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रूस में विक्टरी डे परेड का आयोजन क्यों होता है? भारत भी शामिल
रूस हर साल दूसरे विश्व युद्ध में नाज़ी जर्मनी पर सोवियत विजय की वर्षगाँठ मनाता है. इस दिन राजधानी मॉस्को के जाने माने रेड स्क्वेयर पर एक भव्य सैन्य परेड का आयोजन किया जाता है जिसमें रूस अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करता है.
इस बार बुधवार को रूस 75वें विक्टरी परेड का आयोजन कर रहा है लेकिन इस बार विक्टरी परेड में एक बड़ा बदलाव है.
आधिकारिक तौर पर मई की नौ तारीख को इस ख़ास परेड का आयोजन होता है लेकिन इस साल कोरोना महामारी के कारण इसका आयोजन दो महीने बाद कराने का फ़ैसला किया गया.
साल की शुरुआत में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि इस साल का विक्टरी डे परेड ख़ास होगा लेकिन काराना वायरस के फैलने से रोकने के लिए रूस ने मार्च से लॉकडाउन लगाया.
सरकार ने परेड को रद्द किया. साथ ही रूसी सेना को समर्पित ऑर्थोडॉक्स कैथेड्रल का उद्घाटन समारोह भी टाल दिया गया.
परेड तो कैंसिल हुई, लेकिन इस दिन टेलिवीज़न पर बीते साल की परेड का फुटेज चलाया गया. राष्ट्रपति पुतिन में एक छोटे से समारोह में युद्ध में शामिल हुए लोगों की याद में इटर्नल फ्लेम वॉर मेमोरियल पर फूल चढ़ाए और 75 सालों को याद करते हुए 75 विमानों ने मॉस्को के आसमान में उड़ान भरी.
8 मई वाले सप्ताह में लगातार कुछ दिनों तक रूस में कोरोना संक्रमण के क़रीब 10 हज़ार मामले रोज़ाना सामने आए थे.
विक्टरी परेड का महत्व?
सोवियत रूस के जाने माने नेता जोसेफ़ स्टालिन ने 22 जून 1945 को आदेश जारी किया कि जर्मन नाज़ी सेना पर जीतने के मौक़े पर मॉस्को के रेड स्क्वायर में सेना की ख़ास परेड का आयोजन किया जाएगा.
पहले ये परेड कुछ सालों में एक बार आयोजित की जाती रही, लेकिन 1995 से इसे हर साल मनाया जाने लगा.
1945 के बाद ये दूसरी बार है जब मई के अलावा किसी और दिन इस परेड का आयोजन किया जा रहा है.
दरअसल साल 7 मई 1945 को मित्र देशों की सेना के सामने नाज़ियों ने अपने हथियार डाल दिए और बिना शर्त सरेंडर कर दिया.
सरेंडर की शर्तों पर बर्लिन के नज़दीक 8 मई रात को 22.43 बजे हस्ताक्षर किए गए. हस्ताक्षर के वक्त रूस में समय था 9 मई के 0.43 बजे का.
इस कारण साल 1945 के बाद से हर साल यूरोप के कई देश 8 मई को अपना विक्टरी डे मनाते हैं, जबकि रूस ने 9 मई को विक्टरी डे परेड का आयोजन करने का फ़ैसला किया.
सरेंडर की शर्तों पर हस्ताक्षर से पहले स्टालिन ने 9 मई को विक्टरी डे मनाने के फ़ैसला किया था.
ऑर्थोडॉक्स कैथेड्रल
सेना को समर्पित ऑर्थोडॉक्स कथेड्रल को 17 महीनों में बनाया गया है और इसमें करीब 820 लाख डॉलर का निवेश किया गया है. इसके लिए रक्षा मंत्रालय, बड़ी कंपनियों और लोगों से चंदे के रूप में आर्थिक मदद ली गई थी.
इस कैथेड्रल को सोवियत विजय की 75वीं वर्षगाँठ का प्रतीक बनाने के लिए इसमें कई सांकेतिक बातों का ध्यान रखा गया है.
मसलन कैथेड्रल का बेल टावर 75 मीटर ऊंचा है, इसका मुख्य डोम 19.45 मीटर चौड़ा है और इसका छोटा डोम 14.18 मीटर ऊँचा है. 75 साल पहले द्वितीय विश्व युद्ध 1945 में ख़त्म हुआ था और इस दौर सोवियत रूस ने 1418 दिनों तक जर्मन नाज़ी सेना का सामना किया था.
विक्टरी परेड में शामिल होगी भारतीय सेना
रूस के विक्टरी परेड में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी शामिल हो रहे हैं. साथ ही भारत के जल, थल और वायु सेनाओं के जवानों का 75 सदस्यों का एक दस्ता भी इस परेड में हिस्सा ले रहा है.
भारत के मार्चिंग दस्ते का नेतृत्व सिख लाइट इन्फ़ैंट्री के मेजर रैंक के अधिकारी मेजर अंजुम गोरका करने वाले हैं. दस्ते में सेना की तीन महिला अधिकारी भी शामिल हैं.
मेजर अंजुम गोरका ने इस साल हुए गणतंत्र दिवस परेड में सेना की सिख लाइट इन्फ़ैंट्री रेजिमेंट की टुकड़ी का नेतृत्व किया था.
यह रेजिमेंट द्वितीय विश्व युद्ध में बहादुरी के साथ लड़ी थी और इसे चार बैटल ऑनर तथा दो मिलिट्री क्रॉस मिले थे.
ब्रिटिश इंडियन आर्म्ड फोर्सेस की तरफ से द्वितीय विश्व युद्ध में कई मोर्चों पर भारतीय सैनिकों ने लड़ाई लड़ी थी. युद्ध में क़रीब 87 हज़ार भारतीय सैनिकों की जान गई थी और हज़ारों घायल हुए थे.
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