देशों में लैंगिक समानता को लेकर संयुक्त राष्ट्र समर्थित एक अहम सर्वे के नतीजों पर प्रतिक्रिया देते हुए अल-फेकी बताती हैं, "इस सर्वे में भाग लेने वाले क़रीब-क़रीब सभी प्रतिभागी भविष्य को लेकर सशंकित थे. कई लोगों ने पुरुष होने के दबाव के बारे में बताया, वहीं महिलाओं ने बताया कि कैसे आज के पुरुषों की मर्दानगी ख़त्म हो रही है."
वो कहती हैं कि सेक्स के दौरान प्रदर्शन पर सबका अधिक ज़ोर था.
ऐतिहासिक धारणाएं
अरब समाज में यौन ज़रूरतों के लिए दवाओं का इस्तेमाल एक नई मॉडर्न घटना मानी जा सकती है लेकिन कामोत्तेजक का सेवन अरब इतिहास में लोकप्रिय संस्कृति का हिस्सा रहा है.
14वीं सदी के जाने-माने मुस्लिम विद्वान और लेखक इब्न कय्यम अल-जौज़िया ने यौन इच्छा बढ़ाने के उद्देश्य से अपनी किताबों की सिरीज़ प्रोविज़न्स फॉर द हियर आफ्टर, हर्बल व्यंजनों के संग्रह में इसके बारे में लिखा.
शरीन अल फेकी कहती हैं कि अरब की परंपरा और इस्लामी रिवाजों में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अधिक प्रभावशाली और शक्तिशाली यौन इच्छा वाली देखा गया है, जबकि पुरुष अपने यौन प्रदर्शन को बरकरार रखने के लिए इसमें सुधार की ज़रूरत महसूस करते हैं.
ये अवधारणा ऑटोमन साम्राज्य के दौरान लिखी गई किताब में मिलती है. अहमद बिन सुलेमान ने 1512 से 1520 तक शासन करने वाले सुल्तान सेलिम प्रथम के अनुरोध पर 'शेख रिटर्न टू यूथ' ने इसे अपनी किताब में लिखा.
ये किताब यौन रोगों के इलाज का एक वृहद कोश थी, साथ ही इसमें पुरुषों और महिलाओं की यौन इच्छाओं को बढ़ावा देने के बारे में भी लिखा गया था.
सैकड़ों सालों बाद आज भी कई अरब युवा पुरुष इलाज की ओर रुख कर रहे हैं और बाज़ार उनके लिए जीवंत है.
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