नेपालः मुख्य न्यायाधीश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट के जजों ने क्यों किया विद्रोह

नेपाल के चीफ़ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा

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    • Author, शरद केसी
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता

नेपाल का सुप्रीम कोर्ट इस समय 'राजनीतिक विवाद' में फंसा है जिसके केंद्र में देश के सर्वोच्च न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर जबरा राणा हैं.

प्रधान न्यायाधीश पर राजनीति फ़ायदे के बदले निर्णय देने का आरोप लगा है और सुप्रीम कोर्ट के कई जज उनके खुलकर उनके ख़िलाफ़ आ गए हैं.

चीफ़ जस्टिस ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए इस्तीफ़ा देने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट और अदालतों का कामकाज ठप्प है.

प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर जबरा ने गुरुवार को एकल सत्र और पूर्ण सत्र भी बुलाया जिसमें उनका विरोध करने वाले न्यायाधीशों से भी आने को कहा गया.

विद्रोह में शामिल एक न्यायाधीश ने बीबीसी से कहा कि कुछ न्यायाधीश बंदी प्रत्यक्षीकरण सहित कुछ अन्य अहम रिट याचिकाओं पर सुनवाई करने के पक्ष में हैं ताकि अदालत का अहम काम प्रभावित ना हो.

एक अन्य न्यायाधीश ने बीबीसी से बात करते हुए चिंता व्यक्त की कि प्रधान न्यायाधीश अगर इस्तीफ़ा नहीं देंगे और हम लोग भी आंदोलन से पीछे नहीं हटेंगे तो इससे अदालत का काम बुरी तरह प्रभावित होगा जिसका असर हमारी प्रतिष्ठा पर भी हो सकता है. उन्होंने कहा कि हमारे सामने इस सयम नैतिक संकट है.

असंतुष्ट न्यायाधीश गुरुवार को अदालत में भी नहीं बैठे.

वहीं विद्रोह में शामिल एक न्यायाधीश ने बीबीसी से कहा कि सत्र का बहिष्कार करने का निर्णय औपचारिक नहीं था. गुरुवार को कुछ न्यायाधीश सत्र में शामिल नहीं हुए.

सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले

नेपाल का सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक इस समय अदालत में 28,626 मामले लंबित हैं. एक दशक पहले लंबित मामलों की संख्या औसतन 9 हज़ार थी.

ऐसे में अदालत का कामकाज ठप्प होने से न्याय की आस में सुप्रीम कोर्ट आने वाले लोगों को परेशानी हो रही है.

एक जूनियर जज ने बीबीसी से कहा कि मुवक्किलों को परेशानी से बचाने के लिए कोई एक राय बनाई जानी चाहिए.

लेकिन अभी संकट ये है कि बार एसोसिएशन, जज और अटॉर्नी जनरल सभी विवाद का हिस्सा हैं.

अहम सवाल ये भी है कि जब अदालत में ही विवाद हो तो मध्यस्थता कौन करे और गतिरोध का हल कैसे निकले.

विवाद से दूर थी अदालत

नेपाल के लोकतंत्र में कार्यकारी, विधायी और नौकरशाही भले ही विवादों में रही हो लेकिन न्यायपालिका और सेना विवादों से कम ही प्रभावित रहे हैं.

लेकिन मौजूदा संकट ने न्यायपालिका को राजनीति में घसीट लिया है और सुप्रीम कोर्ट का कामकाज ठप्प हो गया है.

लेकिन नेपाल बार एसोसिएशन और सुप्रीम कोर्ट के कई न्यायधीशों के प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र राणा के इस्तीफ़े की मांग करने के बाद से सुप्रीम कोर्ट का कामकाज ठप्प है.

बॉर एसोसिएशन ने मंगलवार को प्रधान न्यायाधीश का इस्तीफ़ा मांगा था. इसी बीच सुप्रीम कोर्ट में तय तारीख़ों पर सुनवाई नहीं हुई है.

चोलेंद्र शमशेर राणा पर क्या हैं आरोप?

प्रधान न्यायाधीश पर आरोप है कि देश में हुए राजनीतिक संकट के दौरान उन्होंने अपने रिश्तेदार को मंत्रीपद के बदले प्रभावित निर्णय दिए.

उन पर आरोप है कि उन्होंने प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की कैबीनेट में अपने एक रिश्तेदा को जगह दिलवाई.

14 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के एक फ़ैसले से ही पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार गिर गई थी और देउबा को सरकार बनाने का मौका मिला था.

शेर बहादुर देउबा ने पांच पार्टियों के गठबंधन के साथ सरकार बनाई है. देउबा ने इसी महीने प्रधान न्यायाधीश के रिश्तेदार गजेंद्र हमाल को कैबीनेट में जगह दी लेकिन विवाद होने के बाद उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया.

बीबीसी से बातचीत में प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र राणा ने सभी आरोपों को खारिज किया है और कहा है कि वो इस्तीफ़ा नहीं देंगे.

राणा ने मंगलवार को कहा था कि वो किसी भी परिस्थिति में इस्तीफ़ा नहीं देंगे, भले ही उन्हें महाभियोग का सामना करना पड़े.

ख़ामोश हैं राजनीतिक दल

वीडियो कैप्शन, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कहा कि कोई विकल्प नहीं था.

सुप्रीम कोर्ट में चला रहे अभूतपूर्व संकट पर राजनीतिक दल ख़ामोश हैं. ऐसा लग रहा है कि राजनीतिक दलों के शीर्ष नेता राणा के इस्तीफ़े का इंतेज़ार कर रहे हैं ताकि उन्हें स्पष्ट पक्ष ना लेना पड़े.

नेपाली कांग्रेस के नेता और प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने भी महाभियोग के समर्थन में बयान नहीं दिया है.

लेकिन ये माना जा रहा है कि उन पर पार्टी के भीतर से ही इसे लेकर दबाव है.

वहीं पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भी महाभियोग के समर्थन में अभी कोई बयान नहीं दिया है.

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