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चीन की खाड़ी देशों पर नज़र, अमेरिका के लिए खतरे की घंटी?
- Author, कमलेश
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
एक तरफ जहाँ अमेरिकी नेतृत्व वाले क्वॉड को चुनौती देने के लिए चीन और रूस क्षेत्रीय सुरक्षा मंच पर बात कर रहे हैं, वहीं चीन ने खाड़ी देशों में अपनी बढ़ती दिलचस्पी के संकेत भी दिए हैं.
चीन खाड़ी देशों के साथ अपने संबंध बेहतर करने की कोशिश में लगा हुआ है.
खाड़ी सहयोग परिषद (गल्फ़ कॉरपोरेशन काउंसिल - जीसीसी) के सेक्रेटरी जनरल नयेफ़ बिन फ़लाह अल-हज़राफ़ और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच एक बैठक हुई है.
सऊदी अरब की राजधानी रियाद में हुई इस बैठक के बाद जीसीसी ने जहाँ चीन को अपना एक अच्छा दोस्त बताया है, वहीं चीन के स्टेट काउंसलर और विदेश मंत्री ने कहा है कि 'चीन क्षेत्रीय सुरक्षा में रचनात्मक भूमिका निभाने के लिए तैयार है.'
ये साल जीसीसी की स्थापना का 40वाँ साल है. साथ ही चीन और जीसीसी के संबंधों को भी 40 साल हो गए हैं.
आर्थिक और सुरक्षा क्षेत्र में संबंधों पर ज़ोर
इस मौक़े पर दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय संबंध बेहतर बनाने और आर्थिक व सुरक्षा क्षेत्र में मज़बूत संबंध बनाने की बात की.
वांग यी ने कहा कि दोनों पक्षों ने बहुत प्रगति की है और वो एक नए ऐतिहासिक शुरुआती बिंदु पर खड़े हैं.
उन्होंने कहा, “हम उम्मीद करते हैं कि जीसीसी सदस्य देशों पर वैश्विक अर्थव्यवस्था का दबाव कम करने और आर्थिक सुधार करने में मदद के लिए दोनों पक्ष चीन-जीसीसी मुक्त व्यापार समझौते (एफ़टीए) पर वार्ताएं जल्द पूरी कर लेंगे.”
वहीं, अल-हज़राफ़ ने कहा कि जीसीसी और इसके सदस्य देश चीन के साथ रणनीतिक सहयोग की बहुत सराहना करते हैं. उन्होंने पुष्टि की कि एफ़टीए वार्ताओं को फिर से शुरू करने के लिए चीन जीसीसी की सूची में सबसे ऊपर है.
अल-हज़राफ़ ने परस्पर लाभ के लिए डिजिटल अर्थव्यवस्था और उच्च तकनीक के क्षेत्र में सहयोग मज़बूत करने की बात भी कही.
साथ ही कहा, “जीसीसी मध्य पूर्व में शांति और स्थिरता बनाये रखने में चीन की महत्वपूर्ण भूमिका की सराहना करता है और उसका स्वागत करता है और इस संबंध में चीन के साथ सहयोग को और मज़बूत करने के लिए तैयार है,”
चीन के विदेश मंत्री इस समय सऊदी अरब, तुर्की, ईरान, बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की यात्रा पर हैं.
खाड़ी देशों में चीन की दिलचस्पी
खाड़ी देशों में चीन की रूचि और पकड़ बहुत अधिक नहीं रही है, लेकिन जीसीसी देशों के साथ आर्थिक और सुरक्षा सहयोग बढ़ाने की बात करना चीन के बदलते रुझान को दिखाता है.
अमेरिका के आक्रामक होते रवैये और एशिया प्रशांत क्षेत्र में नए सहयोगियों की तलाश के बीच चीन का दायरा बढ़ाना और अहम हो जाता है.
लेकिन, खाड़ी देशों में बढ़ती चीन की दिलचस्पी पर बात करने से पहले ये जानते हैं की जीसीसी है क्या.
जीसीसी क्या है
जीसीसी यानी खाड़ी सहयोग परिषद के छह सदस्य देश हैं, सऊदी अरब, यूएई, कुवैत, कतर, बहरीन और ओमान. इसका मुख्यालय रियाद में स्थित है और इसकी आधारिक भाषा अरबी है.
यह एक राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और क्षेत्रीय संगठन है जिसकी स्थापना 1981 में हुई थी. इसकी स्थापना इन छह अरब खाड़ी देशों के बीच समन्वय बनाने, एकजुटत लाने, सहयोग स्थापित करने, एकीकृत सेना और समान तंत्र विकसित करने के लिए हुई थी.
जीसीसी में शामिल ये सभी देश बड़े तेल उत्पादक भी हैं और चीन व भारत जैसे की देशों की ऊर्जा आपूर्ति में अहम भूमिका निभाते हैं.
