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क्या तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन मुस्लिम देशों का नेता बनने के लिए ऐसा कर रहे हैं?
तुर्की के राष्ट्रपति रैचेप तैयप अर्दोआन अपनी रैलियों में लोगों का समर्थन हासिल करने के लिए न्यूज़ीलैंड हमले की हाल की घटना का वीडियो दिखा रहे हैं.
इसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफ़ी आलोचना हो रही है. कहा जा रहा है कि वो यह वीडियो दिखा कर अर्दोआन चुनाव को मुस्लिम बनाम ईसाई का रंग देना चाहते हैं.
बीते शुक्रवार को न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च इलाक़े में एक बंदूक़धारी ने दो मस्जिदों में घुस कर ताबड़तोड़ गोलियां चलाई थीं, जिसमें पचास लोगों की मौत हो गई थी.
अर्दोआन ने कहा है कि हमलाबर ब्रेन्टन टैरन्ट तुर्कियों को यूरोप से दूर रखना चाहते हैं.
न्यूज़ीलैंड के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री विंस्टन पीटर्स ने तुर्की के अधिकारियों से इस पर आपत्ति जताई है और वीडियो दिखाने को "ग़लत" बताया है. उनका कहना है कि इससे विदेशों में रह रहे उनके नागरिकों की सुरक्षा ख़तरे में पड़ सकती है.
मस्जिद में गोलीबारी की घटना के हमलावर ने सोशल मीडिया पर इसका लाइव प्रसारण किया था, जिसे बड़ी संख्या में लोगों ने शेयर और डाउनलोड किया था. सोशल मीडिया ने बाद में इस वीडियो को अपने प्लैटफॉर्म से डिलीट कर दिया था.
न्यूज़ीलैंड में इस वीडियो के प्रसारण पर रोक लगा दी गई है. इतना ही नहीं इसे रखना और दूसरे को बांटने पर सज़ा देने का ऐलान किया गया है.
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आख़िर अर्दोआन वीडियो क्यों दिखा रहे हैं
इस महीने के अंत में तुर्की में स्थानीय चुनाव होने वाले हैं. अपने समर्थन को मज़बूत करने के उद्देश्य से अर्दोआन ने रविवार की रैलियों में यह वीडियो दिखाया.
यह वीडियो दिखा कर वो रूढ़ीवादी सोच वाले लोगों को अपने साथ लाना चाहते हैं. उनका मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस्लाम के ख़िलाफ़ पनपी सोच की निंदा करना था.
इसके साथ ही उन्होंने तुर्की के विपक्षी नेताओं को भी निशाने पर लिया और उन्हें "कमज़ोर" बताया.
अर्दोआन ने अपनी घोषणा में न्यूज़ीलैंड घटना के संदिग्ध द्वारा तुर्की के विशेष उल्लेखों की ओर इशारा किया.
उन्होंने कहा कि संदिग्ध दो बार तुर्की का दौरा कर चुका था और वो चाहता था कि तुर्की के मुसलमानों को तुर्की के यूरोपीय क्षेत्र से निकाल फेंका जाए.
न्यूज़ीलैंड के हमले का वीडियो कम से कम तीन रैलियों में बड़े स्क्रीन पर दिखाया गया था. अर्दोआन ने तुर्की की विपक्षी सीएचपी पार्टी के नेता मेकल क्लिकडारोग्लू की भी आलोचना की और उनके उस वीडियो को दिखाया, जिसमें वो "इस्लामिक देशों में आतंकवाद की जड़ें" होने की बात कह रहे हैं.
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न्यूज़ीलैंड की आपत्ति
न्यूज़ीलैंड के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री विंस्टन पीटर्स ने तुर्की के उन अधिकारियों को अपनी आपत्ति जताई है, जो घटना के बाद तुर्की से न्यूज़ीलैंड दौरे पर आए थे.
इनमें तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत कावासोगलू भी शामिल थे.
विंस्टन पीटर्स ने कहा, "जो भी इस देश को ग़लत तरीक़े से प्रस्तुत करता है और देश के नागरिकों की सुरक्षा के लिए ख़तरा है, वो न्यूज़ीलैंड का नहीं हो सकता है."
"हमने इस मामले में तुर्की और अन्य देशों से लंबी बातचीत की है ताकि न्यूज़ीलैंड को ग़लत तरीक़ो से प्रस्तुत नहीं किया जा सके."
अर्दोआन की मंशा क्या है
रैचेप तैयप अर्दोआन तुर्की के अब तक के दूसरे सबसे ताक़तवर नेता माने जाते हैं. उनसे पहले सिर्फ़ तुर्की के संस्थापक मुस्तफ़ा कमाल अतातुर्क या मुस्तफ़ा कमाल पाशा का नाम आता है.
