नूर वलीः वो चरमपंथी जिसने बेनज़ीर और मलाला पर हमले को दिया था अंजाम

अमरीका ने चरमपंथी नूर वली पर 50 लाख डॉलर के ईनाम की घोषणा करते हुए उन्हें अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित किया है.

2007 में अपने गठन के बाद से तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) पाकिस्तान का सबसे ख़तरनाक चरमपंथी समूह बन गया है. इसने बीते 12 सालों में इस संगठन ने सैकड़ों चरमपंथी हमले किए हैं.

नूर अली इसी चरमपंथी संगठन के प्रमुख हैं और उनका पूरा नाम मुफ़्ती नूर वली मेहमूद है. जून 2018 में मुल्ला फ़ज़लुल्लाह की मौत के बाद तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने मुफ़्ती नूर वली मेहसूद को अपना नया प्रमुख बनाया था.

बेल्जियम की राजधानी में स्थित ब्रुसेल्स यूनिवर्सिटी से टेररिज़्म स्टडीज़ में पीएचडी डॉक्टर फ़रहान ज़ाहिद ने अपने एक रिसर्च पेपर में नूर वली के बारे में बताया कि 40 वर्षीय मेहसूद वो ही शख्स हैं जिन्होंने नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफ़जाई की हत्या का आदेश दिया था.

नूर वली को प्रमुख बनाए जाने के साथ ही टीटीपी का नेतृत्व एक बार फिर मेहसूद जनजाति के पास चली गई है.

टीटीपी के पहले दो प्रमुख बैतुल्लाह मेहसूद (2007-09) और हकीमुल्लाह मेहसूद (2009-13) भी इसी जनजाति के थे.

दक्षिण वज़ीरिस्तान के तियारज़ा में जन्मे मुफ़्ती नूर वली मेहसूद की शिक्षा पाकिस्तान के विभिन्न धार्मिक मदरसों में हुई है.

वली की शिक्षा फ़ैसलाबाद (जामिया इमदादिया, जामिया हलिमिया और जामिया फारूक़-ए-आज़म) गुजरांवाला (जामिया नूसरतूल उलूम) और कराची (जामिया अहसान-उल-उलूम और जामिया यासीनुल क़ुरान) के मदरसों में हुई है. 1999 में पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने दक्षिण वज़ीरिस्तान के मदरसा इमाद-उल-उलूम में पढ़ाया भी है.

किताब में खोले राज़

कई जिहादी कार्रवाइयों को अंजाम देने वाले मेहसूद ने इसी दौरान कई लेख और एक किताब भी लिखी है.

2017 में लिखी गई 'इंकलाब-ए-मेहसूद-साउथ वज़ीरिस्तानः फरंगी राज से अमरीकी समराज तक' किताब में ही मेहसूद ने पहली बार स्वीकार किया कि पाकिस्तान की 2007 में पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो की रावलपिंडी की हत्या में तालिबान शामिल था.

अपनी किताब में नूर वली ने न केवल बेनज़ीर की हत्या की बात स्वीकार की है बल्कि उस हत्या के मास्टरमाइंड मौलवी इमरान, अहमस उर्फ़ नसरूल्लाह, क़ारी इस्माइल और मुल्लाह इहसान और आत्मघाती हमलावर बिलाल उर्फ़ सईद और इकारमुल्लाह के बारे में विस्तार से बताया भी है.

उर्दू में लिखी इस किताब में टीटीपी के गठन और दक्षिण वज़ीरिस्तान से जुड़े इसके इतिहास के बारे में भी लिखा गया है.

690 पन्ने की इस किताब में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के ख़िलाफ़ पूरे देश में पाकिस्तानी सेना की कई गई कार्रवाइयों के बारे में लिखा गया है. इसमें यह लिखा गया है कि सेना के इन ऑपरेशन की वजह से ही टीटीपी को अफ़ग़ानिस्तान के सीमावर्ती इलाक़ों में जाना पड़ गया.

मलाला पर हमले के मास्टरमाइंड

मेहसूद ने यह भी स्वीकार किया कि टीटीपी का इस्तेमाल फिरौती, अपहरण और हत्याओं के लिए किया गया और इससे इसकी बदौलत समूह की गतिविधियों के लिए फंड जुटाया गया.

दक्षिण वज़ीरिस्तान पर 2014 में हुए एक ड्रोन हमले में नूर वली बाल बाल बच गए थे. उस हमले में उनके आठ साथी मारे गए थे.

2013 में नूर वली संगठन के आमिर बने. हालांकि टीटीपी में नूर वली इसके पहले से ही एक ख़ास नाम था. निजी रेडियो चैनल पर उनके बड़े बड़े धर्मोपदेश की वजह से लोग उन्हें मौलाना रेडियो बुलाया करते थे.

इसके अलावा स्वात घाटी में साल 2012 में मलाला यूसुफ़ज़ई पर जब टीटीपी ने हमला किया तो उस ऑपरेशन के प्रमुख नूर वली ही थे.

धार्मिक और जिहादी कारनामों की वजह से अफ़-पाक के जिहादी समूहों में नूर वली एक सम्मानित चरमपंथी कमांडर हैं.

वली टीटीपी के पहले प्रमुख बैतुल्लाह मेहसूद के डिप्टी और टीटीपी कोर्ट के क़ाज़ी (जज) रहे. कुछ समय के लिए वे मीडिया ऑपरेशन के प्रमुख भी रहे.

जुलाई 2013 से 2015 के बीच वली टीटीपी कराची के प्रमुख भी रहे. बाद में वे खालिद मेहसूद के डिप्टी भी रहे.

वली का मानना है कि जिहादी ताक़तों की नाकामी का कारण उनका अलग अलग गुटों में बंटा हुआ होना है. अल-क़ायदा, इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ उज़बेकिस्तान (आईएमयू), चेचेन इस्लामिस्ट मिलिटेंट्स और पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक आंदोलन के तहत आने वाले चीनी चरमपंथियों के साथ उनके नजदीकी संबंध हैं.

उन्होंने इसके लिए पूरी कोशिश भी की लेकिन इसमें वे सफल नहीं हो सके.

मेहसूद के बाद टीटीपी में दूसरा सबसे बड़ा नाम मुफ़्ती हज़रतुल्लाह का है. फ़िलहाल मुफ़्ती नूर वली मेहमूद कहां हैं इसके बारे में यह कहा जाता है कि वे अफ़ग़ानिस्तान में कहीं छुपे हैं.

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