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भारत से ख़ुश रूस अब भारतीय मीडिया से क्यों हुआ नाराज़
यूक्रेन पर रूस के हमले को लेकर भारत सरकार के अब तक के रुख़ का रूस ने स्वागत किया है, लेकिन भारत की मीडिया से नाराज़ है.
रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पूर्वी यूक्रेन पर भारत के रुख़ का स्वागत किया था. भारत में रूस के कार्यकारी राजदूत रोमान बाबुश्किन ने अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू से कहा था कि पूर्वी यूक्रेन पर भारत की प्रतिक्रिया बिल्कुल स्वतंत्र रही है.
रोमान बाबुश्किन ने द हिन्दू से 24 फ़रवरी को कहा था, ''यूक्रेन को लेकर भारत के रुख़ का रूस स्वागत करता है. यूक्रेन पर भारत ने एक वैश्विक शक्ति के रूप में कई बार संतुलित और स्वतंत्र विचार रखा है. दोनों देशों ने वहाँ की स्थिति को लेकर द्विपक्षीय और बहुपक्षीय स्तरों पर कई बार बात की है.''
''हमने इसे लेकर संयुक्त राष्ट्र में भी बात की है. भारत चीज़ों को लेकर अच्छी समझ रखता है और उसे पता है कि राष्ट्रपति पुतिन ने यह घोषणा क्यों की है. रूस को उम्मीद है कि उसके दोस्त और पार्टनर, जिसमें भारत भी शामिल है, नए गणतंत्र' दोनेत्स्क और लुहांस्क को मान्यता देंगे.''
लेकिन दूसरी तरफ़ रूस भारत की मीडिया से ख़ासा नाराज़ है. भारत स्थित रूसी दूतावास ने कहा है कि भारत की मीडिया यूक्रेन संकट को लेकर भारत के लोगों को सही और वस्तुनिष्ठ जानकारी दे.
रूसी दूतावास का बयान
रूसी दूतावास ने अपने बयान में कहा है कि 'रूस ने यूक्रेन और वहाँ की जनता के ख़िलाफ़ युद्ध नहीं छेड़ा है बल्कि एक विशेष सैन्य अभियान शुरू किया है और इसका लक्ष्य यूक्रेन में विसैन्यीकरण के अलावा नाज़ीकरण को ख़त्म करना है. डोनबास (पूर्वी यूक्रेन) इलाक़े में आठ सालों से जारी यूक्रेन के युद्ध को ख़त्म करना उसका लक्ष्य है.'
रूसी दूतावास ने लिखा है, ''रूस की सेना अधिकतम संयम बरत रही है. आम नागरिकों और शहरों को निशाना नहीं बना रही है. रूस की सेना केवल सैन्य ठिकानों को निशाने पर ले रही है. हमारी सेना यूक्रेन की सेना की तरह प्रतिबंधित हथियारों का इस्तेमाल नहीं करती है और न ही मानव ढाल के रूप में लोगों को आगे करती है. हम युद्ध बंदियों के साथ भी आदर से पेश आते हैं.''
रूसी दूतावास ने भारतीय मीडिया की रिपोर्ट पर आपत्ति जताते हुए लिखा है, ''रूस हमेशा से संवाद के लिए तैयार रहा है. यूक्रेन में परमाणु ठिकाने सुरक्षित हैं. इसकी पुष्टि आईएईए ने भी की है. इसके उलट कोई भी जानकारी पक्षपाती और भ्रामक है.''
'रूसी पक्ष ही स्वीकार्य'
द ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन में सीनियर फ़ेलो तन्वी मदान ने रूसी दूतावास की ओर से भारतीय मीडिया को निर्देशित करने पर आपत्ति जताते हुए लिखा है, ''रूसी दूतावास ने एक बार फिर से चीन की तरह भारतीय मीडिया को बताने की कोशिश की है कि उसे रूसी पक्ष ही रिपोर्ट में स्वीकार्य है. अगर भारतीय मीडिया ऐसा नहीं करती है तो वह पक्षपाती है.''
महीने भर में रूस ने दूसरी बार भारतीय मीडिया से नाराज़गी जताई है. इससे पहले नौ जनवरी को रूसी दूतावास ने भारतीय मीडिया को लेकर प्रेस नोट जारी किया था. रूसी विदेश मंत्रालय ने इस प्रेस नोट को ट्वीट किया था.
