यूक्रेन युद्ध ने क्या यमन की जंग को भुला दिया, जिसमें तीन लाख से ज़्यादा जानें गई

लड़ाई के चलते यमन में भुखमरी और ग़रीबी अपने चरम पर है.

इमेज स्रोत, MUSLIM HANDS

    • Author, कैगिल कासापोग्लू
    • पदनाम, बीबीसी न्यूज़

इस समय पूरी दुनिया का ध्यान यूक्रेन की ओर है, लेकिन दूसरी ओर मध्यपूर्व के देश यमन के हालात लगातार ख़राब होते जा रहे हैं.

रूस और यूक्रेन के बीच जारी लड़ाई के कारण यमन में महंगाई काफ़ी बढ़ गई है. साथ ही यमन के लिए धन जुटाने की कोशिश कर रहे संयुक्त राष्ट्र की कोशिश भी परवान नहीं चढ़ सकी है.

यमन के हालात को संयुक्त राष्ट्र ने कुछ वक़्त पहले 'दुनिया का सबसे बुरा मानवीय संकट' क़रार दिया था और यह संकट फिर से गहराता जा रहा है.

यमन के लिए फंड जुटाने की संयुक्त राष्ट्र की हाल की कोशिश पूरी नहीं हो सकी. संयुक्त राष्ट्र 16 मार्च को धन जुटाने की अपनी सबसे ताज़ा कोशिश में 4 अरब डॉलर से ज़्यादा की राशि जुटाने की उम्मीद कर रहा था, लेकिन अभी तक इसका एक तिहाई से भी कम जमा हो पाया है.

देश में पांच ब्रेड फैक्ट्रियां चला रहे ग़ैर-सरकारी संगठन मुस्लिम हैंड्स की प्रोजेक्ट अधिकारी सारा शावक़ी बताती हैं, "यूक्रेन में युद्ध छिड़ने के बाद से यमन में क़ीमतें दोगुनी हो गई हैं, ख़ासतौर से आटे की क़ीमत काफ़ी बढ़ गई है. पहले एक बोरे की क़ीमत 21-25 डॉलर थी, जो अब 50 डॉलर हो गई है. हमें ब्रेड मुहैया कराने के लिए दूसरी चीज़ों में कटौती करनी पड़ी है."

शावक़ी बताती हैं कि ख़ैरात पर निर्भर क़रीब 25 हज़ार लाभार्थियों में से कई परिवारों को हर दिन सिर्फ़ यही ब्रेड खाने को मिला करती है. हम असहाय लोगों, अनाथों, विकलांगों और महिलाओं की मदद कर रहे हैं.

वीडियो कैप्शन, खाने को तरसता यमन

अरब प्रायद्वीप का सबसे ग़रीब मुल्क यमन अनाज की कुल खपत का क़रीब 90 फ़ीसदी आयात करता है. ध्यान देने की बात ये है कि विश्व बैंक के अनुसार यमन का 40 फ़ीसदी गेहूं यूक्रेन और रूस से ही आता है.

यमन के शहर अदन से बीबीसी से बात करते हुए मुस्लिम हैंड्स के स्थानीय एड वर्कर ने कहा कि वे इसे लेकर काफ़ी फ़िक्रमंद हैं, क्योंकि बढ़ता ख़र्च मानवीय मदद की उनकी परियोजना में रुकावट डाल सकता है.

अदन में पांच बच्चों की मां और विधवा रायदा मोथना अली ऐसी शख़्स हैं, जो दान में मिले अनाज पर ही निर्भर हैं. सारा शावक़ी, रायदा की कही बातें अनुवाद कर हमें बताती हैं. वो कहती हैं, "मैं बुनियादी ज़रूरतों की कमी झेल रही हूं. मेरे पास कोई आय नहीं है. मुझे और मेरे बच्चों को दिन में ब्रेड के दो टुकड़े मिलते हैं और हम सिर्फ़ इतना ही खाते हैं. मुझे नहीं पता कि यदि वो हमें ब्रेड देना बंद कर दें तो मैं क्या करूंगी."

ब्रेड फ़ैक्ट्री में काम करने वाले सालाह अहवास ने हमें बताया कि उन्होंने "ताइज़ शहर में लोगों को रात में खाना तलाशने के लिए कूड़ेदान खंगालते देखा है. उन्हें कोई पहचान न ले, इसलिए वे चेहरा ढंके हुए होते हैं."

