‘1947 में तो हमने 10 लाख लोग तोपों के बिना ही मार दिए’: ब्लॉग

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- Author, मोहम्मद हनीफ़
- पदनाम, लाहौर से वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी पंजाबी के लिए
इमरान ख़ान जब जवान थे और क्रिकेट खेलते थे, तब उनको पूरी दुनिया में बहुत प्यार मिलता था और इंडिया में कुछ ज़्यादा ही मिलता था.
यहाँ पर यार लोग बातें किया करते थे कि अगर इमरान ख़ान भारत से चुनाव लड़ें तो वो वज़ीर-ए-आज़म बन जाएं. पर इमरान पाकिस्तानी थे और वज़ीर-ए-आज़म भी वे पाकिस्तान के ही बने.
वज़ीर-ए-आज़म बनते ही बड़ी दुविधा में फंस गए.
पहला यह कि घर में पैसे की कमी की विपदा पड़ गई और भुखमरी आ गई.
अभी इमरान ख़ान घर का ख़र्च चलाने के लिए पूरी दुनिया से पैसे इकट्ठा कर ही रहे थे कि उससे भी पुरानी मुश्किल सामने आकर खड़ी हो गई.
इंडिय़ा ने 'चढ़ाई' कर दी.

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अब कुछ लोग कहेंगे कि 'चढ़ाई' पहले इंडिया ने नहीं की, यहाँ से किसी मौलाना के लड़के गए और पहले 'चढ़ाई' उन्होंने की है.
इमरान ख़ान नया-नया आए हैं. पता नहीं उनके हाथ में कुछ और है या नहीं, लेकिन इतना कहा जा सकता है कि यह मौलाना, यह जिहादी अभी इमरान ख़ान के हाथ में कोई नहीं.
इमरान ख़ान के बस में जो था उन्होंने उतना किया.
संसद में भी गए, हालाँकि ख़ान साहब को संसद में जाना ज़्यादा पसंद नहीं है.
वहां खड़े होकर उन्होंने ऐलान किया कि हमने इंडिया का पायलट पकड़ा था, उसको रिहा कर रहे हैं.
अब अल्लाह करे कि वो सही-सलामत घर पहुंच गया हो और हमारी मीडिया और दोनों तरफ बैठे मीडिया के सूरमा ठंडे हो जाएं.
यहां मेरे पाकिस्तानी दोस्त कहेंगे, यार नहीं-नहीं, हम तो सहाफ़त (पत्रकारिता) करते हैं.
यह इंडिया वाले हैं जो मीडिया पर बैठ कर जिहाद करते हैं.

अब सूरमाओं से बहस तो नहीं हो सकती. उनकी मिन्नतें ही की जा सकती हैं. या फिर उनको थोड़ी बहुत 'तारीख़' (इतिहास) सुनाई जा सकती है.
इतना याद रखो कि साल था सैंतालीस (1947) और हमें आज़ादी मिली और साथ ही 10 लाख लोग भी मारे गए.
साथ ही यह भी याद रखो कि तब न हमारे पास एफ़-16 था और न ही भारत के पास मिराज.

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न ही इतने टैंक और तोपें. हमने कुल्हाड़ी और बरछे से 10 लाख लोग मार दिए थे.
अब तो हमारे पास वो हथियार हैं, अगर चाहें तो पूरी दुनिया को आग लगा दें.
अब एक-दूसरे से किस बात का डर? अब एक-दूसरे को धमकियां देने का क्या फ़ायदा?

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चाहिए यह कि अपने अंदर देखें. ख़ान साहब भी अपने मौलाना ढूंढे, उनको थोडा ठंडा करें.
भारत वाले भी कश्मीरियों को इंसान का बच्चा समझें और अपने भाइयों के साथ बैठकर बात करें.

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हम सब मिल कर अज़ीम शायर उस्ताद दामन को याद करें जो यह कह गए...
भले मुंह से न कहें पर अंदर से,
खोए आप भी हो, खोए हम भी हैं,
लाली आंखों की बताती है,
रोए आप भी हो, रोए हम भी हैं (पंजाबी कविता का हिंदी अनुवाद)
रब राखा!
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