करतारपुर फेरबदल प्रस्ताव दिलचस्पः वुसअत का ब्लॉग

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- Author, वुसअतुल्लाह ख़ान
- पदनाम, वरिष्ठ पत्रकार, पाकिस्तान से बीबीसी हिंदी के लिए
भारतीय पंजाब की विधानसभा ने गुरुद्वारा करतारपुर साहेब के बदले पाकिस्तान से ज़मीन के अदल-बदल का जो प्रस्ताव मंज़ूर किया है, ये कोई अटपटा या अनहोनी बात नहीं है.
अगस्त 2015 में बांग्लादेश और भारत ने सीमा के आर-पार ऐसे कई छोटे क्षेत्रों का अदल-बदल किया, जिसमें एक देश के नागरिक रहते थे मगर चारों ओर से दूसरे देश से घिरे हुए थे.
इस अदल-बदल से कुल मिलाकर 53 हज़ार बांग्लादेशी और भारतीय नागरिकों को फ़ायदा हुआ जो 1947 के विभाजन के बाद से हवा में लटके हुए थे.
1963 में पाकिस्तान को चीन ने उत्तरी कश्मीर में अपने कब्ज़े की 750 वर्ग मील ज़मीन दे दी बदले में पाकिस्तान ने लद्दाख और उत्तर में चीनी दावा मंज़ूर कर लिया, ये अलग बात है कि भारत ने इस अदल-बदल को कभी क़ानूनी मान्यता नहीं दी.

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पाकिस्तान का राज़ी होना मुश्किल
सितंबर 1958 में पाकिस्तान ने ग्वादर की बंदरगाह सल्तनत-ए-ओमान से 30 लाख डॉलर में ख़रीदी, 174 वर्ष पहले क़लात की रियासत ने ग्वादर ओमान के हवाले किया था.
अब आते हैं करतारपुर की तरफ़. सलाह तो बहुत अच्छी है कि पाकिस्तान को इसके बदले भारत कोई और ज़मीन दे दे, लेकिन पाकिस्तान पट से इसके लिए राज़ी हो जाए ऐसा कहना मुश्किल है.
पहली बात तो यह है कि करतारपुर के दूसरी तरफ ज़िला गुरदासपुर है और पाकिस्तानी इतिहासकारों का शुरू से मानना यह है कि गुरदासपुर रेडक्लिफ़ अवार्ड के ज़रिए भारत को इसलिए दिया गया ताकि उसे कश्मीर में दाखिले का रास्ता मिल जाए. जबकि गुरदासपुर पर पहला हक़ पाकिस्तान का था.

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अब अगर करतारपुर का फेरबदल होता है तो वो गुरदासपुर का हिस्सा बनेगा और पाकिस्तान के लिए ये सोचना भी तक़लीफ़देह होगा.
फिर पाकिस्तान ये भी कह सकता है कि जब सिख समुदाय के लोग आराम से तीर्थयात्रा के लिए ननकानासाहेब और पंजासाहेब समेत हर बड़े स्थान के दर्शन को आ सकते हैं तो करतारपुर साहेब भी अगर पाकिस्तान में ही रहे तो क्या मसला है. आखिर पाकिस्तान ने ही करतारपुर के दर्शन को वीज़ा फ़्री रखने की तजवीज़ रखी है.
अगर दोनों का पूरे-पूरे कश्मीर पर पहले दिन से जो दावा है वो सख्त से सख्त हो रहा है, तो ऐसे माहौल में किसके पास इतना जिगरा है कि ज़मीन के बदले ज़मीन की बात आगे बढ़ा सके.

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पहले दिलों का अदल-बदल हो
ज़मीन से पहले दिलों के अदल-बदल की ज़रूरत है, इसके आगे ज़मीन क्या चीज़ है.
मगर ये तो मानना ही पड़ेगा कि पंजाबियों का करतारपुर फेरबदल प्रस्ताव दिलचस्प ज़रूर है.















