ईरान के साथ इस जंग में क्या इसराइल अकेला पड़ जाएगा?

ईरान और इसराइल दशकों से एक दूसरे के ख़िलाफ़ हैं. दोनों ही देश एक-दूसरे को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा मानते हैं.
हाल के सालों में दोनों देशों के बीच एक 'संघर्ष' चल रहा है, जिसे 'छद्म युद्ध' भी कहा जा रहा है. ये लड़ाई ज़मीन पर और हवा में शुरू हुई थी लेकिन हाल की झड़पें समंदर में हुई हैं.
ओमान की खाड़ी के आसपास दोनों ही देशों के कई जहाज़ों पर हमले हुए हैं.
हाल के दिनों में 29 जुलाई को एमवी मर्सर स्ट्रीट हमले का निशाना बना. ये मध्यम आकार का ख़ाली टैंकर तंज़ानिया के दार-अस-सलाम बंदरगाह से संयुक्त अरब अमीरात के फ़ुजैराह रिफ्यूलिंग पोर्ट पर जा रहा था. ये बंदरगाह ओमान की खाड़ी में ही है.
जापान के मालिकाना हक़ वाले इस लाइबेरिया के जहाज़ को इसराइल की एक कंपनी ज़ोडायक मैरीटाइम किराए पर चलाती है. उस दिन इस टैंकर जहाज़ पर विस्फोटकों से लदे ड्रोन से हमला किया गया.
इस हमले में दो लोग मारे गए. एक रोमानियाई सिक्यॉरिटी गार्ड था और दूसरा ब्रितानी नागरिक था. इस जहाज ने मदद के लिए आपात कॉल की. अमेरिकी नौसेना के दो जहाज़ों ने इसे अपनी निगरानी में बंदरगाह तक पहुँचाया.
ब्रिटेन और ईरान दोनों ने ही इस हमले के बाद एक-दूसरे के राजनयिकों को तलब किया. इसराइल, ब्रिटेन और अमेरिका ने इस हमले के लिए ईरान को ज़िम्मेदार बताया.

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वहीं ईरान ने कहा कि ये आरोप आधारहीन हैं.
अप्रैल में हुई एक और घटना में ईरान की सेना के एक शाविज़ नाम के आपूर्ति जहाज़ पर धमाका हुआ. ईरान ने इसके लिए इसराइल को ज़िम्मेदार ठहराया. ये घटना लाल सागर में हुई थी.
हाल के महीनों में इसराइल और ईरान से जुड़े जहाज़ों पर कई हमले हुए हैं. ये दो घटनाएं ऐसे ही हमलों का उदाहरण हैं. हर मामलों में दोनों ही देशों ने एक दूसरे पर आरोप लगाए और ख़ारिज किए.
इन घटनाओं को दोनों देशों के बीच चल रहे शैडो वॉर का हिस्सा माना जा रहा है. हालांकि दोनों ही देशों ने अभी तक एक दूसरे पर कोई सीधा हमला नहीं किया है.
बीबीसी के सुरक्षा संवाददाता फ्रैंक गार्डनर कहते हैं, "ये एक दूसरे पर हमले करने का ख़तरनाक खेल है जिसमें ईरान के शीर्ष परमाणु वैज्ञानिक की कथित तौर पर इसराइल ने हत्या कर दी थी. ये इसराइल की ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पटरी से उतारने की कोशिश थी.'
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दोनों देशों में नए नेता
ये ताज़ा घटनाएं ऐसे समय में हुई हैं जब ईरान और इसराइल दोनों देशों में नए नेताओं ने सत्ता की कमान संभाली है. अब इस छद्म युद्ध में दो नए नेता शामिल हैं.
एक तरफ़ ईरान के कट्टरवादी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी हैं जो ईरान के सर्वोच्च नेता अयतोल्लाह अली ख़मेनई के क़रीबी हैं. वो इसराइल के खुले विरोधी हैं. रईसी ने इसराइल को एक ख़तरनाक ख़तरा बताया है.
वहीं दूसरी तरफ़ इसराइल के नए प्रधानमंत्री नेफ़्टाली बेनेट हैं जो पहले ही बता चुके हैं कि वो भी पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू की तरह ईरान विरोधी हैं.
यूनिवर्सिटी ऑफ़ ब्रैडफर्ड के पीस स्टडीज़ विभाग में इंटरनेशनल रिलेसंश के प्रोफ़ेसर क्रिस्टोफ़र ब्लथ कहते हैं कि इन नए नेताओं के पद संभालने का अभी छद्म युद्ध पर कोई असर नहीं हुआ है.
बीबीसी मुंडो से उन्होंने कहा, "ऐसा लगता नहीं है कि नेतृत्व में बदलाव का दोनों देशों की एक दूसरे को लेकर नीतियों पर कोई असर हुआ हो."
वहीं ब्लथ कहते हैं कि ऐसा लग रहा है कि इसराइल के नए प्रधानमंत्री नेफ़्टाली बेनेट अमेरिका को ईरान के साथ परमाणु समझौते में फिर से शामिल होने से रोकने के लिए शैडो वॉर को बढ़ावा दे रहे हैं.
ब्लथ कहते हैं, "ऐसा लगता है कि यही सबसे बड़ा कारण है क्योंकि हम देख रहे हैं कि इसराइल ने ईरानी जहाज़ों पर हमले तेज़ किए हैं जिसकी वजह से ईरान भी जवाबी हमले कर रहा है."

