You’re viewing a text-only version of this website that uses less data. View the main version of the website including all images and videos.
पुतिन ने मध्य-पूर्व में अमरीका को कैसे पीछे धकेला
- Author, स्टीव रोज़ेनबर्ग
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, मॉस्को
आपको वो पंचवर्षीय योजनाएं याद हैं, जो एक समय काफ़ी लोकप्रिय हुआ करती थीं.
कम्युनिस्ट रूस मानता है कि पाँच साल में आप किसी अर्थव्यवस्था को सुधार सकते हैं.
लेकिन रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस विचार को आगे ले गए. बीते पाँच साल में रूस अर्थव्यवस्था को विस्तार नहीं दे रहा बल्कि अपना भू-राजनीतिक प्रभुत्व बढ़ा रहा है.
2014 में लौटिए.
क्रीमिया को नियंत्रण में लेने और पूर्वी यूरोप में अपना सैन्य दख़ल शुरू करने के बाद रूस पश्चिमी देशों की पाबंदियां झेल रहा था. वह अकेला और अछूत देश मालूम होता था.
पश्चिमी देश एक सुर में राष्ट्रपति पुतिन की निंदा कर रहे थे. उन्हें यक़ीन था कि दबाव की रणनीति से रूस का बर्ताव बदल जाएगा. अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने रूस को 'क्षेत्रीय शक्ति' कहकर ख़ारिज़ कर दिया था. कभी विश्व महाशक्ति रहे रूस के लिए ये ठेस पहुंचाने वाली बात थी.
और अब 2019 में वापस आइए.
आज रूस वैश्विक प्रभुत्व बढ़ाने पर काम कर रहा है. अमरीकी ख़ुफ़िया विभाग के मुताबिक़ रूस ने डोनल्ड ट्रंप के ज़रिये अमरीकी चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश की. वो अफ़्रीका और दक्षिण अमरीका में अपनी भूमिका में इज़ाफ़ा कर रहा है और यूरोपीय देशों के मतभेदों का भी फ़ायदा उठा रहा है.
मध्य पूर्व में मध्यस्थता
मध्य पूर्व में ये बदलाव काफ़ी स्पष्ट दिखता है. सीरिया में अपना सैन्य अभियान शुरू करने के चार साल बाद रूस उस क्षेत्र के मुख्य खिलाड़ी के तौर पर अमरीका की जगह ले रहा है.
चंद दिनों के अंतराल पर व्लादिमीर पुतिन ने तुर्की के राष्ट्रपति से फ़ोन पर बात की और उन्हें मॉस्को आने का न्योता दिया. उन्होंने इसराइली प्रधानमंत्री से 'सुरक्षा विषयों' पर बात की और वे सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) का दौरा कर आए.
ये मध्य पूर्व में रूस की बढ़ती सक्रिय भूमिका का संकेत है.
मशहूर रूसी अख़बार मोस्कोव्सकी कोम्सोमोलेट्स इस बदलाव पर लिखता है:
"मध्य-पूर्व के मौजूदा हालात हेनरी किसिंगर (पूर्व अमरीकी विदेश मंत्री) और उनके 'वैश्विक भू-राजनीतिक शतरंज' के दौर में नाक़ाबिल-ए-यक़ीन थे. अमरीका नाम का विशालकाय दानव दिन के उजाले में ही राह भटक गया है जबकि रूसी कूटनीति बहुत आगे निकल गई है."
"रूस पूरी दनिया में मध्यस्थ और राजनीतिक बिचौलिये की भूमिका निभा रहा है और कोई क्षेत्रीय शक्ति उसकी अनदेखी नहीं कर सकती."
सीरिया-तुर्की सीमा से अमरीकी सैनिकों को वापस लेने के ट्रंप सरकार के फ़ैसले पर रूस में बैठे विशेषज्ञ हैरान हैं.
