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कोरोना वायरसः क्या आप दोबारा संक्रमित हो सकते हैं?
- Author, जेम्स गैलाघर
- पदनाम, स्वास्थ्य एवं विज्ञान संवाददाता
कुछ लोग दूसरों की तुलना में ज़्यादा बीमार क्यों लगते हैं? क्या ये हर सर्दियों में वापस लौट आएगा? क्या वैक्सीन से इस बीमारी का इलाज हो पाएगा?
क्या इम्युनिटी सर्टिफ़िकेट वाले लोग काम पर वापस लौट सकेंगे? लंबे समय तक हम इस वायरस का मुक़ाबला कैसे कर पाएंगे?
कोरोना वायरस के बारे में पूछे जा रहे ज़्यादातर महत्वपूर्ण सवालों में कुछ का सीधा संबंध हमारे इम्यून सिस्टम से है.
दिक्कत ये है कि हमारे पास इसके बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है.
कोरोना वायरस कब आपका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा?
हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता यानी हमारा इम्यून सिस्टम किसी संक्रमण के ख़िलाफ़ हमारी रक्षा करता है.
इसके दो हिस्से होते हैं. पहला हिस्सा तो हमेशा मुस्तैद रहता है.
जैसे ही पता चलता है कि शरीर में किसी घुसपैठिये ने धावा बोला है, पहला हिस्सा बिना देरी किए झट से एक्शन में आ जाता है.
इसे स्वाभाविक प्रतिरोधक क्षमता भी कहते हैं. जब ये काम करता है तो शरीर में कुछ रसायनों का स्राव होता है.
इससे हमारा शरीर तपने लगता है और व्हाइट ब्लड सेल्स (श्वेत रक्त कोशिकाएं) प्रभावित कोशिकाओं को नष्ट कर देती है.
लेकिन इम्यून सिस्टम के काम करने के इस तरीके का कोरोना वायरस से कोई सीधा संबंध नहीं है. ये सीखेगा नहीं और ये आपको कोरोना वायरस से नहीं बचाएगा.
दरअसल, आपको एक ऐसी प्रतिरोधक क्षमता चाहिए है जो ज़रूरत के हिसाब से ढल सके.
इस प्रक्रिया में वो कोशिकाएं शामिल होती हैं जो ख़ास तरह की एंटीबॉडीज़ का निर्माण करती हैं. ये एंटीबॉडीज़ वायरस को रोकने का काम करती हैं.
और टी-सेल्स वायरस से संक्रमित होने वाली कोशिकाओं पर हमला शुरू कर देता है.
इम्यून सिस्टम में इसे 'सेल्युलर रिस्पॉन्स' कहते हैं यानी जब शरीर में किसी बीमार कोशिका को दूसरी कोशिकाएं हरा दें.
इसमें वक़्त लगता है. रिसर्च से ये पता चला है कि कोरोना वायरस को टारगेट करने में सक्षम एंटीबॉडीज़ के बनने में लगभग दस दिन लगते हैं.
वैसे मरीज जो सबसे ज़्यादा बीमार होते हैं, उनमें सबसे ताक़तवर इम्यून सिस्टम डेवलप होता है.
अगर हमारा 'एडैप्टिव इम्यून रिस्पॉन्स' यानी ऐसी प्रतिरोधक क्षमता जो ज़रूरत के हिसाब से ढल सके, काफी ताक़तवर हो तो संक्रमण ज़्यादा दिनों तक बना रह सकता है और ये हमें भविष्य में होने वाले संक्रमण से भी बचाता है.
कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनमें कोरोना संक्रमण के हल्के लक्षण हैं या जरा भी नहीं हैं. ऐसे लोगों में पर्याप्त रूप से 'एडैप्टिव इम्यून रिस्पॉन्स' विकसित हो पाएगा या नहीं, इस बारे में फ़िलहाल ज़्यादा जानकारी नहीं उपलब्ध नहीं है.
इम्यूनिटी कब तक बनी रहेगी?
इम्यून सिस्टम की भी एक यादाश्त होती है, बिलकुल हमारी तरह ही. उसे कुछ संक्रमण अच्छे से याद रहते हैं लेकिन कुछ संक्रमण कों वो आदतन भुला भी देती है.