वो मुसलमान और मुस्लिम राष्ट्रों के हितैशी बनना चाहते हैं और इस दिशा में वो देश से आगे अंतरराष्ट्रीय स्तर की घटनाओं पर भी अपनी दख़ल रखते हैं.
दुनियाभर में दो देश मुस्लिम राष्ट्रों के नेता बनना चाहते हैं- सऊदी अरब और तुर्की. जब भी सऊदी अरब किसी मसले पर अपनी प्रतिक्रिया देता है, तुर्की उसे काटने की कोशिश करता है.
सऊदी अरब को लगता है कि उसके यहां मक्का है और पैग़म्बर मुहम्मद का जन्म वहीं हुआ था, इसलिए वो दुनिया के इस्लामिक देशों का नेता है.
हालांकि तुर्की ख़ुद को सऊदी से ज़्यादा ताक़तवर मानता है और उसे लगता है कि वो मुसलमानों का सच्चा हितैशी है.
यही कारण है कि सऊदी पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या के मामले में भी तुर्की इसके ख़िलाफ़ मुखर था.
अर्दोआन से ऊपर कोई नहीं
तुर्की में अर्दोआन के ऊपर कोई नहीं है. पिछले साल चुनावों में उनकी जीत के साथ ही अर्दोआन को कई नई ताक़तें मिलीं.
इन ताक़तों की जड़ में साल 2017 में उनकी अगुआई में हुआ एक जनमत संग्रह था. इसके मुताबिक़ तुर्की के राष्ट्रपति के पास अब वो सभी शक्तियां हैं जो पहले प्रधानमंत्री के पास हुआ करती थीं.
पिछले साल उनकी जीत के साथ ही तुर्की में प्रधानमंत्री का पद ख़त्म कर दिया गया था और उसकी सभी कार्यकारी शक्तियां राष्ट्रपति को स्थानानांतरित कर दी गई थीं.
अर्दोआन अब अकेले वो शख़्स होंगे जो वरिष्ठ अधिकारियों से लेकर, मंत्रियों, जजों और उप राष्ट्रपति की नियुक्ति करते हैं.
अर्दोआन ही देश की न्यायिक व्यवस्था में दख़ल देते हैं, वो ही देश में बजट का बंटवारा करते हैं.
इतने अधिकारों के बाद कोई ऐसी संस्था या व्यक्ति नहीं है जो अर्दोआन के फ़ैसलों की समीक्षा करे.
नये संविधान के मुताबिक़, अर्दोआन न सिर्फ़ अगले कार्यकाल तक सरकार के सर्वेसर्वा बने रहेंगे बल्कि वो साल 2023 में भी चुनाव लड़ सकते हैं और जीतने पर साल 2028 तक सत्ता में बने रह सकते हैं.
प्रवासी का बेटा सबसे ताक़तवर नेता
ये अपने आप में दिलचस्प है कि जॉर्जिया के एक प्रवासी का बेटा आज तुर्की का सबसे ताक़तवर शख़्स कैसे बन गया?
यहां तक पहुंचने के लिए अर्दोआन ने लंबा सफ़र तय किया है.
उनका जन्म कासिमपासा में और पालन-पोषण काला सागर के पास हुआ. अर्दोआन को इस्लामिक आंदोलन ने तुर्की में प्रसिद्धि दिलाई.
तुर्की की सत्ता के शिखर तक पहुंचने से पहले अर्दोआन जेल भी गए, 11 साल तक प्रधानमंत्री रहे और हिंसक तख़्तापलट की कोशिशों का सामना भी किया.
पिछले 15 सालों में उन्होंने 14 चुनावों (छह विधायी, तीन जनमतसंग्रह, तीन स्थानीय और दो राष्ट्रपति) का सामना किया और सभी में जीते.
उनके समर्थकों में ज़्यादातर लोग रूढ़िवादी मुस्लिम हैं. इनका कहना है कि उनके नेता ने तुर्की में आर्थिक सुधार किए और अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश को सम्मानजक स्थान दिलाया.
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क्या कहते हैं आलोचक?
हालांकि अर्दोआन के आलोचक तुर्की के आर्थिक संकट और उनकी तानाशाही की ओर ध्यान दिलाते हैं.
महंगाई 10 फ़ीसदी से ज़्यादा हो गई और लीरा (तुर्की की मुद्रा) की गिरती क़ीमतों ने कई परिवारों का जीना मुश्किल कर रखा है.
आलोचक इस बात की ओर भी ध्यान दिलाते हैं कि आर्दोआन के सत्ता में होने पर उनके दुश्मन या तो जेल में हैं या निर्वासन की ज़िंदगी बिता रहे हैं.
2016 में तुर्की में सेना के एक धड़े ने तख़्तापलट की नाकाम कोशिश की थी.
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