कोरोना वायरस के संक्रमण से जुड़े ये पाँच झूठ जानना बहुत ज़रूरी

कोरोना वायरस
    • Author, जैक गुडमैन
    • पदनाम, बीबीसी रियलिटी चेक

सोशल मीडिया पर कोरोना वायरस को लेकर झूठी और भ्रामक बातें जंगल की आग की तरह फैलती हैं और बीबीसी की टीमें इन फ़र्जी ख़बरों के फ़ैक्ट चेक के बाद वास्तविक तस्वीर अपने पाठकों के सामने रखने की कोशिश करती है.

बीबीसी मॉनिटरिंग, ट्रेंडिंग और रियलिटी चेक की टीमों ने बीते हफ़्ते जिन ख़बरों की जांच-परख की, आइए डालते हैं, उन पर एक नज़र.

बीसीजी वैक्सीन के बारे में फ़र्ज़ी दावा

व्हॉट्सऐप पर ऐसे मैसेज फ़ॉरवर्ड किए जा रहे थे जिनमें ये दावा किया गया था कि बीसीजी वैक्सीन कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकता है. ये दावा बेबुनियाद और ग़लत था.

बीसीजी यानी बैसिलस कैलमेट गुएरिन का टीका बच्चों को तपेदिक की बीमारी से बचाव के लिए दिया जाता है.

साल 2005 तक ब्रिटेन के स्कूली बच्चों के बीच ये एक आम बीमारी हुआ करती थी.

ब्रिटेन में बीसीजी का टीका आज भी दिया जाता है. तपेदिक दुनिया के कई देशों में एक आम बीमारी है जैसे कि सीरिया.

इन देशों में ये अफ़वाह फैली है कि अगर किसी व्यक्ति ने तपेदिक यानी टीबी का टीका लिया है तो उसे कोरोना वायरस से संक्रमण की चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि बीसीजी की वजह से उसमें कोविड-19 से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई है.

बीसीजी के टीके

अरबी भाषा में व्हॉट्सऐप मैसेज

व्हॉट्सऐप पर अरबी भाषा में एक मैसेज चल रहा है कि अगर आपकी बांह पर इंजेक्शन के गोल निशान हैं तो आप कोविड-19 से 75 फ़ीसदी सुरक्षित हैं.

हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है, "इस बात के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं कि बीसीजी का टीका कोविड-19 के संक्रमण से बचाव करता है."

डब्लूएचओ ने ये भी बताया है कि कोविड-19 के इलाज की खोज की दिशा में बीसीजी के टीके को लेकर दो क्लिनिकल ट्रायल्स चल रहे हैं और जब से ये पूरे हो जाएंगे तो विश्व स्वास्थ्य संगठन इसके निष्कर्ष की जांच करेगा.

गूगल ने भी बताया है कि मेडिकल साक्ष्यों की ग़ैरमौजूदगी के बावजूद उसके सर्च इंजन पर 'बीसीजी' के बारे में जानकारी खोजने वालों की संख्या दुनिया भर में अचानक बढ़ गईं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की चिंता ये भी है कि जिस तरह से बीसीजी के टीके की मांग बढ़ी है, उससे ज़रूरतमंद बच्चों के तपेदिक से बचाव में समस्या आ सकती है.

जापान ने भी ऐसी ही चिंता ज़ाहिर की है. जापान बीसीजी के टीके का बड़ा सप्लायर है और उसने कहा है कि इसकी मांग अचानक बढ़ गई है.

भारत में कोरोनावायरस के मामले

यह जानकारी नियमित रूप से अपडेट की जाती है, हालांकि मुमकिन है इनमें किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के नवीनतम आंकड़े तुरंत न दिखें.

राज्य या केंद्र शासित प्रदेश कुल मामले जो स्वस्थ हुए मौतें
महाराष्ट्र 1351153 1049947 35751
आंध्र प्रदेश 681161 612300 5745
तमिलनाडु 586397 530708 9383
कर्नाटक 582458 469750 8641
उत्तराखंड 390875 331270 5652
गोवा 273098 240703 5272
पश्चिम बंगाल 250580 219844 4837
ओडिशा 212609 177585 866
तेलंगाना 189283 158690 1116
बिहार 180032 166188 892
केरल 179923 121264 698
असम 173629 142297 667
हरियाणा 134623 114576 3431
राजस्थान 130971 109472 1456
हिमाचल प्रदेश 125412 108411 1331
मध्य प्रदेश 124166 100012 2242
पंजाब 111375 90345 3284
छत्तीसगढ़ 108458 74537 877
झारखंड 81417 68603 688
उत्तर प्रदेश 47502 36646 580
गुजरात 32396 27072 407
पुडुचेरी 26685 21156 515
जम्मू और कश्मीर 14457 10607 175
चंडीगढ़ 11678 9325 153
मणिपुर 10477 7982 64
लद्दाख 4152 3064 58
अंडमान निकोबार द्वीप समूह 3803 3582 53
दिल्ली 3015 2836 2
मिज़ोरम 1958 1459 0

