भारत-चीन सीमा झड़प: चीन के नुक़सान पर उनके यहां की मीडिया ने क्या कहा?

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लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन के जवानों के बीच हिंसक झड़प को लेकर देश-दुनिया में काफ़ी कुछ लिखा जा रहा है.

चीन का आधिकारिक मीडिया भारत और चीन के सैनिकों के बीच उत्तरी हिमालय में 15 जून को हुई हिंसक झड़प के लिए भारत को ज़िम्मेदार ठहरा रहा है.

वहीं, चीनी मीडिया उसके पक्ष की ओर हुए नुक़सान पर चुप है और भारत के साथ सख़्ती से निपटने के लिए कह रहा है.

चीन के आधिकारिक बयान के अलावा अधिकतर मीडिया सीधे-सीधे संघर्ष पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहा है, जिसमें भारत के 20 जवानों की मौत हुई है.

सरकारी दैनिक अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने भारत को चेतावनी देते हुए कहा है कि वह सीमा पर अपने जवानों को नियंत्रण में रखे क्योंकि चीन सैन्य मामलों में भारत से श्रेष्ठ है.

भारत-चीन का यह संघर्ष ट्विटर की तरह चीन के सोशल मीडिया वेबसाइट वीबो के ट्रेंडिंग टॉपिक में भी नहीं आया.

हालांकि, वीबो यूज़र्स ने हताहतों पर चीन की चुप्पी पर सवाल खड़े किए और कुछ ने भारत से बदला लेने की बात कही.

मई की शुरुआत में लद्दाख में दोनों देशों के जवानों के बीच धक्का-मुक्की और पत्थर फेंकने की घटना सामने आई थी जिसके बाद से चीन का विदेश मंत्रालय बार-बार कह रहा था कि सीमा पर स्थिति 'स्थिर और नियंत्रित' है और दोनों देश बातचीत के ज़रिए तनाव सुलझा रहे हैं.

सोमवार को हुई हिंसक झड़प के लिए चीन ने भारत को ज़िम्मेदार ठहराया है.

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आधिकारिक प्रतिक्रिया

चीन का घरेलू सरकारी मीडिया देश के बाहर के लोगों को ट्विटर और अंग्रेज़ी भाषा के अन्य माध्यमों के ज़रिए जो सूचना दे रहा है वो बेहद अलग है.

सत्ताधारी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अख़बार पीपल्स डेली के 17 जून के अंक में और सरकारी टीवी चैनल चाइना सेंट्रल टेलीविज़न (सीसीटीवी) पर 16 जून को प्रसारित हुए शाम के घरेलू न्यूज़ बुलेटिन में झड़प का कोई ज़िक्र नहीं था.

17 जून को चीन की सरकारी वेबसाइट ग्लोबल टाइम्स ने विदेश मंत्री वांग यी के कथन को वेबसाइट पर जगह दी, जो उन्होंने अपने भारतीय समकक्ष एस. जयशंकर से कही थी.

वेबसाइट में कहा गया है कि वांग यी ने झड़प के लिए भारतीय सैनिकों को ज़िम्मेदार ठहराया है और उन्होंने भारत से सीमा पर तनाव कम करने के लिए पिछली सहमतियों का पालन करने के लिए कहा है.

ग्लोबल टाइम्स की अंग्रेज़ी रिपोर्ट के अनुसार, 16 और 17 जून को चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान प्रेस कॉन्फ़्रेंस करने आए और उन्होंने भारतीय सेना पर सीमा पार करके झड़प के लिए उकसाने और चीनी सैनिकों पर हमला करने का आरोप लगाया लेकिन वो चीनी पक्ष की ओर किसी भी हानि पर चुप रहे.

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16 जून को की गई झाओ की टिप्पणी विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर नहीं थी और न ही घरेलू चीनी भाषा के मीडिया ने उसे अपने यहां जगह दी थी.

हालांकि, सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ और दूसरे आधिकारिक घरेलू मीडिया ने 16 जून का कर्नल जांग शुली का बयान ज़रूर लिया था. कर्नल शुली तिब्बत मिलिट्री क्षेत्र के प्रवक्ता हैं जो भारत के साथ लगती सीमा की देखरेख करती है.

शुली ने भारतीय सैनिकों पर विवादित सीमा को 'अवैध' तरीक़े से पार करने और चीनी जवानों पर 'भड़काऊ' हमले करने का आरोप लगाया.

वहीं, सीसीटीवी ने 17 जून को एक रिपोर्ट की थी जिसमें चीनी सेना हाल में तिब्बती पठार पर एक हाई-एल्टिट्यूड अभ्यास कर रही है, जो मई के बाद भारत के साथ लगती सीमा में एक नया सैन्य अभ्यास है.

वीडियो कैप्शन, भारत चीन सेना के संघर्ष पर चीन क्या बोला?

हताहतों पर भ्रम बरक़रार

चीनी पक्ष में कितना नुक़सान हुआ है इस पर चीन के सरकारी घरेलू मीडिया ने कोई रिपोर्ट नहीं की है.