मीज़ल्स या खसरा ऐसी बीमारी है जो लंबे समय तक याद रहती है. एक बार हो जाती है तो उम्र भर के लिए इम्यूनिटी दे जाती है.
एमएमआर वैक्सीन में भी खसरे के कमज़ोर वर्ज़न की खुराक दी जाती है.
हालांकि दूसरी कई ऐसी बीमारियां हैं जिन्हें हमारा इम्यून सिस्टम अक्सरहां भुला देता है.
आपने देखा होगा कि एक सर्दी के मौसम में बच्चों को कई बार रेस्पिरेटरी सिंसिटिकल वायरस का संक्रमण (निमोनिया या फेफड़े में संक्रमण) कई बार हो जाता है.
Sars-CoV-2 नाम का ये कोरोना वायरस इतना पुराना भी नहीं है कि ये बताया जा सके कि इसके ख़िलाफ़ इम्युनिटी कब तक बनी रहेगी?
लेकिन इंसानों को संक्रमित करने वाले कोरोना परिवार के छह विषाणु इस बारे में कुछ सुराग दे सकते हैं.
कोरोना परिवार के चार विषाणुओं में सामान्य किस्म की सर्दी के लक्षण दिखाई देते हैं और इसकी इम्यूनिटी ज़्यादा दिनों तक नहीं रहती.
रिसर्च में ये बात सामने आई है कि कुछ मरीज़ों को तो साल भर के भीतर ही दोबारा से इसका संक्रमण हो गया था.
लेकिन सामान्य सर्दी अमूमन बहुत हल्के लक्षणों वाली होती है. लेकिन कोरोना परिवार के दूसरे दो वायरस ज़्यादा परेशानी पैदा करने वाले हैं.
सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (सार्स) और मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (मर्स) से संक्रमण के मामले में ये देखा गया कि कुछ सालों बाद इसकी एंटीबॉडीज़ डेवलप हुईं.
यूनिवर्सिटी ऑफ़ ईस्ट अंगालिया में मेडिसिन के प्रोफ़ेसर पॉल हंटर कहते हैं, "सवाल ये नहीं है कि आप इम्यून हो पाएंगे या नहीं बल्कि ये है कि कब तक इम्यून रह पाएंगे. ये तय है कि इम्यूनिटी जीवन भर बरकरार रहने वाली चीज़ नहीं है. सार्स के मामले में एंटीबॉडी पर जो रिसर्च हुआ था, उससे ये पता चला कि इम्यूनिटी केवल एक या दो साल तक बनी रहेगी."
भले ही आप किसी बीमारी से पूरी तरह से इम्यून न हों लेकिन ये मुमकिन है कि दूसरी बार संक्रमण पहले की तरह गंभीर न हो.
क्या किसी को दोबारा संक्रमण भी हो सकता है?
ऐसी ख़बरें सामने आई हैं कि कोविड-19 से ठीक होने के बाद कुछ लोग थोड़े समय के भीतर ही कोरोना वायरस से दोबारा संक्रमित हो गए.
इस पर वैज्ञानिकों के एक तबके का कहना है कि दोबारा संक्रमित होना कोई अचरज भरी बात नहीं है, ये एक सामान्य प्राकृतिक घटना है.
लेकिन एक दूसरे वर्ग की राय है कि कोरोना वायरस शरीर में दोबारा सक्रिय होने से पहले कहीं दुबककर छुप जाता है.
हालांकि वैज्ञानिकों में इस बात को लेकर सहमति है कि टेस्टिंग की समस्या के कारण ऐसा हो सकता है.
अगर मरीज़ को ग़लत टेस्टिंग की बुनियाद पर ये कह दिया जाए कि आप ठीक हो गए हैं, तो ऐसा हो सकता है.
अभी तक किसी इंसान की इम्यूनिटी का पता लगाने के लिए जानबूझकर उसे कोरोना वायरस से दोबारा संक्रमित नहीं किया गया है लेकिन बंदरों के एक जोड़े के साथ ऐसा किया गया है. इन बंदरों को दो बार संक्रमित किया गया. पहली बार उनकी प्रतिरोधक क्षमता बनाने के लिए और दूसरी बार तीन हफ़्ते बाद.