एक आकलन के अनुसार, यमन के क़रीब 50 हज़ार लोग पहले से भुखमरी जैसे हालात का सामना कर रहे हैं. वहीं 50 लाख लोग भुखमरी के कगार पर खड़े हैं.

पर्यवेक्षकों का कहना है कि राजनीतिक और आर्थिक हल के बिना हालात और भी ख़राब होने की आशंका है.

मुस्लिम हैंड्स नामक संस्था का कहना है कि वो क़रीब 25 हज़ार लोगों को ब्रेड बांटती है.

इमेज स्रोत, MUSLIM HANDS

इमेज कैप्शन, मुस्लिम हैंड्स नामक संस्था का कहना है कि वो क़रीब 25 हज़ार लोगों को ब्रेड बांटती है.

यमन के हालात इतने ख़राब कैसेहुए?

यमन में 2014 के अंत में युद्ध शुरू हो गया. उस वक्त हूती विद्रोहियों ने देश के सबसे बड़े शहर और राजधानी सना पर क़ाबू कर लिया.

हूती आमतौर पर शिया मुसलमानों के ज़ायदी संप्रदाय से आते हैं और माना जाता है कि उनके पीछे ईरान का समर्थन है.

उन्होंने जिस सुन्नी सरकार के ख़िलाफ़ विद्रोह किया, उसका नेतृत्व राष्ट्रपति अब्दरब्बू मंसूर हादी कर रहे थे. हादी ने अरब स्प्रिंग क्रांति के बाद लंबे समय से सत्ता पर क़ाबिज़ पूर्व राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह से फ़रवरी 2012 में सत्ता छीनी थी.

देश बदलाव के दौर से गुज़र रहा था और हादी स्थिरता लाने के लिए जूझ रहे थे. उसी समय सेना दो फाड़ हो गई और अलगाववादी दक्षिण में लामबंद हो गए.

हूतियों ने इस उथल-पुथल का फ़ायदा उठाया और ज़्यादा इलाकों पर कब्ज़ा कर लिया. एक संघीय संविधान के साथ सत्ता में साझेदारी के समझौते के हादी के प्रस्ताव को ख़ारिज करते हुए उन्होंने और बड़ी मांग रखी.

दक्षिण में आज़ादी की मांग करने वाले अलगाववादी दक्षिणी सत्ता परिवर्तन परिषद (एसटीसी) ने भी ऐसा ही किया. हूतियों ने हादी को सऊदी अरब भागने पर मजबूर कर दिया, जहां इस समय वो रह रहे हैं. वह अभी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सरकार के प्रमुख हैं.

वीडियो कैप्शन, तबाही की ओर बढ़ता यमन

लड़ाई देश के भीतर विद्रोह से आगे निकल चुकी थी और अब 'छद्म युद्ध' में बदल गई थी, जिसमें बाहरी तत्व भी शामिल थे.

मार्च 2015 में सऊदी अरब की अगुवाई में खाड़ी के ज़्यादातर सुन्नी मुस्लिम देशों के पश्चिम समर्थित गठबंधन ने देश पर ईरानी असर का ख़ात्मा करने के मक़सद से हूतियों के ख़िलाफ़ हवाई हमले शुरू कर दिए.

इस गठबंधन को अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस से सैन्य और ख़ुफ़िया मदद मिली. यह अलग बात है कि पिछले साल अमेरिका ने सऊदी अरब को हथियारों की बिक्री रोक दी. देश के कई हिस्सों में लड़ाई और हवाई हमले अब भी जारी हैं.

यमन के 3 करोड़ लोगों में से क़रीब 50 लाख लोग भुखमरी के कगार पर खड़े हैं.

इमेज स्रोत, Reuters

इमेज कैप्शन, यमन के 3 करोड़ लोगों में से क़रीब 50 लाख लोग भुखमरी के कगार पर खड़े हैं.

यमन संकट के आंकड़े डराने वाले

यमन में पिछले सात साल से ज़्यादा समय से जारी युद्ध के आधिकारिक आंकड़े इस मामले की गंभीरता को जाहिर करते हैं.

