You’re viewing a text-only version of this website that uses less data. View the main version of the website including all images and videos.
इसराइल और फ़लस्तीनी गुटों की घरेलू राजनीति के बीच टिकेगा संघर्षविराम?
- Author, जेरेमी बॉवेन
- पदनाम, बीबीसी के मध्य पूर्व मामलों के संपादक
इसराइल और हमास के बीच ताज़ा संघर्ष के दौरान ग़ज़ा के फ़लस्तीनी घरों में बंद थे क्योंकि बाहर निकलने पर जान जाने का ख़तरा था. संघर्षविराम होने के बाद ही वे बाहर निकले ताकि यह देख सकें कि इसराइल ने क्या किया है.
लोग कंक्रीट के ढेर में तब्दील हो चुकी उस इमारत के मलबे को देखने जुट गए जिसे इसराइल ने ज़मींदोज़ कर दिया था. कुछ जगहों पर सड़कें इसी तरह के मलबे से बंद हो चुकी थीं. बुलडोज़र चलाने वाले लगातार काम कर रहे थे.
हालाँकि, इन सबमें ऐसा कुछ नहीं था जो चौंकाने वाला हो. इस संघर्ष के दौरान जो कुछ हुआ, उसे टीवी चैनलों ने भरपूर कवर किया. मगर इंसान चाहता है कि वह एक बार अपनी आँखों से देख ले.
इसराइली नेता और सैन्य कमांडर दावा कर रहे हैं कि उन्होंने 'हमास और ग़ज़ा में सक्रिय दूसरे छोटे गुटों के आतंक के इन्फ्रास्ट्रक्चर को गंभीर नुकसान पहुंचाया है.'
यहां इमारतों को हुआ नुक़सान साफ नज़र आता है. मगर ग़ज़ा के सशस्त्र समूहों के समर्थकों के मनोबल की बात ही अलग है. 11 दिनों के युद्ध के बाद उनका मनोबल न सिर्फ बना हुआ है बल्कि यह बढ़ा हुआ नज़र आता है.
मैं ज़मीन के नीचे बनाए गए सैन्य ठिकानों को तो नहीं देख पाया मगर यहां चर्चा है कि हमास इस बात से हैरान है कि इसराइल कैसे एकदम सुरक्षित माने जाने वाले अंडरग्राउंड ठिकानों में बैठे लोगों को भी निशाना बना पाया.
ग़ज़ा के क़स्बे ख़ान यूनस में मैं उन नौ लड़ाकों के जनाज़े में शामिल हुआ जो सुरंगों के नेटवर्क के उस हिस्से में मारे गए थे, जिस पर इसराइल ने निशाना साधा था.
ख़ान यूनस थम सा गया था. हज़ारों लोगों ने खेल के मैदान पर दुआ की और जब फ़लस्तीनी झंडों में लिपटे शवों को कब्रिस्तान की ओर ले जाया गया तो वे नारे लगाते रहे.
अपनी-अपनी जीत का दावा
इसराइल और हमास दोनों अपनी जीत का दावा कर रहे हैं.
इसराइली नेता गिना रहे हैं कि किन इमारतों को तबाह किया गया, हमास के किन कमांडरों और लड़ाकों को निशाना बनाया गया और मारा गया. इसके साथ ही इसराइल के आयरन डोम एंटी-मिसाइल सिस्टम की क़ामयाबी की भी बात की जा रही है.
सबसे पहले तो हमास अपना वजूद क़ायम रहने को जीत के तौर पर दिखाता है. जिस दिन संघर्षविराम हुआ, उस दिन ग़ज़ा में हमास के नेता याह्या सिनवार सामने आए जो अब तक छिपे हुए थे. हालांकि, हमास को इस बात का भी संतोष है कि उसे राजनीतिक रूप से भी फ़ायदा हुआ है.
ग़ज़ा के केंद्र से लगभग 96 किलोमीटर दूर, यरुशलम की अल-अक़्सा मस्जिद में नमाज़ के बाद हमास के समर्थन में नारे गूंजना दिखाता है कि हमास फ़लस्तीनियों को यह संदेश देने में सफल रहा है कि वह यरुशलम पर उनके हक़ के लिए लड़ने और बलिदान करने के लिए तैयार है.
इसराइल कहता है कि पूरा का पूरा यरुशलम उसकी राजधानी है और इसे बांटा नहीं जा सकता लेकिन फ़लस्तीनियों के विचार अलग हैं.
फ़लस्तीनी राष्ट्रपति से निराशा
फ़लस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास को फ़लस्तीनियों के नेता के तौर पर अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली हुई है.
वह पीएलओ और फ़लस्तीनी प्रशासन का नेतृत्व करते हैं जिसका काम इसराइल के कब्ज़े वाले इलाक़े के कुछ हिस्सों की ज़िम्मेदारी संभालना है.