स्रोतः स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय

11: 30 IST को अपडेट किया गया

ईरान में आईआरजीसी के प्रमुख का ग़लत दावा

ईरान के रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (आईआरजीसी) के प्रमुख ने बीते हफ़्ते एक ऐसा डिवाइस दिखाया जिसके बारे में उन्होंने दावा किया कि ये कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की पहचान कर सकता है.

उन्होंने ये भी दावा किया कि ये डिवाइस महज पांच सेकेंड में सौ मीटर की दूरी से संक्रमित सतह की भी पहचान कर सकता है.

ईरान की फिजिक्स सोसयटी ने इस घोषणा को 'छद्मविज्ञान', 'अविश्वसनीय' और 'साइंस फ़िक्शन की कहानी' करार दिया है.

ये डिवाइस दिखने में उस फर्जी 'बॉम्ब डिटेक्टर' की तरह लगता है जिसे दशक भर पहले कुछ ब्रितानी जालसाज़ों ने बेचा था.

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ये फर्जी 'बॉम्ब डिटेक्टर' दरअसल, खाली डिब्बे थे और उनमें एक एरियल लगा हुआ था. इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति के हाथ की दिशा के हिसाब से इसका एरियल भी हरकत करता है.

दुनिया में गृह युद्ध से जूझ रहे इलाकों में ये फ़र्ज़ी 'बॉम्ब डिटेक्टर' पहुंच गए और आज भी कुछ देशों की सरकार इनका इस्तेमाल करती है.

ईरान के सरकारी टेलीविज़न चैनल पर इसका डेमो दिखाया गया. आईआरजीसी के चीफ़ ने जो डिवाइस पेश किया, वो काफी हद तक इससे मिलता-जुलता था.

लैब में नहीं बना है कोरोना वायरस

'इपॉक टाइम्स' ने एक वीडिया पब्लिश किया जिसमें ये दावा किया गया था कि कोरोना वायरस एक लैब में तैयार किया गया विषाणु है. फ़ेसबुक ने इस वीडियो को फर्जी करार दिया है.

दिलचस्प बात ये थी कि फ़ेसबुक पर ही तकरीबन सात करोड़ लोगों ने ये वीडियो देखा.

इस वीडियो की शुरुआत कुछ इतने नाटकीय तरह से होती है जैसे ये कोई नेटफ़्लिक्स की डॉक्युमेंट्री हो. एक घंटे के इस वीडियो में ये जतलाने की कोशिश की गई कि वुहान की एक प्रयोगशाला में कोरोना वायरस तैयार किया गया और वहीं से ख़राब सुरक्षा इंतज़ाम के कारण ये लीक हो गया.

बीबीसी के विज्ञान संपादक पॉल रिंकन का कहना है, "इस बात के अभी तक कोई सबूत नहीं मिले हैं कि वुहान के किसी रिसर्च इंस्टिट्यूट में कोरोना वायरस तैयार किया गया था."

वैज्ञानिक विश्लेषण से ये बात पता चली है कि कोरोना वायरस जानवरों से अस्तित्व में आया और इसका निर्माण इंसान ने नहीं किया है.

मार्च में जारी की गई एक स्टडी रिपोर्ट में भी ये बात दोहराई गई थी कि इस बात के कोई सबूत नहीं मिले हैं कि कोरोना वायरस किसी इंजीनियरिंग का नतीजा है.

रिपोर्ट में कहा गया था, "ये असंभव है कि SARS-CoV-2 यानी कोरोना वायरस लैब में किसी प्रयोग के ज़रिये तैयार किया गया है."

भारतीय शोधकर्ताओं के हवाले से...