देश में युद्ध से ज़्यादा, भूख से मौतें हो रही हैं. यमन की 3 करोड़ की आबादी का क़रीब 80 फ़ीसदी हिस्सा जीने के लिए किसी न किसी मदद पर निर्भर है.

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर), मानवीय मामलों के समन्वय के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (यूएनओसीएचए), संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से हासिल आंकड़े यमन की भयावह स्थिति को उजागर करते हैं.

इन आंकड़ों के अनुसार, 2021 के अंत तक देश में कम से कम 377,000 लोग मारे जा चुके हैं. पिछले सात सालों से चल रहे इस युद्ध में अब तक दस हज़ार से ज़्यादा बच्चे मारे जा चुके हैं या ज़ख्मी हो गए हैं. इस लड़ाई के चलते वहां अब तक 40 लाख से ज़्यादा लोग विस्थापित हो चुके हैं.

वहीं देश के 3 करोड़ लोगों में से 1.74 करोड़ लोगों को अभी पेट भरने के लिए मदद की ज़रूरत है. अनुमान है कि इस साल के अंत तक यह गिनती बढ़कर 1.9 करोड़ हो जाएगी.

यमन के 50 लाख लोग भुखमरी के कगार पर खड़े हैं, जबकि क़रीब 50 हज़ार लोग पहले से ही भुखमरी जैसे हालातों का सामना कर रहे हैं.

हूती विद्रोहियों ने यमन के अधिकांश हिस्सों पर क़ब्ज़ा कर रखा है और वहां 7 साल से भी अधिक समय से हिंसक लड़ाई चल रही है.

इमेज स्रोत, EPA

इमेज कैप्शन, हूती विद्रोहियों ने यमन के अधिकांश हिस्सों पर क़ब्ज़ा कर रखा है और वहां 7 साल से भी अधिक समय से हिंसक लड़ाई चल रही है.

क्या इस संकट का कोई हल है?

यमन में शांति क़ायम करने की पिछली सभी योजनाएं नाकाम हो चुकी हैं, लेकिन समाधान तलाशने के लिए राजनयिक कोशिशें अभी भी जारी हैं.

अधिकारियों के मुताबिक़, सऊदी अरब से काम कर रही खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) की योजना इस महीने हूती आंदोलन के नातओं और दूसरे यमनी दलों को बातचीत के लिए रियाद में एक साथ बैठक कराने की है.

इस किस्म की नई पहल का मक़सद संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व वाले शांति प्रयासों को आगे बढ़ाना है. यह सम्मेलन 29 मार्च से 7 अप्रैल के बीच होना है.

हूती विद्रोहियों का कहना है कि वे सऊदी अरब की अगुवाई वाले गठबंधन के साथ बातचीत का स्वागत करेंगे, बशर्ते इसका ठिकाना कोई तटस्थ देश हो. उनकी प्राथमिकता यमन के बंदरगाहों और सना हवाई अड्डे पर लगाई गई 'मनमानी' पाबंदियां हटाना है.

लेकिन वाशिंगटन के मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट में यमन संघर्ष की एक विश्लेषक नदवा अल दवसारी को नहीं लगता कि ये बातचीत कामयाब होगी. वो कहती हैं, "मुझे पूरी उम्मीद है एक शांतिपूर्ण हल निकलेगा, लेकिन मुझे लगता है कि यह बहुत जल्द नहीं होने वाला."

वो कहती हैं, "शांति के लिए कोई तैयारी नहीं है. पक्षकार सुलह को तैयार नहीं हैं. हूती इस सोच को छोड़ने वाले नहीं हैं कि उनके पास शासन करने का ख़ुदाई हक़ है. और हादी 8 साल से विदेश में हैं. संघर्ष को ख़त्म करने में उनकी दिलचस्पी नहीं है. हूतियों की तरह वो भी पैसे बना रहे हैं."

दवसारी के अनुसार, "ऐसे में आप शांति समाधान कैसे निकाल सकते हैं, जबकि इन भागीदारों को किसी भी चीज़ से ज्यादा युद्ध से फ़ायदा हो रहा है?"

सऊदी अरब ने पिछले साल मार्च में भी एक शांति योजना का प्रस्ताव रखा था, जिसमें संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में हूती और सरकार के बीच युद्ध विराम का सुझाव दिया गया था. वह भी कामयाब नहीं हुआ.

