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यूक्रेन संकट: रूस के लिए ख़ेरसोन और मारियुपोल पर कब्ज़ा क्यों है अहम?
- Author, बेन तोबियास
- पदनाम, बीबीसी न्यूज़
यूक्रेन और रूस के बीच जारी भीषण संघर्ष अब दसवें दिन में प्रवेश कर चुका है. नेटो ने रूस पर क्लस्टर बमों को इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है. इससे पहले रूस पर वैक्यूम बमों को इस्तेमाल करने से जुड़े आरोप भी लगाए गए थे.
इन सबके बीच जहां एक ओर रूसी सैन्य बेड़ा राजधानी कीएव की ओर बढ़ रहा है. वहीं, दक्षिणी यूक्रेन के खेरसोन शहर पर रूसी सेनाओं ने कब्जा कर लिया है और मारियुपोल शहर को लेकर लड़ाई चल रह है.
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पश्चिमी देशों को चेतावनी देते हुए कहा है कि रूस पर नए प्रतिबंध लगाकर स्थिति को और ख़राब न किया जाए.
लेकिन एक तरफ पुतिन ये चेतावनी देते हुए दिख रहे हैं, वहीं दूसरी ओर रूसी सेना यूक्रेन की राजधानी कीएव पर कब्जा करने में परेशानियां महसूस करती दिख रही है. हालांकि, यूक्रेन के दक्षिण हिस्सों में रूसी सेना ने अपेक्षाकृत रूप से बेहतर बढ़त हासिल की है.
दक्षिणी यूक्रेन क्यों अहम है?
रूस यूक्रेन पर अपने हमले की रणनीति में दक्षिणी यूक्रेन को काफ़ी अहम मानता है. इस दिशा में कई दक्षिणी यूक्रेनी शहरों में रूसी सेनाओं ने घेराबंदी की हुई है. रूसी सैनिकों ने यूरोप के सबसे बड़े परमाणु संयंत्र ज़ेपोरज़िया पर भी कब्जा कर लिया है.
यूक्रेन के दक्षिण में रूसी सेनाओं ने अपने अभियान की शुरुआत क्राइमिया से की थी जिस पर रूस ने साल 2014 में कब्जा किया था. इस क्षेत्र में रूसी सेना की अच्छी - ख़ासी मौजूदगी है.
बीते बुधवार पेंटागन के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने भी कहा है कि यहां पर रूस का "अत्याधुनिक और मजबूत ढांचा" मौजूद है.
लेकिन यूक्रेन के मैप पर नज़र डालें तो पता चलता है कि दक्षिणी यूक्रेन पर हमले के लिए क्राइमिया प्रायद्वीप कितना अहम है.
रूसी सैन्य टुकड़ियों यूक्रेन में क्राइमिया की ओर से घुस रही हैं और पूर्व की ओर मारियुपोल एवं पश्चिम की ओर ओडेसा की तरफ़ जा रही हैं ताकी जलक्षेत्र से यूक्रेन का संपर्क टूट जाए. जानकार मानते हैं कि यूक्रेन के लिए इसका परिणाम भारी आर्थिक घाटे के रूप में सामने आएगा.
डिकिंसन कॉलेज में इतिहास और रूसी मामलों के विशेषज्ञ कार्ल क्वाल्स कहते हैं, "रणनीतिक रूप से, इस क्षेत्र में बड़े बंदरगाह हैं जो पुतिन की फौज़ों को यूक्रेन तक आपूर्ति पहुंचने देने के रास्ते काटने की क्षमता देंगे."
क्राइमिया के पूर्व में रूसी सेना ने साढ़े चार लाख लोगों की आबादी वाले मारियुपोल शहर को घेर लिया है और लगातार बमबारी कर रही है.
इस शहर में पानी और बिजली की आपूर्ति रोक दी गयी है. यहां के स्थानीय नागरिकों ने बीबीसी को बताया है कि वे काफ़ी डरे हुए हैं.
अगर मारियुपोल शहर पर रूस का कब्ज़ा होता है तो रूस को यूक्रेन के सबसे बड़े बंदरगाह पर कब्जा मिल जाएगा. इस तरह रूस को क्राइमिया और रूस समर्थित क्षेत्र लुहांस्क और डोनेत्सक तक जाने के लिए ज़मीनी रास्ता मिल जाएगा.
क्राइमिया को अलगाववादी तत्वों के कब्जे वाले क्षेत्र से होकर रूस की सीमा से मिलाने पर रूसी सेना के लिए सामान और लोगों की आवाजाही बहुत आसान हो जाएगी.