खाड़ी देशों पर लंबे समय से अमेरिका का प्रभाव रहा है. ये देश सैन्य सुरक्षा के लिए अमेरिका पर निर्भर करते हैं. ऐसे में चीन के प्रयास और खाड़ी देशों से सहयोग बढ़ाने की कोशिशें कई नए समीकरणों को जन्म दे सकती है.
चीन की ऊर्जा ज़रूरतें
चीन के खाड़ी देशों के संबंधों के केंद्र में ऊर्जा, बुनियादी ढांचा, व्यापार और निवेश रहा है.
चीन अपनी कच्चे तेल की ज़रूरत का 35 प्रतिशत हिस्सा खाड़ी देशों से पूर करता है और इस दशक के अंत तक इसके 60 प्रतिशत तक बढ़ने की संभावना है.
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर फ़ॉर साउथ एशियन स्टडीज़ के प्रोफेसर संजय के भारद्वाज कहते हैं कि चीन की खाड़ी देशों में रूचि होने के पीछे दो-तीन फैक्टर हैं. चीन अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के साथ-साथ अमेरिका प्रभाव को भी चुनौती देना चाहता है.
वह बताते हैं, “चीन तेजी से बढ़ती हुई और एक बड़ी अर्थव्यवस्था है. वो अपनी आर्थिक वृद्धि बनाए रखना चाहते हैं. इसके लिए उन्हें ऊर्जा की ज़रूरत है. खाड़ी देश ऊर्जा से भरपूर देश हैं. ऐसे में चीन की उनमें रूचि होना स्वाभाविक है.”
“चीन का वन बेल्ट वन रोड इनिशिएटिव भी इसी कड़ी का हिस्सा है जिसे खाड़ी देशों से भी समर्थन मिला है. इसमें व्यापार के दो तरीक़े हैं. एक चीन की कंपनियां के उत्पाद दुनिया भर में पहुंचाये जाएं और दूसरा चीन की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा किया जाए.”
इस योजना के तहत चीन एशिया और यूरोप में सड़कों और बंदरगाहों का जाल बिछाना चाहता है, जिससे चीन के सामान की दुनिया के बाज़ारों में पहुंच आसान हो सके. दुनिया के बहुत से देश इस प्रोजेक्ट में चीन के साथ आए हैं.
इसी को ध्यान में रखकर चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर और ग्वादर एयरपोर्ट भी बनाया गया है. अपनी मैरिटाइम रूट में भी किसी भी तरह की बाधा नहीं चाहता. इन दोनों के लिए खाड़ी देशों से अच्छे संबंध होने बहुत ज़रूरी हैं.
तुर्की में यिल्दिरिम बेयाज़ित विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर ओमेन अनस कहते हैं किये सिर्फ़ एकतरफा संबंध की बात नहीं है. खाड़ी देश भी तेल के निर्यात के लिए नए बाज़ारों की तलाश में हैं. साथ ही वो तेल से अपनी निर्भरता कम करके अर्थव्यवस्था को दूसरे आधार भी देना चाहते हैं जिसके लिए चीन और भारत जैसे बड़े और घनी आबादी वाले देश सबसे बेहतर हैं.
वह बताते हैं, “इन देशों के लिए तेल एक मुसीबत भी बन गया. अमेरिका जैसे देश की अब खाड़ी देशों पर ऊर्जा के लिए निर्भरता लगभग ख़त्म हो गई है. कई देश तेल के अलावा ऊर्जा के दूसरे स्रोतों की तरफ भी देखने लगे हैं. ऐसे में खाड़ी देश पर्यटन या दूसरे देशों में निवेश के ज़रिए अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना चाहते हैं.”
“उन्हें चीन से तकनीकी के क्षेत्र में भी सहयोग मिल सकता है. पिछले कुछ समय में इस क्षेत्र में ड्रोन की सप्लाई, सैन्य प्रशिक्षण और रणनीतिक सहयोग बढ़ा है. दरअसर, दोनों पक्ष कुछ मामलों में एक-दूसरे के पूरक हो गए हैं.”
अमेरिका को चुनौती
लेकिन, ये दोस्ती और दिलचस्पी केवल आर्थिक नहीं है. चीन की इन कोशिशों के पीछे अमेरिका भी एक कारण है.
पिछले कुछ सालों में चीन को लेकर अमेरिका की आक्रामकता बहुत बढ़ गई है. ट्रंप प्रशासन हो या बाइडन दोनों के चीन के प्रति रुख में कोई बदलाव नहीं हुआ है.
हाल ही में अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत ने मिलकर क्वाड समूह बनाया है जिसे चीन अपनी सुरक्षा के लिए ख़तरा बता रहा है.
