अफ़ग़ानिस्तान में अरबों लगाकर भारत को मिल क्या रहा है?

मोदी और अशरफ़ ग़नी

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    • Author, मानसी दाश
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता

"आपका दुख हमारे लिए पीड़ा है, आपके सपने हमारे कर्तव्य हैं, आपकी मज़बूती ही हमारे लिए भरोसा है, आपकी हिम्मत हमारे लिए प्रेरणादायी है और आपकी दोस्ती हमारे लिए सम्मान की बात है."

ये शब्द दिसंबर 2015 में अफ़ग़ानिस्तान की संसद का उद्धाटन करते हुए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहे थे.

जिस अफ़ग़ान संसद का उद्घाटन उन्होंने किया था, वो भारतीय मदद से बना था और इस भवन के एक ब्लॉक का नाम भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर है.

अफ़ग़ानिस्तान की संसद

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2001 में जब अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की सरकार का पतन हुआ तब भारत ने अफ़ग़ानिस्तान के पुनर्निर्माण में सहयोग की नए सिरे से शुरुआत की.

क़ाबुल में मौजूद भारतीय दूतावास के अनुसार 2002 मार्च में भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में अपने दूतावास का विस्तार किया और इसके बाद मज़ार-ए-शरीफ़, हेरात, कंधार और जलालाबाद में भी वाणिज्य दूतावास खोले. साल 2006 तक तत्कालीन अफ़ग़ान राष्ट्रपति हामिद करज़ाई चार बार आधिकारिक तौर पर भारत दौरे पर आ चुके थे.

अफ़ग़ानिस्तान के नवनिर्माण में विभिन्न परियोजनाओं के ज़रिए पैसा लगाने वाली सबसे बड़ी क्षेत्रीय शक्ति के रूप में भी भारत को देखा जाता है.

भारत ने साल 2011 में भयंकर सूखे से जूझ रहे अफ़ग़ानिस्तान को ढाई लाख टन गेहूं दिया था.

अफ़ग़ानिस्तान के हेरात में सलमा बांध भारत की मदद से बना. ये बांध 30 करोड़ डॉलर (क़रीब 2040 करोड़ रुपये) की लागत से बनाया गया और इसमें दोनों देशों के क़रीब 1500 इंजीनियरों ने अपना योगदान दिया था.

इसकी क्षमता 42 मेगावाट बिजली उत्पादन की भी है. 2016 में अस्तित्व में आए इस बांध को भारत-अफ़ग़ानिस्तान मैत्री बांध का नाम दिया गया.

सलमा बांध

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इतना निवेश क्यों?

इतना ही नहीं भारत ने कंधार में अफ़ग़ान नेशनल एग्रीकल्चर साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी की स्थापना और काबुल में यातायात के सुधार के लिए 1000 बसें देने का भी वादा किया है.

लेकिन क्या इस बड़ी रकम के निवेश के बदले भारत को भी कुछ मिलता है?

क़ाबुल में मौजूद भारतीय दूतावास के अनुसार अब तक भारत अफ़ग़ानिस्तान में 2 बिलियन अमरीकी डॉलर (139 अरब रुपये) का निवेश कर चुका है और भारत इस देश में शांति, स्थिरता और तरक्की के लिए प्रतिबद्ध है.

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लेकिन इतने बड़े निवेश के बदले में भारत को अफ़ग़ानिस्तान से क्या मिल रहा है? और भारत के लिए क्यों अहम है अपना पड़ोसी अफ़ग़ानिस्तान.

दक्षिण एशिया मामलों के जानकर क़मर आग़ा कहते हैं इसमें दो चीज़ें हैं जिन्हें समझना ज़रूरी है. वो कहते हैं, "पहली बात ये कि भारत के अफ़ग़ान के साथ प्री इस्लामिक पारंपरिक संबंध हैं. ये कभी हमारा पड़ोसी मुल्क होता था. दूसरा ये कि बिगड़ते हुए हालात में अगर वहां गणतंत्र आता है तो भारत और पूरे दक्षिण एशिया के लिए और भारत के लिए ख़ास तौर पर ये अच्छी बात होगी."

वो कहते हैं कि "पाकिस्तान की हमेशा कोशिश होती है कि अफ़ग़ानिस्तान में अस्थिरता रहे क्योंकि स्थिरता होने पर वहां की सरकार अपने देश के बारे में सोचेगी जो पाकिस्तान के हित में नहीं होगा. अफ़ग़ानिस्तान में लगभग दो ट्रिलियन मूल्य की प्राकृतिक संपदा है."

अफ़ग़ान सेना के एक सैनिक

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वहीं, बीबीसी अफ़ग़ान सेवा के सहायक संपादक दाऊद आज़मी कहते हैं कि इस क्षेत्र में वक्त के साथ अफ़ग़ानिस्तान के अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों में कभी ना कभी तनाव आए हैं लेकिन भारत के साथ उसके संबंध हमेशा काफ़ी अच्छे रहे हैं.

वो कहते हैं, "इस क्षेत्र में तनाव बहुत ज़्यादा है और हर मुल्क कोशिश करता है कि वो अपने लिए दोस्त या सहयोगी पैदा करे. भारत की भी ये कोशिश है कि अफ़ग़ानिस्तान भारत का दोस्त रहे. एक बात ये भी है कि भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ताना संबंध नहीं है और तनाव हमेशा रहता है. इस कारण भी अफ़ग़ानिस्तान भारत की दोस्ती अहम है. अगर अफ़ग़ानिस्तान भारत के साथ हो तो पाकिस्तान अलग-थलग पड़ेगा और उस पर दवाब पड़ेगा."

