जब महामहंगाई की मार ने इन मुल्कों को हिलाकर रख दिया

    • Author, पाब्लो उछोआ
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता

लैटिन अमरीकी देश वेनेज़ुएला इस समय मुद्रास्फीति के सबसे बुरे दौर से जूझ रहा है.

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ये मुद्रास्फीति का सबसे बुरा दौर है जिसे अर्थशास्त्र की भाषा में हाइपरइंफ्लेशन कहते हैं.

जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और हाइपरइंफ्लेशन के जानकार स्टीव हैंक के मुताबिक़ पिछले 12 महीनों में वेनेज़ुएला में महंगाई 65000 फ़ीसदी तक बढ़ गई है.

मौजूदा वक्त में वेनेज़ुएला की स्थिति बदतर है. यहां नागरिकों को अपनी बुनियादी ज़रूरत की चीजों के लिए भारी-भरकम रकम चुकानी पड़ रही है.

इस समस्या से निपटने के लिए वेनेज़ुएला ने नई करेंसी 'सॉवरेन बोलिवर' उतारी, लेकिन इस क़दम से भी देश की आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं आ सका.

कैंक ने बीबीसी को बताया कि पूरी दुनिया में हाइपरइंफ्लेशन की स्थिति कुल 58 बार बन चुकी है.

उन्होंने ऐसे ही कुछ देशों का जिक्र किया जिन्होंने हाइपरइंफ्लेशन का भयानक दौर झेला है.

ब्राजील ने कैसे कम की महंगाई?

दक्षिण अमरीकी देश ब्राज़ील में दिसंबर 1989 से मार्च 1990 के बीच हाइपरइंफ्लेशन का दौर रहा. इस दौरान देश की मुद्रा की क़ीमत लगातार घटती रही और हर 35 दिन में महंगाई दोगुनी की दर से बढ़ी.

ब्राज़ील में लगभग 15 सालों तक मुद्रास्फीति की दर हर महीने दहाई अंकों में रही. लगभग पूरे 80 के दशक में ब्राज़ील के व्यापारी सामानों की क़ीमत हर रोज़ बदलते रहे.

1994 में ब्राजील की सरकार ने 'प्लानो रियल' (जिसे 'रियल प्लान' के नाम से भी जानते हैं) के ज़रिए अर्थव्यवस्था को स्थिर किया.

जब हंगरी में हर 15 घंटे में बढ़ते थे दाम

जुलाई 1946 में यूरोपीय देश हंगरी में मुद्रास्फीति दर चौंकाने वाले आंकड़े तक जा पहुंची थी. देश की महंगाई दर 41,900,000,000,000,000 फ़ीसदी पर थी. इसे अबतक का सबसे बुरा हाइपरइंफ्लेशन माना जाता है.

दरअसल द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद हंगरी की 40 फ़ीसदी तक की संपत्ति ख़त्म हो गई थी और राजधानी बुडापेस्ट की लगभग 80 फ़ीसदी तक की संपत्ति तबाह हो चुकी थी.

1 अगस्त, 1946 में देश की सरकार इस आर्थिक संकट से निपटने के लिए एक योजना लेकर आई. इस योजना के तहत टैक्स की नीतियों में सुधार, विदेशों से अपने गोल्ड रिज़र्व की पूर्ति और नई मुद्रा 'हंगरियन गिल्डर' जारी करना जैसे कदम उठाए गए.

ज़िम्बाब्वे में हर दिन बदलता था रेटकार्ड

ज़िम्बाब्वे में 1990 के दशक में कृषि संबंधी सुधार किए गए. इसके बाद देश की कृषि उत्पादकता में तेज़ी से गिरावट आई.

1998 के कांगो युद्ध का नतीजा भी देश को भुगतना पड़ा क्योंकि साल 2002 में अमरीका और यूरोपीय यूनियन ने देश पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए.

इन कारणों से देश में महंगाई बढ़ने लगी. नवंबर 2008 को मुद्रास्फीति की दर 79,000,000,000% तक पहुंच गई.

