तालिबान के क़ब्ज़े वाले इलाक़ों में क़ैदियों को जेलों से रिहा क्यों किया जा रहा है

- Author, अज़ीज़ुल्लाह ख़ान
- पदनाम, बीबीसी उर्दू, पेशावर
अफ़ग़ानिस्तान के तख़ार प्रांत की जेल के क़ैदियों को जैसे यह विश्वास हो गया था कि तालिबान के शहर में प्रवेश करते ही उनकी रिहाई संभव हो जाएगी.
तख़ार जेल का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें बड़ी संख्या में क़ैदी जेल के प्रांगण में सामान उठाए जा रहे हैं और तालिबान के पक्ष में नारे लगा रहे हैं.
इन क़ैदियों में ख़तरनाक अपराधी भी शामिल थे, जो या तो तालिबान के सदस्य थे या उनके समर्थक थे.
इस वीडियो में एक शख़्स कह रहा है कि यहाँ बड़ी संख्या में क़ैदी मौजूद हैं और दरवाज़े पर मुजाहिदीन इंतज़ार कर रहे हैं, लेकिन ऑपरेशन पूरा होने तक उन्हें छोड़ा नहीं गया. इसके बाद दूसरे वीडियो में दिखाया गया है कि क़ैदी बाहर आ रहे हैं और रिहाई की ख़ुशी में नारे लगा रहे हैं.

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तालिबान के क़ब्ज़े में आने वाले छह शहरों की जेलों से अब तक हज़ारों क़ैदियों को रिहा किया जा चुका है, जिनमें ख़तरनाक अपराधी भी शामिल हैं. इनमें कुंदुज, तख़ार और कुछ अन्य इलाक़ों की जेलें शामिल हैं.
स्थानीय लोगों का कहना है कि किसी भी शहर में प्रवेश करने के बाद अफ़ग़ान तालिबान का पहला निशाना जेल होती हैं, जहाँ से क़ैदियों को रिहा किया जाता है, इसके बाद अन्य प्रमुख स्थानों पर क़ब्ज़ा किया जाता है.
हालाँकि, तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्लाह मुजाहिद के अनुसार, वो क़ैदियों को रिहा नहीं करते, बल्कि ख़ुद जेल प्रशासन ही उनको रिहा करता है.

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वीडियो में महिला क़ैदी भी दिखती हैं!
इन जेलों के वीडियो कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे, जिसमें देखा जा सकता है कि क़ैदी अपना सामान उठाए जेलों में मौजूद हैं और फिर उन्हें जेलों से बाहर निकलते देखा जा सकता है और तालिबान के सदस्य वहाँ मौजूद हैं. क़ैदी तालिबान के पक्ष में नारे लगाते हैं और कुछ क़ैदी तो उन तालिबान के हाथ भी चूमते हैं.
फ़ारयाब और कुंदुज के वीडियो में महिला क़ैदी भी जेल से बाहर आती दिख रही हैं. अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्ला मुजाहिद ने इन वीडियो की प्रमाणिकता की पुष्टि की. उन्हें दो वीडियो भेजे गए, उनके बारे में उन्होंने कहा कि ये वीडियो तीन दिन पहले की हैं और इनमे से एक तख़ार शहर का है और दूसरा कुंदुज शहर की जेल का है.
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पहले जेलों से क़ैदी आज़ाद किए जाते हैं
अफ़ग़ानिस्तान के स्थानीय लोगों का कहना है कि हाल के दिनों में जब से तालिबान विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़े हैं. वहाँ अक्सर यह देखा गया है कि शहर की जेलों के ताले तोड़ दिए जाते हैं और क़ैदियों को रिहा कर दिया जाता है.
ऐसा भी हुआ है कि उस शहर के प्रशासनिक कार्यालय या अहम स्थान पर नियंत्रण बाद में लिया जाता है, पहले जेलों के ताले तोड़े जाते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार समी यूसुफ़ज़ई ने बीबीसी को बताया कि मूल रूप से जेलों से क़ैदियों को रिहा करना और जेल के ताले तोड़ना एक संदेश होता है कि इलाक़े में सरकार का कंट्रोल ख़त्म हो गया है और इस इलाक़े में अब तालिबान आ गया है.
उन्होंने बताया, "दूसरी ओर, जेलों का प्रबंधन करना होता है, क़ैदियों का खाना, उनकी सुरक्षा और अन्य ज़रूरी कार्रवाइयां करनी होती हैं, और चूंकि तालिबान इस समय संगठित नहीं हैं, इसलिए क़ैदियों को नियंत्रित करना उनके लिए मुश्किल होगा."
उनका कहना था कि इन जेलों में 10 से 15 प्रतिशत क़ैदी तालिबान के सहयोगी बताए जाते हैं, जबकि इन पाँच प्रांतों की जेलों से भागे 350 क़ैदी हत्या के आरोप में क़ैद थे.