2021 में बाइडेन प्रशासन की तरफ से यमन के प्रति अमेरिकी नीति बदल देने के बाद वाशिंगटन की ओर से भी एक क़दम उठाया गया.

इसने ट्रंप प्रशासन का हूती को दिया आतंकवादी गुट का दर्जा ख़त्म कर दिया और सऊदी अरब की अगुवाई वाले गठबंधन द्वारा किए जा रहे "आक्रामक अभियान" को दिया अपना समर्थन वापस ले लिया.

रूस और यूक्रेन के बीच जारी लड़ाई के चलते यमन आने वाले गेहूं की आवक पर असर पड़ने के साथ महंगाई भी काफ़ी बढ़ गई है.

इमेज स्रोत, EPA

इमेज कैप्शन, रूस और यूक्रेन के बीच जारी लड़ाई के चलते यमन आने वाले गेहूं की आवक पर असर पड़ने के साथ महंगाई भी काफ़ी बढ़ गई है.

क्या कुछ और उपाय संभव है?

यमन के लोग जीवन जीने के लिए काफ़ी हद तक मानवीय मदद पर निर्भर हैं. सहायता एजेंसियों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों की कोशिशें दानकर्ताओं के बजट पर निर्भर करती हैं.

लेकिन दुनिया भर में तेल और खाद्य कीमतों में बढ़ोत्तरी के साथ, अधिकांश एजेंसियां अपनी योजनाओं के लिए पूरा पैसा न मिलने को लेकर फ़िक्रमंद हैं.

संयुक्त राष्ट्र को वर्ष 2020 में 3.4 अरब डॉलर की ज़रूरत का आधा ही धन मिला, जबकि बीते साल उसे 2.3 अरब डॉलर दानकर्ताओं से मिले थे. विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफ़पी) को भी यमन को खाद्य सहायता कम करने के लिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि उसके पास धन की कमी हो गई थी.

संयुक्त राष्ट्र ने 16 मार्च को दानकर्ताओं का यमन की ओर ध्यान दिलाने के लिए एक और कोशिश की. लेकिन दाता देशों से इस विशेष अपील पर संगठन 1.73 करोड़ लोगों की मदद के लिए सिर्फ 1.3 अरब डॉलर ही जुटा पाया. यह संयुक्त राष्ट्र के अनुमान का एक तिहाई है.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने चेतावनी दी है कि यूक्रेन संकट के बीच यमन को भुला देना नहीं चाहिए.

ब्रिटेन सरकार ने पिछले साल यमन को मदद में बड़ी कटौती का एलान किया था. यमन ने कहा है कि वो इस साल 'कम से कम' 8.7 करोड़ पाउंड (11.5 करोड़ डॉलर) की मदद देगा, जो साल भर पहले के 21.5 करोड़ डॉलर से काफ़ी कम है.

डब्ल्यूएफ़पी के कार्यकारी निदेशक डेविड बेस्ली ने 16 मार्च को संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में कहा, "हालात पूरी तरह तबाही भरे हैं, और अब हमारे पास धन नहीं है. हमें यूक्रेन के बच्चों से खाना छीनकर यमन के बच्चों को देने का फ़ैसला करने को विवश न करें."

वीडियो कैप्शन, खाने को तरसता यमन

ज़रूरत के मौक़े पर धन की कमी होना इस फ़िक्र की एक बड़ी वजह है.

चैरिटी संगठन मुस्लिम हैंड्स के यमन में निदेशक अब्दुल रहमान हुसैन का कहना है, "यूक्रेन में युद्ध निश्चित रूप से हमारी परियोजनाओं पर असर डालेगा. शायद हमें इसमें कटौती करनी पड़े."

वो चेतावनी देते हैं, "यमन में हम रोज़ाना 50,000 ब्रेड बांटते हैं. लेकिन कीमतें दोगुनी हो जाने के बाद हमें इसे जारी रखने के लिए और ज़्यादा धन की ज़रूरत होगी, नहीं तो कुछ ब्रेड कारखानों को बंद करना पड़ेगा. यूक्रेन में इस समय आफ़त आई है, तो दुनिया यमन जैसे तीसरी दुनिया के देशों से ज़्यादा यूक्रेन पर ध्यान दे रही है. लेकिन यमन को तो बीते आठ सालों से नज़रअंदाज़ किया गया है."

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)