साल 2014 में पूर्वी यूक्रेन में तनाव शुरू होने के बाद से रूस इस लक्ष्य को पाना चाहता था. फिलहाल क्राइमिया रूसी ज़मीन से एक पुल के ज़रिए जुड़ा है जो कि रूस के कब्जे के बाद भारी ख़र्च करके बनाया गया था.
परमाणु संयंत्र पर कब्ज़ा
मारियुपोल के उत्तर-पश्चिम में रूस ने ज़ेपोरज़िया परमाणु संयंत्र पर कब्ज़ा कर लिया है. सामान्य दिनों में यह परमाणु संयंत्र यूक्रेन के लिए लगभग 20 फीसद बिजली का उत्पादन करता है. ऐसे में इस परमाणु संयंत्र पर कब्ज़ा करके यूक्रेन की ऊर्जा आपूर्ति का एक बड़ा हिस्सा रूस के नियंत्रण में आ गया है.
रूसी सेना ने ख़ेरसोन शहर पर भी कब्ज़ा कर लिया है जहां नाइपर नदी काले सागर में मिलती है. यह इलाक़ा भी यूक्रेन के अंदर घुसने के लिहाज़ से काफ़ी अहम है.
रॉयल यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूट ने बीबीसी रेडियो 4 के कार्यक्रम में बताया है, "हम उन्हें ख़ेरसोन पर कब्ज़ा करने का फायदा उठाते देख रहे हैं. वे अब नाइपर नदी के पश्चिमी सिरे पर हैं जहां से वे ऊपर की तरफ़ नदी में आगे बढ़ जाएंगे और ओडेसा की ओर बढ़ जाएंगे."
अगर रूस पश्चिम की तरफ़ बढ़ते हुए ओडेसा और उससे आगे बढ़ पाएगा तो यह न सिर्फ समुद्र से यूक्रेन का संपर्क तोड़ देगा, बल्कि इस तरह यूक्रेन तीन तरफ़ से घिर जाएगा.
पेन स्टेट यूनिवर्सिटी में इतिहास और रूस-यूक्रेन मामलों की विशेषज्ञ कैथरीन वेनर कहती हैं, "अगर वे ओडेसा पर कब्ज़ा कर लेते हैं तो उनके पास यूक्रेन पर एक रणनीतिक आर्क बनाने के लिए एक मुख्य शहर होगा. उत्तर में बेलारूस और पूर्व में डोनबास के साथ उन्होंने पूरे देश को घेर लिया है."
नोवोरोशिया
रूस द्वारा दक्षिण यूक्रेन पर हमला करने का एक ऐतिहासिक मतलब भी है. रूसी साम्राज्य ने 18वीं शताब्दी में ऑटोमन साम्राज्य के साथ लगातार हुए कई युद्धों में दक्षिण में ओडेसा से लेकर पूर्व में लुहांस्क वाले यूक्रेनी क्षेत्र को हासिल किया था और इसे नोवोरशिया यानी नया रूस कहा गया.
सोवियत संघ के दौरान नोवोरशिया का ज़्यादातर हिस्सा यूक्रेनियन सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक का हिस्सा हुआ करता था जो कि आगे चलकर आधुनिक दौर का यूक्रेन बना.
साल 2014 में क्राइमिया पर कब्ज़े के बाद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दावा किया कि रूस ने कई वजहों से नोवोरशिया खो दिया.
प्रोफेसर क्वाल्स कहते हैं, "पुतिन जिस मिथक को मानते हैं, उसके मुताबिक़, ये रूसी ज़मीन है, रूसी साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था. लेकिन यहां रूसी नहीं रहते थे, बल्कि यहां रूसी लोगों की तुलना में रोमानिया के लोग ज़्यादा थे और यूक्रेन के लोगों की आबादी ज़्यादा थी."
हालांकि, इस विचार का धीरे-धीरे असर होने लगा. स्वघोषित अलगाववादी गणराज्यों लुहांस्क और दोनेत्स्क ने साल 2014 में कुछ समय के लिए नोवोरशिया को दोबारा बनाने से जुड़े बयान दिए और उन्होंने इस दिशा में अपना ज़ारशाही वाला लाल और नीला झंडा भी फहराया.
इस हमले से पहले रूसी राष्ट्रपति द्वारा यूक्रेन की ज़मीन पर रूस के ऐतिहासिक दावे का ज़िक्र बार-बार होता रहा है. लेकिन प्रोफ़ेसर वेनर कहती हैं कि इसे गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए.
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