वायरल हुए उस वीडियो में कुछ भारतीय शोधकर्ताओं के हवाले से ये दावा किया गया कि कोरोना वायरस में जेनेटिक इंजीनियरिंग के जरिए चार नए सिक्वेंस जोड़े गए जो पहले से एचआईवी में मौजूद थे. वीडियो में ये संकेत देने की कोशिश की गई कि कोरोना वायरस मानव निर्मित है.

लेकिन शोधकर्ताओं ने वो रिसर्च पेपर बिना किसी समीक्षा के वापस ले लिया. कोरोना वायरस की अनुवांशिकी के बारे में जो सूचनाएं दी गई थीं, वो अन्य जीवित चीज़ों में भी सामान्य तौर पर होता है.

यूनिवर्सिटी ऑफ़ केंट के वीरोलॉजिस्ट (विषाणु वैज्ञानिक) डॉक्टर जेरेमी रॉज़मैन बताते हैं, "वे सिक्वेंस इतने छोटे हैं कि न केवल एचआईवी बल्कि अन्य जीवित चीज़ों से भी ये मेल खा जाएं. इसका मतलब ये नहीं है कि ये एक दूसरे से जुड़े हुए हैं."

'इपॉक टाइम्स' एक अमरीकी न्यूज़ वेबसाइट है. इसे कुछ चीनी मूल के अमरीकी निकालते हैं. ये लोग चीन से जुड़े धार्मिक मत फालुन गोंग को मानने वाले हैं.

एनबीसी न्यूज़ की रिपोर्ट के मुताबिक़ इस वेबसाइट ने पिछले साल डोनल्ड ट्रंप के पक्ष में फ़ेसबुक पर जमकर विज्ञापन दिए थे.

लेकिन अगस्त में फ़ेसबुक ने इसके और विज्ञापन देने पर रोक लगा दी थी. 'इपॉक टाइम्स' पर फ़ेसबुक की विज्ञापन नीति के उल्लंघन का आरोप लगा था.

बिल गेट्स के बारे में अफ़वाह

विश्व स्वास्थ्य संगठन को अमरीकी फंडिंग रोकने के राष्ट्रपति ट्रंप के फ़ैसले पर बिल गेट्स की आलोचना ने इस हफ़्ते उनके बारे में ग़लत और भ्रामक बातों को एक बार फिर से हवा दे दी.

ऐसी अफवाहों का सुर चिरपरिचित ही था जैसे कि वैक्सीन के लिए बिल गेट्स के समर्थन की आलोचना.

फेसबुक पर ऐसे कई पोस्ट देखे गए जिनमें ये दावा किया गया कि बिल गेट्स के पैसे पर चल रहे रिसर्च इंस्टीट्यूट के पास कोरोना वायरस का पेटेंट है.

ये दावे पूरी तरह से निराधार हैं. ऐसे संकेत कि कोरोना वायरस एक मानव निर्मित विषाणु है और इसके पीछे बिल गेट्स का हाथ है, पूरी तरह से झूठ है.

कोराना वायरस की महामारी झूठी नहीं है

कोलंबियाई न्यूज़ चैनल 'कनाल मोंटेरिया' ने एक डॉक्टर का इंटरव्यू प्रसारित किया. इंटरव्यू में उस डॉक्टर ने ये दावा किया कि कोरोना वायरस की महामारी पूरी तरह से फर्जी और हकीकत में एक तमाशा है. हालांकि ये वीडियो पिछले महीने जारी किया गया था पर उसे अब तक एक करोड़ 80 लाख लोग देख चुके हैं. फ़ेसबुक पर अभी भी लोग इसे शेयर कर रहे हैं.

ये दावा पूरी तरह से ग़लत है कि कोरोना वायरस का अस्तित्व ही नहीं है.

वीडियो में खुद को डॉक्टर बताने वाला शख़्स ये दावा करता है कि विषाणुओं को लेकर जितनी थिअरी दी जा रही है, वो सभी ग़लत है. इंटरव्यू लेने वाला उस शख़्स को एक बार भी चुनौती नहीं देता है. ये शख़्स अपनी बात को सही साबित करने के लिए यूट्यूब पर एक वीडियो देखने की सिफारिश करता है जिसमें एचआईवी के अस्तित्व को नकारा गया है.

लेकिन वो शख़्स एक बार भी ये नहीं कहता कि इतनी बड़ी संख्या में लोग बीमार क्यों पड़ रहे हैं.

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कोरोना वायरस हेल्पलाइन

इमेज स्रोत, MohFW, GoI

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