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इस शैडो वॉर में दोनों तरफ़ से घटनाऐं ऐसे समय में हो रही हैं जब विएना में ईरान के परमाणु समझौते को फिर से ज़िंदा करने के लिए वार्ता चल रही है.
यदि ये समझौता हो जाता है तो ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित कर देगा और बदले में उस पर लगे प्रतिबंध हटा लिए जाएंगे.
वहीं फ्रैंक गार्डनर कहते हैं कि ईरान और इसराइल, दोनों देशों में बहुत से लोग ऐसे हैं जो नहीं चाहते कि ये समझौता फिर से ज़िंदा हो.
गार्डनर कहते हैं, "ईरान में ऐसे बहुत से लोग हैं जो समझौते में विश्वास नहीं करते हैं और नहीं चाहते कि ये कामयाब हो. वहीं तथ्य ये भी है कि इसराइल भी इस समझौते से संतुष्ट नहीं है. इसराइल का मानता है कि ये समझौता ईरान के पक्ष में हैं. वहीं ब्रिटेन और अमेरिका दोनों चाहते हैं कि ये समझौता फिर से लागू हो जाए."

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"हो सकता है कि इसराइल यहां अकेला ही रह जाए"
रॉयल यूनाइटेड सर्विस इंस्टिट्यूट में मध्य-पूर्व मामलों के जानकार माइकल स्टीफ़ेंस मानते हैं कि इसराइल का ईरान के जहाज़ों को निशाना बनाना परमाणु समझौते को पटरी से उतारने की जानबूझकर की गई कोशिशें हैं.
स्टीफेंस बीबीसी से कहते हैं, "इसराइल एकतरफ़ा कार्रवाइयां करके ईरान के परमाणु समझौते को पटरी से उतारने का प्रयास कर रहा है. ये एक ख़तरनाक रास्ता है."
वे कहते हैं, "अमेरिका ईरान के साथ परमाणु समझौते में फिर से शामिल होने की कोशिशें कर रहा है. इसराइल के इन प्रयासों से वार्ता में अमेरिका का पक्ष कमज़ोर हो सकता है."
माइकल स्टीफंस कहते हैं, "दूसरी बात ये है कि ईरान भी जवाबी कार्रवाई करते हुए दुनियाभर में इसराइल के हितों पर हमले कर सकता है. इसराइल पहले ही ये साबित कर चुका है कि वो ईरान के परमाणु कार्यक्रम में व्यवधान डाल सकता है. लेकिन सवाल ये है कि ऐसा किस क़ीमत पर होगा?"
जैसा कि फ्रैंक गार्डनर बताते हैं, ईरान में भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो नहीं चाहते कि परमाणु समझौता कामयाब हो.
गार्डनर कहते हैं, "नए राष्ट्रपति सर्वोच्च नेता ख़मेनई के बहुत क़रीबी हैं. फिर ईरान में रिवोल्यूशनरी गार्ड है और दूसरे बहुत से लोग हैं जो नहीं चाहते कि ईरान के पश्चिमी देशों के साथ संबंध बेहतर हों."
हालांकि प्रोफ़ेसर क्रिस्टोफ़र ब्लथ मानते हैं कि भले ही स्थिति इस समय नाज़ुक हो लेकिन इसराइल और ईरान के बीच हालात बेहद ख़तरनाक स्तर तक नहीं पहुंचेंगे.
प्रोफ़ेसर ब्लथ कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि इसराइल ईरान के साथ परमाणु समझौते को पटरी से उतारने में कामयाब हो पाएगा. इसराइल ये भी नहीं चाहेगा कि बाइडेन प्रशासन में उसके बारे में बहुत नकरात्मक भावना बने."
ब्लथ कहते हैं, "ये सच है कि गंभीर ख़तरे हैं लेकिन दोनों ही पक्ष जानते हैं कि बात ख़तरनाक स्तर तक पहुंचेगी तो क्या होगा."
"दोनों में से कोई भी पक्ष पूर्ण युद्ध नहीं झेल सकता है. इसराइल किसी ग़ैर-उकसावे के हमलें में जवाबी कार्रवाई के अलावा किसी और स्थिति में पूरी तरह अमेरिका पर निर्भर भी नहीं रह सकता है."
ब्लथ कहते हैं, "बाइडन प्रशासन ने सीरिया में ईरान समर्थित मिलिशिया पर हमले शुरू कर दिए हैं. सीरिया की लड़ाई में इसराइल और अमेरिका साथ-साथ हैं. लेकिन जहां तक समंदर में चल रहे इस छद्म युद्ध का सवाल है, ऐसा हो सकता है कि इसराइल यहां अकेला ही रह जाए."
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