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क़ैदियों की रिहाई का कारण
स्थानीय पत्रकारों ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि जेल के ताले मुख्य रूप से इसलिए तोड़े जाते हैं, क्योंकि अफ़ग़ान सरकार के शासन के दौरान बड़ी संख्या में तालिबान के सदस्यों और उनके समर्थकों को गिरफ़्तार किया गया था, इसलिए उन्हें रिहा कर दिया जाता है.
इसके अलावा, उन्होंने कहा, कि यह तालिबान को नई जनशक्ति भी प्राप्त होती है.
स्थानीय पत्रकारों ने बताया कि इन शहरों की जेलों से बड़ी संख्या में क़ैदियों को रिहा किया गया है, जिनकी सही संख्या का तो नहीं पता, लेकिन यह संख्या हज़ारों में हो सकती है.

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समी यूसुफ़ज़ई के अनुसार प्रांतीय स्तर पर जेलों में क़ैदियों की संख्या बहुत अधिक नहीं होगी, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि जेलों से रिहा हुए क़ैदियों की कुल संख्या कितनी हो सकती है. उन्होंने बताया कि 1990 के दशक में भी, जब तालिबान आए थे, उस समय भी जेलों को तोड़ कर क़ैदियों को रिहा किया गया था.
उनका कहना था कि यह एक ख़तरनाक चलन है, क्योंकि इनमें ऐसे क़ैदी भी हैं जिनकी बाहर दुश्मनी होती है, इसलिए ये लोग उनके लिए ख़तरा साबित हो सकते हैं.
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तालिबान का क्या है कहना?
इस बारे में अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्ला मुजाहिद से संपर्क किया गया , तो उनका कहना था कि वो इन क़ैदियों को रिहा नहीं करते हैं, बल्कि जब तालिबान क्षेत्र में प्रवेश करता है, तो वहाँ मौजूद जेल प्रशासन ताले तोड़ देता हैं या फिर कर्मचारी वहाँ से चले जाते हैं, तो क़ैदी ख़ुद ताले तोड़ देते हैं.
जब उनसे पूछा गया कि इनमे तो ख़तरनाक अपराधी भी होते हैं तो इसके लिए तालिबान क्या करता है. इसके जवाब में उन्होंने कहा कि यह उनके लिए भी चिंता का विषय है, लेकिन चूंकि तालिबान इस समय युद्ध में हैं, इसलिए वो यह पता नहीं लगा सकते कि कौन-कौन अपराधी हैं, इसलिए इस समय उनके लिए यह बहुत कठिन स्थिति है.
ज़बीहुल्ला मुजाहिद ने कहा कि वह जानते हैं कि उनमें ख़तरनाक अपराधी भी शामिल होंगे और यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है और वह चाहते हैं कि इस पर काबू पाया जाए. लेकिन युद्ध की स्थिति में जब बमबारी का ख़तरा भी होता है, तो ऐसे में उन्हें नियंत्रित करना मुश्किल होता है.
सोशल मीडिया पर जारी वीडियो में देखा जा सकता है कि जेलों के बाहर तालिबान मौजूद हैं और उन क़ैदियों को लाइन से जाने दे रहे हैं.