सीमित स्तर पर हो रहे इन प्रयोगों से पता चला है कि इतनी जल्दी दोबारा संक्रमित किए जाने पर उनमें रोग का कोई लक्षण नहीं दिखाई दिया.
अगर मुझमें एंटीबॉडीज़ हैं तो क्या मैं इम्यून हूं?
इसकी कोई गारंटी नहीं है.
यही वजह है कि लॉकडाउन में बाहर निकलने के लिए कुछ देशों में इम्यूनिटी पासपोर्ट (या सर्टिफिकेट) जारी करने पर विश्व स्वास्थ्य संगठन परेशान है.
इम्यूनिटी पासपोर्ट के पीछे ये दलील दी जा रही है कि अगर कोई एंटीबॉडीज़ का टेस्ट पास कर लें तो वो काम पर जाने के लिए सुरक्षित है.
बेहद जोखिम की स्थिति में काम कर रहे स्वास्थ्य कर्मियों के लिए इम्यूनिटी पासपोर्ट का विचार ख़ास तौर पर महत्वपूर्ण है.
लेकिन आप पाएंगे कि सभी मरीज़ों में एंटीबॉडीज़ की कुछ न कुछ मात्रा रहती ही है, हां, सब में ये बराबर नहीं होती है.
कोशिकाओं को रोगाणुओं या संक्रमण से बचाने वाले एंटीबॉडीज़ कोरोना वायरस को रोकने में कारगर हो सकते हैं.
चीन में कोविड-19 से ठीक होने वाले 175 मरीज़ों की जांच में ये पाया गया कि उनमें 30 फीसदी लोगों में ऐसे एंटीबॉडीज़ बेहद कम थे.
शायद इसीलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि 'सेल्युलर इम्यूनिटी' (एडैप्टिव इम्यून रिस्पॉन्स सिस्टम का दूसरा हिस्सा) भी ठीक होने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.
एक और वजह ये भी है कि कोरोना वायरस आपकी एंटीबॉडीज़ की वजह से आपका कुछ नहीं बिगाड़ सके लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं है कि आप वायरस का कैरियर नहीं बन सकते और दूसरे लोगों को संक्रमित नहीं कर सकते.
इम्यूनिटी इतनी मायने क्यों रखती है?
इसमें कोई शक नहीं कि निज़ी स्वास्थ्य कारणों से ये हमेशा मायने रखता है.
आप कोरोना वायरस से संक्रमित होंगे या नहीं, और होंगे तो कितनी बार होंगे, ये वो सवाल हैं जो कई लोगों को परेशान करते हैं.
आपकी इम्यूनिटी ये तय करती है कि ये वायरस आपके लिए किस हद तक ख़तरनाक़ है.
अगर लोगों के पास इम्यूनिटी हो, भले ही उसमें कमियां हों, लेकिन ये आपके लिए किसी बीमारी को कम ख़तरनाक़ बना देता है.
अगर ये साफ़ हो कि कौन संक्रमित हो सकता है, और कौन संक्रमित कर सकता है तो लॉकडाउन में छूट देने में मदद मिलेगी. इसके लिए इम्यूनिटी को समझना पड़ेगा.
अगर लंबे समय के लिए इम्यूनिटी डेवलप करना बहुत मुश्किल है तो यकीन मानिए इसके लिए वैक्सीन तैयार करना भी उतना ही चुनौतीपूर्ण हो जाएगा.
हो सकता है कि वैक्सीन इस्तेमाल करने का तरीका ही बदलना पड़े. ये उम्र भर के लिए हो सकता है या फिर फ़्लू शॉट की तरह साल भर के लिए.
इम्यूनिटी चाहे वैक्सीन से मिले या फिर किसी और तरीके से, लेकिन इसी से पता चलेगा कि हम कोरोना वायरस को फैलने से रोकने में किस हद तक कामयाब हो पाएंगे.
ऐसे और भी कई बड़े सवाल हैं जिनके जवाब नहीं हैं.
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