हालांकि, ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्टर वांग वेनवेन ने 16 जून को अपने अकाउंट से ट्वीट किया था कि बिना गोली चलाए हिंसक झड़प में चीन के पांच जवान मारे गए हैं और 11 घायल हुए हैं.

लेकिन उन्होंने बाद में ट्वीट डिलीट कर दिया और एक नया ट्वीट करते हुए कहा कि यह उन्होंने भारतीय मीडिया के हवाले से कहा था.

वेनवेन के ट्वीट के बाद ग्लोबल टाइम्स ने ट्वीट किया कि उसने अपने आधिकारिक अकाउंट पर चीनी पक्ष के नुक़सान के बारे में कभी भी नहीं बताया था.

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चीन में ट्विटर का इस्तेमाल करना बेहद मुश्किल है इसलिए वहां पर लोग ट्विटर की तरह चीनी प्लेटफ़ॉर्म वीबो इस्तेमाल करते हैं जिस पर अधिकतर लोग चीन से सही आंकड़ा जारी करने की मांग कर रहे थे.

बाद में ग्लोबल टाइम्स के संपादक हू शिजिन ने ट्विटर और वीबो पर पोस्ट किया कि उनकी समझ के हिसाब से झड़प में चीनी सैनिकों को भी 'नुक़सान उठाना' पड़ा है लेकिन उन्होंने कोई संख्या नहीं बताई.

हू ने ट्विटर पर अंग्रेज़ी में 16 जून को और वीबो पर चीनी भाषा में 17 जून को लिखा, "17 घायल भारतीय सैनिक कथित तौर पर समय पर बचाव अभियान न होने कारण मारे गए जो दिखाता है कि भारतीय सेना में घायलों के लिए आपातकालीन चिकित्सा मुहैया करा पाने में गंभीर कमियां हैं. पठार पर यह वास्तविक आधुनिक लड़ाकू क्षमताओं वाली सेना नहीं है. भारतीय जनमत को शांत रहने की ज़रूरत है."

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17 जून की वीबो और ट्विटर पोस्ट में हू ने लिखा था कि चीन ने अपने पक्ष में हुए नुक़सान की जानकारी भारत की 'अच्छाई के लिए' रोकी है क्योंकि इससे उसकी जनता की भावनाएं भड़क सकती हैं.

ग्लोबल टाइम्स के चीनी और अंग्रेज़ी भाषा के 17 जून के संपादकीय में हू के बयान को दोहराया गया कि चीन ने हताहतों की संख्या 'तुलना करने और टकराव की भावना रोकने के लिए' सार्वजनिक नहीं की.

इसमें कहा गया, "चीन सीमा के मुद्दों को भारत के साथ मुक़ाबले में नहीं बदलना चाहता है." साथ ही इसमें चेतावनी दी गई है कि चीन ऐसा कोई भी संघर्ष जीत सकता है.

सीमा पर तनाव को लेकर अख़बार ने भारत के 'अहंकार और लापरवाही' को ज़िम्मेदार ठहराया है और भारत को सलाह दी गई है कि वह सीमा पर मुक़ाबले के मामले में अमरीकी मदद पर भरोसा न करे.

वीडियो कैप्शन, भारत-चीन के बीच गलवान में हिंसक झड़प क्यों हुई?

डोकलाम की भी गूंज सुनाई दी

हालिया संघर्ष से पहले अधिकतर चीनी आधिकारिक मीडिया ने सीमा पर सैनिकों के झगड़े की कुछ जानकारी प्रकाशित की थी और इस पर सीधा कुछ नहीं कहा था.

चीनी विशेषज्ञों ने इस लड़ाई को कम करके दिखाया था और कहा था कि ये डोकलाम गतिरोध की तरह नहीं होगा.

सिर्फ़ ग्लोबल टाइम्स ने गलवान घाटी में भारत के सड़क निर्माण और दूसरे निर्माणों को सीमा पर लड़ाई के लिए ज़िम्मेदार ठहराया है.

सिक्किम के डोकलाम में 2017 में चीन के साथ भारत का गतिरोध 72 दिनों तक चला था.

इसकी समाप्ति पर चीनी मीडिया ने चीन के विदेश मंत्रालय की प्रशंसा करते हुए लिखा था कि "कैसे उसने 28 अगस्त को भारत के 'घुसपैठिए' जवानों को पीछे हटने पर मजबूर किया है और चीन अब उस इलाक़े में गश्त जारी रखेगा."

वहीं, भारतीय मीडिया ने इस पर लिखा था कि दोनों देश के जवान पीछे हटने पर सहमत हो गए हैं.

चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच डोकलाम में लड़ाई तब शुरू हुई थी जब भारत ने जून के मध्य में अपने जवान भेजकर चीनी जवानों को एक सड़क निर्माण रोकने के लिए कहा था.

इस क्षेत्र में चीन और भूटान के बीच विवाद है और भारत भूटान के दावे का समर्थन करता है.

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