साल 2009 में जिंबाब्वे के रिज़र्व बैंक ने देश की मुद्रा को रद्द कर दिया और इसकी जगह अमरीकी डॉलर और दक्षिण अफ्रीकी मुद्रा को देश में लाया गया.

यूगोस्लाविया ने अस्तित्व में आते ही देखी महंगाई

प्रथम विश्व युद्ध के बाद अस्तिव में आए यूरोपीय देश यूगोस्लाविया ने 1980 के दौर में राजनीतिक और आर्थिक संकट का दौर देखा.

इस संकट के चलते हुई हिंसा ने इस देश को बोस्निया और हरजेगोविना, क्रोएशिया, मेसेडोनिया, मोंटेनेग्रो, सर्बिया और स्लोवेनिया नाम के अलग-अलग मुल्कों में बांट दिया.

इसके बाद साल 1992 में सर्बिया और मोन्टेनेग्रो यूगोस्लाविया संघीय गणतंत्र के साथ रहे.

आंतरिक झगड़ों के कारण बढ़ते खर्चे को देखते हुए सरकार ने नोटों की छपाई शुरु कर दी.

इसके बाद भ्रष्टाचार, संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों ने देश के हालात 1992 से 1993 के बीच और भी ज्यादा ख़राब कर दिए.

1994 की शुरुआत में यूगोस्लाविया की महंगाई दर 313,000,000 फीसदी प्रतिमाह पर जा पहुंची.

आखिरकार, स्थिति पर काबू पाने के लिए सर्बियाई नेता स्लोबोदान मिलोसेविक ने संयुक्त राष्ट्र से प्रतिबंध हटाए जाने को लेकर बातचीत शुरू की और देश में नई मुद्रा 'दिनार' उतारी गई.

जब कर्ज में डूब गया जर्मनी

प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी काफी कर्ज़ में डूब गया था. देश की सरकार ने इससे निपटने के लिए स्थानीय मुद्रा 'लैंडमार्क' की छपाई शुरू कर दी ताकि जर्मनी दूसरी मजबूत मुद्राओं को खरीद सके और कर्ज़ चुका सके.

स्थिति तब और खराब हो गई जब जर्मनी साल 1923 में अपना बकाया नहीं चुका सका.

इस घटना से देश पर महंगाई का संकट घिर गया और महंगाई दर 29,500 फीसदी प्रतिमाह पहुंच गई. हर 3 से 4 दिनों के अंतराल पर सामानों की कीमत दोगुनी हो जाती थी.

साल 1923 में सरकार ने इस संकट से निपटने के लिए नई मुद्रा 'सीक्योर मार्क' उतारी. इसके बाद जर्मनी ने उन देशों से बात शुरू की जिनका वह कर्ज़दार रहा.

महंगाई के चलते ग्रीस को झेलना पड़ा खाद्य संकट

ग्रीक अर्थव्यवस्था द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे ज्यादा प्रभावित हुई अर्थव्यस्थाओं में से एक थी. विश्व युद्ध के दौरान ग्रीस पर ऐक्सिस देशों का कब्जा था.

देश की कृषि उत्पादकता में तेजी से आई कमी के कारण देश के बड़े शहरों में खाद्य सामग्री की आपूर्ति प्रभावित होने लगी और देश में महंगाई आसमान छूने लगी.

नवंबर 1944 में मुद्रास्फीति की दर 13,800 फ़ीसदी पर जा पहुंची.

इसके बाद ग्रीस की सरकार ने मुद्रास्फीति की दर को काबू में करने के लिए तीन बड़े कदम उठाए.

18 महीनों में देश की अर्थव्यवस्था को आर्थिक सुधारों, कर्ज़ों और नई मुद्रा जारी करके स्थिर किया गया.

हालांकि, ग्रीस को जर्मनी और हंगरी की अपेक्षा अपनी आर्थिक स्थिति को स्थिर बनाने में लंबा वक्त लगा.

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