1990 के ओस्लो समझौते के तहत फ़लस्तीनी प्रशासन को एक स्वतंत्र राष्ट्र की सरकार में तब्दील होना था लेकिन अब यह समझौता लगभग अप्रभावी हो गया है.
हालाँकि राष्ट्रपति के काम को लेकर फ़लस्तीनी संतुष्ट नहीं हैं. उन्होंने मई में होने वाले चुनाव रद्द करवा दिए. माना जा रहा था कि इन चुनावों में उनकी हार होती. फ़लस्तीनी 2006 के बाद से ही राष्ट्रपति या किसी भी विधानमंडल के लिए वोट नहीं कर पाए हैं.
इसी बीच, हमास का यह संदेश देना कि वे लोग आख़िरी दम तक यरुशलम के लिए लड़ेंगे, उन फ़लस्तीनियों के दिल में उतर गया जो राष्ट्रपति अब्बास से नाराज़ हैं.
फ़लस्तीनी इस बात से नाराज़ हैं कि इसराइल की कब्ज़ा की गई ज़मीन पर यहूदियों को बसाए जाने को अब्बास रोक नहीं पाए जबकि यह अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत अवैध है.
इसराइल की घरेलू राजनीति
संघर्षविराम के बाद इसराइल में प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू अब फिर से अपने राजनीतिक वजूद को बचाए रखने की लड़ाई में जुट जाएंगे. हमास के साथ 11 दिन तक हुए संघर्ष से पहले भी वह यही कर रहे थे.
नेतन्याहू पर मुक़दमा चल रहा है और आरोप इतने गंभीर हैं कि वह अपने पूर्ववर्ती एहुद ओलमर्ट की तरह भ्रष्टाचार के लिए जेल जा सकते हैं. 10 मई को जब हमास ने नाटकीय ढंग से यरूशलम पर मिसाइल दागकर संघर्ष तेज़ कर दिया, उस वक्त नेतन्याहू अपना पद गंवाने के बेहद क़रीब थे
इसराइल में दो सालों मे चार चुनाव हुए और चारों में किसी को निर्णायक बहुत नहीं मिल पाया. ऐसे में नेतन्याहू अभी कार्यवाहक प्रधानमंत्री हैं. लगभग एक महीने तक कोशिशें करने के बाद भी नेतन्याहू संसद में 61 वोट हासिल करने लायक गठबंधन बनाने में असफल रहे हैं.
अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे नेतन्याहू के मुख्य प्रतिद्वंद्वी यार लापिड यह एलान करने से कुछ दिन या शायद कुछ घंटे ही दूर थे कि उनके पास सरकार बनाने लायक वोट हैं. लेकिन संघर्ष शुरू होने के कारण लापिड की योजना खटाई में पड़ गई.
अभी भी उनके पास बहुमत लायक वोट जुटाने का समय है मगर माना जा रहा है कि शायद वह सफल न हों और पांचवीं बार चुनाव करवाने पड़ें.
संघर्षविराम कब तक?
इसराइल के सामने एक और चुनौती है. यहूदी बहुसंख्यकों और 20 फ़ीसदी आबादी वाले फ़लस्तीनी अरब अल्पसंख्यकों के बीच सह-अस्तित्व और भाईचारे की भावना ख़त्म हो गई है. नेतन्याहू के ध्रुवीकरण वाले बयानों और अतिवादी यहूदी राष्ट्रवादियों से क़रीबी बढ़ाने से हालात और ख़राब हो गए हैं.
इसराइल और हमास के बीच पहले हुई लड़ाइयों की तरह ही इस बार का संघर्षविराम भी एक अल्पकालिक ठहराव है. न तो इससे विवाद सुलझा है और न ही दोनों पक्ष शांत हुए हैं.
युद्धविराम कितना स्थाई है इसका पता तब तक नहीं चलेगा जब तक उकसाने वाले कोई घटना नहीं हो जाती. यह घटना ग़ज़ा से रॉकेट का दाग़ा जाना या फिर यरुशलम में फ़लस्तीनियों पर इसराइली पुलिस की हिंसा भी हो सकती है.
या फिर वह मुक़दमा भी इस संघर्षविराम का इम्तिहान ले सकता है जिसमें कब्ज़ाए गए पूर्वी यरुशलम के शेख़ जर्रा ज़िले में आकर बसे यहूदी समूहों की ओर से यहां रहने वाले फ़लस्तीनियों को उनके घर से बेदखल करने की मांग की गई है.
यरुशलम में हिंसा की शुरुआत ही इस आशंका को लेकर हुई थी कि फ़लस्तीनी परिवारों को उनके घर से निकाला जा सकता है और यहां पर और यहूदी आकर बस सकते हैं.
इस मामले में अदालत ने अपने फैसले को इसीलिए टाल दिया था ताकि हालात को शांत किया जा सके. मगर यह केस बंद नहीं हुआ है. इसमें फैसला आना ही है. ऐसे में इस संघर्षविराम के लिए पहली बड़ी चुनौती इसराइली अदालत की ओर से ही आ सकती है.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूबपर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)