अफ़ग़ानिस्तान

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अफ़ग़ानिस्तान में अमन भारत के हित में क्यों?

क़मर आग़ा कहते हैं कि इस मामले में अफ़ग़ानिस्तान की राजनीति और वहां पर तालिबान की संभावित भूमिका को समझना बेहद ज़रूरी है और हमें ये भी समझना होगा कि इस पूरे क्षेत्र में शांति के लिए वहां अमन भारत के राष्ट्रीय हित में है.

वो कहते हैं, "जो तालिबान हैं वो कोई एक समूह नहीं हैं. ये सब वॉरलॉर्ड (तालिबान के लड़ाके) की तरह काम करते हैं धर्म के नाम पर. ये एक बहुत बड़ा ख़तरा है. अगर वहां पर तालिबान जैसी हूकूमत आती है तो भारत के लिए एक बड़ी मुश्किल बात हो जाएगी. चरमपंथ के कारण ये पूरा क्षेत्र अस्थिर हो जाएगा. वहां पर अमन और शांति स्थापित करना हमारे लिए ज़रूरी है और इसके लिए अगर तीन-चार बिलियन डॉलर भी ख़र्च हो जाएं तो कोई बड़ा बात नहीं."

वो कहते हैं कि इस निवेश के ज़रिए वहां पर भारत ने अच्छा नाम भी कमाया है.

तालिबान नेता

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लेकिन भारत और अफ़ग़ानिस्तान की दोस्ती को लेकर चर्चा का एक मुद्दा चाबहार बंदरगाह परियोजना भी है जिसमें भारत ने काफ़ी निवेश किया है. इसे लेकर भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने चिंता भी जताई थी.

पाकिस्तान ग्वादर बंदरगाह तक सड़क बनाने के चीन के महत्वाकांक्षी वन बेल्ट वन रोड परियोजना का हिस्सा है. भारत और चीन दोनों के लिए ये अलग-अलग परियोजनाएं मध्य एशिया, रूस और यूरोप तक पहुंचने की कोशिश है.

भारत, अफ़ग़ानिस्तान, चीन और अमरीका

सलमा बांध के उद्घाटन के वक्त पीएम मोदी ने कहा था, "हमने ज़रांज से देलारम तक सड़क बनाने और देश के भीतर बिजली की आपूर्ति के लिए हाथ मिलाया है. अब भारत ने ईरान के चाबहार में भी निवेश कर रहा है जो दोनों देशों की तरक्की का रास्ता खोलेगी."

क़मर आग़ा कहते हैं, "अफ़ग़ानिस्तान और भारत को एक बड़ मार्केट मिल जाएगा. चीन ने काफ़ी कोशिश की है और पैसा बर्बाद किया है लेकिन इसका जितना फ़ायदा उन्हें लगता है कि उन्हें मिलेगा, वो नहीं हो पा रहा."

चेन फेंग

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इमेज कैप्शन, वन बेल्ट वन रोड़ परियोजना के बारे में एचएनए ग्रुप के चेयरमैन चेन फेंग का कहना है कि इसमें अधिक देशों की हिस्सेदारी होनी चाहिए.

भारत और अफ़ग़ानिस्तान दोनों ने अब तक चीन की वन बेल्ट वन रोड परियोजना का हिस्सा नहीं बना है. यहां तक कि चीन ने अफ़ग़ानिस्तान में एक तांबा खनन में निवेश की योजना बनाई है लेकिन अब तक इस पर कोई काम शुरु नहीं हो सका है.

दाऊद आज़मी कहते हैं कि इसका एक कारण अमरीका है जो अफ़ग़ानिस्तान में सबसे बड़ा विदेशी फैक्टर है और अमरीका और चीन के बीच तनाव की स्थिति होने पर इस रास्ते पर अफ़ग़ानिस्तान आगे नहीं बढ़ सकता. साथ ही भारत भी अपने हितों के मद्देनज़र चीन की इस परियोजना का विरोध करता आया है.

अफ़ग़ानिस्तान

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भारत को क्या मिलता है, समझें

भारत को अफ़ग़ानिस्तान से क्या मिलता है इसे तीन बिंदुओं में समझा जा सकता है.

वो कहते हैं, "भारत को इस तनावग्रस्त जगह में एक अच्छा दोस्त मिलता है. दूसरा ये कि दोनों के बीच चरमपंथ के मसले पर खुफ़िया जानकरी साझा होती है. तीसरा ये कि विश्व बाज़ार के लिए भारत के रास्ते खुलते हैं."

आने वाले दिनों में भी भारत का अफ़ग़ानिस्तान में निवेश जारी रहेगा. वो वहां 11 राज्यों में टेलिफ़ोन एक्सचेंज स्थापित करने, चिमटाला में बिजलीघर सब-स्टेशन बनने और साथ ही वहां के राष्ट्रीय टीवी चैनल के विस्तार के लिए अपलिंक और डाउनलिंक सुविधाओं का विस्तार करने में भी मदद कर रहा है.

कहा जाए तो भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच की 'पुरानी दोस्ती' अब आगे और बढ़ने वाली है और इससे दक्षिण एशियाई क्षेत्र में दोनों मुल्कों की स्थिति भी और मज़बूत होगी.

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