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यहाँ यह बात भी गौरतलब है कि क़तर में अमेरिका और तालिबान के बीच हुए समझौते में तालिबान ने अफ़ग़ान जेलों में बंद अपने पाँच हज़ार क़ैदियों की रिहाई की मांग सबसे ऊपर रखी थी और कहा था कि जब तक उनके क़ैदी रिहा नहीं हो जाते, वो आगे बातचीत और समझौतों पर अमल नहीं कर पाएँगे.
अफ़ग़ान सरकार की तरफ से बार-बार ये कोशिश की गई है कि इन क़ैदियों को रिहा न किया जाए, क्योंकि उनमें बहुत ही ख़तरनाक अपराधी शामिल थे.
लेकिन तालिबान की ज़िद पर उन्हें रिहा कर दिया गया था.
अफ़ग़ानिस्तान में यह धारणा भी सामने आई है कि इन क़ैदियों की रिहाई के बाद से अफ़ग़ानिस्तान में हिंसक घटनाओं में वृद्धि हुई है, लेकिन इसकी कोई पुष्टि नहीं हो सकी है.
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अफ़ग़ान सरकार चुप क्यों है?
अफ़ग़ान सरकार का पक्ष जानने के लिए सरकारी अधिकारियों से संपर्क किया गया, लेकिन किसी से संपर्क नहीं हो सका. लेकिन स्थानीय पत्रकारों ने बताया कि कुछ दिन पहले अफ़ग़ान सरकार का बयान सामने आया था, जिसमें कहा गया था कि सरकार ने बदलती स्थिति को भांपते हुए, अधिकांश ख़तरनाक क़ैदियों को काबुल जेल में स्थानांतरित कर दिया है.
एक स्थानीय पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि अफ़ग़ान सरकार यह स्वीकार नहीं कर रही है कि इतनी सारी जेलों को तोड़ा गया या उन जेलों से क़ैदी फ़रार हुए हैं.
समी यूसुफ़ज़ई ने इस बारे में बताया कि सरकार ने अभी तक इस मामले पर कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया है. लेकिन इतना ज़रूर है कि तालिबान के आगे बढ़ने से पहले अफ़ग़ान सरकार ने कुछ क्षेत्रों से क़ैदियों को काबुल जेल में स्थानांतरित किए थे.
तालिबान के साथ अफ़ग़ान सरकार के वार्ता दल के एक प्रमुख सदस्य अहमद नादिर नादरी ने 15 जुलाई को काबुल में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था, कि अफ़ग़ान तालिबान ने तीन महीने के युद्ध विराम के लिए कहा है. लेकिन उनकी शर्त है कि पहले उनके सात हज़ार क़ैदियों को रिहा किया जाए. उन्होंने कहा था कि "यह एक बड़ी मांग थी."

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इस मुद्दे पर अफ़ग़ान सरकार का कोई स्टैंड सामने नहीं आया था, लेकिन यह स्पष्ट था कि, जिस तरह पिछले क़तर समझौते में अफ़ग़ान सरकार पाँच हज़ार क़ैदियों की रिहाई के लिए सहमत नहीं थी, उसी तरह इस मांग पर भी कोई क़दम नहीं उठाया गया था.
वॉशिंगटन पोस्ट ने अपने 31 जुलाई के अंक में लिखा था कि तालिबान कुंदुज की प्रांतीय राजधानी की तरफ आगे बढ़ रहे हैं और इस जेल में करीब पाँच हज़ार क़ैदी मौजूद हैं.
अख़बार में कहा गया था कि अफ़ग़ान अधिकारियों का कहना था कि अगर उनमें से थोड़े बहुत भी फ़रार होते हैं, तो चरमपंथी और मज़बूत हो सकते हैं जो पहले से ही आगे बढ़ रहे हैं.
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