रूसी सरकार के क़रीबी विदेश नीति के विश्लेषक फ्योदोर लुक्यानोव कहते हैं, "यहाँ माना जाता है कि अमरीकी चतुर होते हैं. जब वो कुछ मूर्खतापूर्ण करते हैं तो इसलिए नहीं कि वो मूर्ख हैं बल्कि इसलिए कि हम उनका मक़सद पूरी तरह नहीं समझ पाते. यहां कई लोगों के लिए ये मानना मुश्किल है कि अमरीका भी अजीब फ़ैसले ले सकता है. लेकिन लग रहा है कि वो ऐसा कर सकते हैं."
सीरिया में कैसे हुई रूस की जीत
उत्तर-पूर्वी सीरिया के मौजूदा हालात से रूस को कई तरह से फ़ायदा हो सकता है:
- रूस सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद का मुख्य राजनीतिक और सैन्य सहयोगी है. सीरिया का नियंत्रण जितनी ज़्यादा ज़मीन पर होगा, रूस के लिए उतना अच्छा है.
- कुर्दों का साथ छोड़ने से क्षेत्र में अमरीका की विश्वसनीयता गिर गई है. इससे रूस को अवसर मिला है कि वो मध्य-पूर्व में सभी पक्षों के सामने ख़ुद को एकमात्र सत्ता-मध्यस्थ और शांति स्थापित करने वाले देश के तौर पर पेश कर सके. रूसी सुरक्षा बल पहले से वहां गश्त लगा रहे हैं. संदेश साफ़ है, क्षेत्र में शांति चाहिए तो रूस की शरण में आओ.
- हाल के वर्षों में रूस पश्चिमी देशों के गठबंधनों, ख़ास तौर से यूरोपीय संघ और नेटो को उनके अंदरूनी मतभेदों का फ़ायदा उठाकर कमज़ोर करने की कोशिश में लगा है. नेटो के सदस्य देश तुर्की के दूसरे नेटो देशों से मतभेद रूस के लिए फ़ायदेमंद हैं. अमरीका तो पहले से ही तुर्की से नाराज़ है क्योंकि उसने रूस से एस-400 एयर डिफ़ेंस सिस्टम का समझौता किया है.
2015 में रूस ने सीरिया में अपना सैन्य अभियान इस दावे के साथ शुरू किया था कि उसकी प्राथमिकता अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद को पछाड़ना है. लेकिन यह मध्य-पूर्व में अपना प्रभाव बढ़ाने पर आ गया है.
सीरिया के पश्चिमी समुद्री तट तारतुस में रूसी नौसेना का अड्डा है जिसके ज़रिये वो पूरे महासागर में अपनी ताक़त की दावेदारी कर सकता है.
सत्ता परिवर्तन का संतुलन?
संयोग है कि विश्व पटल पर रूस की सक्रियता ऐसे समय में बढ़ रही है जब पश्चिम में राजनीतिक आत्मनिरीक्षण का दौर चल रहा है.
फ्योदोर लुक्यानोव मानते हैं, "अमरीका और यूरोपीय शक्तियां दो साल पहले के मुक़ाबले अब ज़्यादा भीतर देख रही हैं. हम इसे इस तरह देखते हैं कि रूस के प्रतिद्वंद्वियों ने रूस को अकेलेपन में धकेलना चाहा जबकि रूस ने मध्य पूर्व में बाहरी दबाव के माहौल में शानदार लचीलापन और अपने कौशल का परिचय दिया."
लचीलापन और कौशल- निश्चित तौर पर और प्रभाव में इज़ाफ़ा. लेकिन तेज़ी से मज़बूत होते रूस के सामने कुछ कठिनाइयां भी हैं.
रूस कोई आर्थिक महाशक्ति नहीं है. रूस की अर्थव्यवस्था कमज़ोर है और वो इसी तरह बनी रहीं तो मॉस्को की वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को झटका लग सकता है.
और जहां तक मध्य-पूर्व की बात है, वह एक जटिल क्षेत्र है. वहां विभाजन है, अविश्वास है और नफ़रत है. रूस शायद वहां सत्ता के मध्यस्थ के तौर पर उभरा है लेकिन अगर उसे अपने प्रभाव के इस्तेमाल से शांति बहाल करनी है तो एक कठिन कूटनीतिक संतुलन का सामना करना होगा.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)