इसमें भी रूस ने भारतीय मीडिया की रिपोर्टिंग पर आपत्ति जताते हुए लिखा था, ''भारतीय मीडिया में एक बार फिर से यूक्रेन संकट और रूस के रुख़ को लेकर पक्षपाती तस्वीर छपी है. भारतीय मीडिया में यूक्रेन के अधिकारियों का अपमानजनक बयान भी छपा है. हमारा मानना है कि भारतीय मीडिया में यूक्रेन संकट को लेकर छपी पक्षपाती सामग्री का भारत सरकार के आधिकारिक रुख़ से कोई लेना-देना नहीं है. साथ ही जाने-माने विशेषज्ञों की राय भी भारतीय मीडिया की कवरेज से अलग है.''
रूसी विदेश मंत्रालय ने कहा था, ''रूस किसी भी देश के लिए ख़तरा नहीं है. हम अधिकतम संयम बरतते हैं. ज़ाहिर है कि हमारा इरादा भाई समान यूक्रेन के लोगों से लड़ना नहीं है. हम इस विवाद का कोई सैन्य समाधान भी नहीं चाहते हैं. यह बात कई बार रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और विदेश मंत्री सर्गेई लावरोफ़ ने दोहराई है. हम इस मामले में अंतरराष्ट्रीय समुदाय समेत भारत के लोगों को भी समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि यूक्रेन की सरकार अपने ग़लत फ़ैसलों पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है.''
चीन जताता रहा है आपत्ति
ताइवान को लेकर भारतीय मीडिया में कवरेज पर चीन भी कई बार आपत्ति जता चुका है. अक्टूबर 2020 में भारत स्थित चीनी दूतावास ने कहा था, ''ताइवान के कथित राष्ट्रीय दिवस को लेकर भारत स्थित चीनी दूतावास मीडिया के दोस्तों को याद दिलाना चाहता है कि दुनिया में एक ही चीन है और पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की सरकार संपूर्ण चीन का प्रतिनिधित्व करती है. हमें उम्मीद है कि भारतीय मीडिया अपनी सरकार के वन चाइना पॉलिसी पर रुख़ का पालन करेगी. वन चाइना पॉलिसी का भारतीय मीडिया उल्लंघन ना करे.''
चीनी दूतावास ने कहा था, ''ताइवान को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में नहीं दिखाया जा सकता या उसे रिपब्लिक ऑफ़ चाइना नहीं कहा जा सकता या वहाँ की नेता को राष्ट्रपति नहीं कहा जा सकता. आम लोगों के बीच ग़लत संदेश ना पहुँचाया जाए.'' चीन भारतीय मीडिया में ताइवान को लेकर इतनी संवेदनशीलता दिखाता है, लेकिन वहाँ की मीडिया में भारत के अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत कहा जाता है.
ताइवान का सवाल
चीनी दूतावास की ओर से भारतीय मीडिया को दी गई नसीहत पर ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ़ वु ने ट्वीट कर कहा था, ''भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. यहाँ प्रेस भी आज़ाद है. कम्युनिस्ट चीन भारत में सेंसर लगाना चाहता है. ताइवान के भारतीय दोस्तों की एक ही प्रतिक्रिया होगी- दफ़ा हो जाओ.''
तन्वी मदान ने लिखा है, ''रूसी दूतावास को मुफ़्त की सलाह है जो चीनी दूतावास नहीं समझ पा रहा है. भारतीय मीडिया पर यह रवैया शायद ही असर डालेगा.'' इससे पहले रूसी दूतावास ने अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू के एक क्विज़ के सवाल पर आपत्ति जताई थी.
द हिन्दू ने ट्विटर पर अपने क्विज़ के सवाल में पूछा था, ''यूक्रेन के किस हिस्से को रूस ने 2014 में मिला लिया था?'' इसके जवाब में क्राइमिया समेत चार विकल्प दिए गए थे. क्विज़ के इस सवाल को रीट्वीट करते हुए रूसी दूतावास ने लिखा था, ''डियर द हिन्दू पहले के हमले के बारे में हमें कुछ बताएं. हमने कभी देखा नहीं कि आपने इसे लेकर कुछ कहा हो.''
यूएन में भारत का रुख़
यूक्रेन पर हमले को लेकर रूस के ख़िलाफ़ अब तक जितने प्रस्ताव आए हैं, उनके पक्ष में भारत ने वोट नहीं किया है. भारत ने रूस के समर्थन में भी वोट नहीं किया है, लेकिन वोटिंग से भारत के बाहर रहने को रूस की निंदा नहीं करने के तौर पर देखा जा रहा है.
भारत के अलावा चीन और यूएई भी वोटिंग से बाहर रहे हैं. हालांकि चीन ने अपने बयान में नेटो को लेकर राष्ट्रपति पुतिन के रुख़ का समर्थन किया है. वहीं भारत ने अपने बयान में न तो नेटो की और न ही रूस की निंदा की है.
(कॉपी - रजनीश कुमार)
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