दोनों देशों के बीच लंबे समय तक ट्रेड वॉर भी चली और अमेरिका ने वीगर मुसलमानों से लेकर हॉन्ग-कॉन्ग के विरोध प्रदर्शनों तक में चीन पर सवाल खड़े किए हैं.
संजय के भारद्वाज कहते हैं, “अमेरिका से मिल रही इसी चुनौती से निपटने के लिए चीन भी नए सहयोगियों की तलाश में है. इस्लामिक देशों की बात करें तो वो मेलिशिया, तुर्की और पाकिस्तान को साथ लेकर एक अलग समूह बनाना चाहता है जो इस्लामिक देशों को एक नया नेतृत्व देता हो. साथ ही इस्लामिक देशों पर अमेरिका व सऊदी अरब के प्रभाव को कम करता हो.”
खाड़ी देशों पर लंबे समय से अमेरिका का प्रभाव है. अमेरिका उन्हें सैन्य सुरक्षा प्रदान करता है और वहां की राजनीति में गहरी दखल रखता है.
अगर चीन का खाड़ी देशों और फिर अन्य मध्य पूर्वी देशों में दखल होता है तो इससे अमेरिका के लिए ख़तरे की घंटी बज सकती है.
खाड़ी देशों को सैन्य सहायता
अमेरिकी इतिहासकार और नेवल ऑफिसर एडमिरल अल्फ्रेड महान ने कहा था कि जो हिंद महासागर में वर्चस्व रखता है वो दुनिया में वर्चस्व रख सकता है.
संजय के भारद्वाज इसी कथन का जिक्र करते हुए कहते हैं कि चीन भी सुपरपावर बनने की अपनी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए चौतरफा सहयोगी इकट्ठे करना चाहता है. वो मौजूदा सुपरपावर अमेरिका के इस क्षेत्र में वर्चस्व को कम करना चाहता है.
वह बताते हैं, “चीन एक आर्थिक शक्ति के साथ-साथ सैन्य ताकत भी बनकर उभरा है. जीसीसी के साथ हुई बैठक में जिस क्षेत्रीय सुरक्षा की बात की गई है उसके बड़े मायने हैं. अभी तक अपनी सुरक्षा के लिए खाड़ी देश केवल अमेरिका पर निर्भर करते हैं लेकिन चीन उन्हें एक विकल्प दे सकता है. चीन का अगर उनसे सैन्य सहयोग होता है तो अमेरिकी वर्चस्व को ज़रूर झटका लगेगा.”
लेकिन, अमेरिकी दबाव के सामने खाड़ी देश किस सीमा तक चीन का सहयोग ले सकते हैं. क्या चीन वहां अमेरिका की जगह ले सकता है?
इसे लेकर ओमेन अनस कहते हैं, “सऊदी अरब खाड़ी देशों का नेतृत्व करता है. अमेरिका की ऊर्जा को लेकर सऊदी अरब पर निर्भरता कम हो गई है. दोनों ही देशों को अब एक-दूसरे की उतनी ज़रूरत नहीं है. ऐसे में सऊदी अरब चीन के ज़रिए अमेरिका के साथ संतुलन बना सकता है.”
“लेकिन, वो चाहता है कि कोई एक देश इस क्षेत्र पूरी तरह से मजबूत ना होने पाए. सभी बड़े देश थोड़ा-थोड़ा हिस्सा रखें जिससे कि शक्ति संतुलन बना रहे. इसलिए खाड़ी देश जापान, दक्षिण कोरिया, यूक्रेन और जर्मनी से भी संबंध बढ़ा रहे हैं.”
वहीं, सऊदी अरब और भारत के संबंध पिछले कुछ सालों में और समृद्ध हुए हैं. भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल नरवणे भी सऊदी अरब और यूएई का दौरा कर चुके हैं. जानकार मानते हैं कि ऐसे में चीन भी इस क्षेत्र में अपनी पहुंच बढ़ाना चाहता है और बड़ा प्लेयर बनकर उभरना चाहता है.
ओमेन अनस बताते हैं कि खाड़ी देशों में चीन एक नया प्लेयर है. लेकिन, रूस ने भी वहां काफी दिलचस्पी दिखाई है. सीरिया में बड़ा बेस बना लिया है. मिस्र में संबंध मजूबत किए हैं और लीबिया में अपना मौजूदगी दर्ज की है. उस क्षेत्र में रूस भी एक चुनौती है. हालांकि, रूस और चीन की हालिया दोस्ती यहां कितना काम करती है ये देखना होगा.
फिलहाल पूरी दुनिया में नए-नए समीकरण बन रहे हैं. कहीं मित्र देश दुश्मन बने हैं तो कहीं दुश्मन देशों ने मित्रता का हाथ बढ़ाया है. इसी तरह चीन भी अपने लिए नए दोस्त ढूंढ रहा है.
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