जॉर्डन में आए संकट को लेकर सऊदी अरब पर शक क्यों

    • Author, फ़्रैंक गार्डनर
    • पदनाम, बीबीसी सुरक्षा संवाददाता

सऊदी अधिकारियों ने जॉर्डन के कथित तख़्तापलट की कोशिश में अपनी भूमिका होने की बात का खंडन किया है.

शनिवार को जॉर्डन के 41 वर्षीय लोकप्रिय प्रिंस हमज़ा को उन्हीं के घर में नज़रबंद कर दिया गया था. उनपर देश को अस्थिर करने की कोशिश करने का आरोप लगाया गया है.

हाल ही में प्रिंस हमज़ा ने कुछ क़बायली नेताओं से मुलाक़ात की थी. इस बैठक में उन्होंने अपने सौतेले भाई शाह अब्दुल्लाह की खुलकर आलोचना की.

इसके बाद, उन्होंने बीबीसी को भेजे अपने एक वीडियो में 'जॉर्डन की सरकार को भ्रष्ट और अक्षम' बताया, साथ ही कहा कि सुरक्षा बलों के डर से लोग खुलकर यह कहने से बचते हैं.

बीबीसी को भेजे अपने वीडियो में ही प्रिंस हमज़ा ने ख़ुद को नज़रबंद किये जाने की ख़बर दी थी.

लेकिन फ़िलहाल शाह अब्दुल्लाह के चाचा की कोशिशों और मध्यस्थता के कारण हालात क़ाबू में हैं. मगर इस बात की काफ़ी चर्चा हो रही है कि क्या इस संकट के पीछे सऊदी अरब का हाथ था?

इस बीच, शाह अब्दुल्लाह और उनकी सरकार के साथ अपना पूर्ण समर्थन जताने के लिए सऊदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस फ़ैसल बिन फ़रहान अपने प्रतिनिधिमंल के साथ राजधानी अम्मान पहुँचे.

सऊदी अधिकारियों की मानें, तो इस यात्रा का मक़सद मौजूदा स्थिति को संभालना था, साथ ही यह बताना भी था कि जॉर्डन में अस्थिरता पैदा करने की कोशिशों में सऊदी अरब के शामिल होने की बात बिल्कुल निराधार है, जिसका हक़ीक़त से कोई वास्ता नहीं.

तो इस मामले में सऊदी कनेक्शन क्या है?

पिछले सप्ताह के अंत में, जब यह संकट अपने चरम पर दिखाई दे रहा था, तब जॉर्डन के अधिकारियों ने कहा था कि जॉर्डन की सुरक्षा एजेंसियाँ कुछ समय से प्रिंस हमज़ा समेत एक दजर्न से अधिक अधिकारियों की गतिविधियों पर नज़र रख रही थीं.

उस समय जॉर्डन के अधिकारियों ने कहा था कि ये लोग देश में अस्थिरता लाने के लिए कुछ बेनाम विदेशी संस्थाओं के संपर्क में थे. हालांकि, प्रिंस हमज़ा इन आरोपों को ग़लत बताते हैं.

ग़ौर करें, तो यहाँ दो अलग-अलग मुद्दे हैं. एक हैं दिवंगत किंग हुसैन के बड़े बेटे प्रिंस हमज़ा जिन्होंने शासन के आलोचक रहे क़बायली नेताओं से मुलाक़ात कर जॉर्डन के सुरक्षा प्रमुख के लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं. दूसरा मुद्दा है वो अधिकारी, जिनके कथित तौर पर कम से कम किसी एक देश के साथ लिंक हैं.

शनिवार को गिरफ़्तार हुए लोगों में एक महत्वपूर्ण नाम है बासेम अब्दुल्लाह का जो जॉर्डन के शाही दरबार के प्रमुख रह चुके हैं और फ़िलहाल सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के आर्थिक सलाहकार हैं.

उनके पास जॉर्डन और सऊदी अरब, दोनों देशों की नागरिकता है और वे सऊदी अरब के नामी फ़्यूचर इनवेस्टमेंट इनिशियेटिव फ़ोरम के मध्यस्थ रह चुके हैं.

अमेरिकी अख़बार वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा है कि सऊदी अरब के विदेश मंत्री का प्रतिनिधिमंडल बासेम अब्दुल्लाह के बिना रियाद वापस लौटने से इनकार कर रहा था. हालांकि, सऊदी के अधिकारियों ने इस बात से इनकार किया है.

बासेम अब्दुल्लाह के कई शक्तिशाली अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन हैं. सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस के क़रीबी होने के साथ-साथ, उनका संबंध संयुक्त अरब अमीरात के शासक, क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन ज़ायद से भी है.

वे हाल ही में येरूशलेम के आस-पास की फ़लस्तीनी ज़मीन की यूएई समर्थित ख़रीद में कथित तौर पर शामिल रहे थे.

सऊदी और जॉर्डन के पुराने रिश्ते

सऊदी अरब और जॉर्डन आर्थिक दृष्टि से बहुत भिन्न हैं, लेकिन दोनों देशों में कई चीज़ें बड़ी समान हैं.

उनके गहरे ऐतिहासिक संबंध सदियों से चले आ रहे हैं और दोनों देशों की संयुक्त रेगिस्तानी सीमा पर आदिवासी रहते हैं.

जब जवानी के दिनों में मैं दक्षिणी जॉर्डन की बानी हुवैतत जनजाति से आने वाले एक साथी के साथ रहता था, तो मैंने देखा कि कैसे ये आदिवासी आसानी से सऊदी अरब आते-जाते रहते थे और भेड़, ऊंटों के ज़रिए सामानों का आदान-प्रदान भी करते थे.

दोनों देशों के शासकों का एक दूसरे का समर्थन करने में निहित स्वार्थ शामिल रहा है.

ये बात समझना निश्चित रूप से कठिन है कि जॉर्डन के सबसे शक्तिशाली पड़ोसियों- सऊदी अरब या इसराइल में से कोई एक क्यों इस छोटे, अपेक्षाकृत कमज़ोर राज्य को अस्थिर करना चाहता है.

दिवंगत शाह हुसैन और अब उनके बेटे शाह अब्दुल्लाह अब तक जॉर्डन की राजशाही को मध्य-पूर्व की तेज़ राजनीति हवाओं से बचाने में कामयाब रहे हैं.

जॉर्डन के पास अपने स्वयं के कुछ प्राकृतिक संसाधन हैं और इसके बुनियादी ढांचे को पहले इराक़ से और बाद में सीरिया से भारी संख्या में आये शरणार्थियों का भी सामना करना पड़ा रहा है.

कोविड-19 ने पर्यटन उद्योग को पूरी तरह ख़त्म करके रख दिया है.

देश कमज़ोर अर्थव्यवस्था के झटके का भी सामना कर रहा है जिसे सरकार के कुप्रबंधन के रूप में देखा जा रहा है और लोगों में आक्रोश बढ़ रहा है.

लेकिन इसके बावजूद इस इलाक़े में बैठी सरकारों को अच्छे से पता है कि अगर जॉर्डन के राजघराने की सरकार गिर गई, तो इस पूरे क्षेत्र में कई गंभीर घटनाएं घट सकती हैं.

यही कारण है कि सभी देशों ने शाह अब्दुल्लाह के प्रति सार्वजनिक रूप से अपना समर्थन ज़ाहिर किया है.

जानकार मानते हैं कि मध्य-पूर्व के सबसे स्थिर देश जॉर्डन में हलचल-अस्थिरता देखकर सिर्फ़ अल-क़ायदा और इस्लामिक स्टेट को ही ख़ुशी होगी.

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