तुर्की: राष्ट्रपति अर्दोआन ने किया समय से पहले चुनावों का एलान

तुर्की में 24 जून 2018 को राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव होंगे. ये चुनाव नवंबर 2019 में होने थे लेकिन राष्ट्रपति रेचेप तेयेप अर्दोआन ने अचानक चुनाव कराने की घोषणा कर दी है.

राष्ट्रपति अर्दोआन 2002 से तुर्की की सत्ता संभाल रहे हैं और वो अब राष्ट्रपति के तौर पर अधिक शक्तियों के साथ पांच साल का नया कार्यकाल चाहते हैं.

बीते साल हुए जनमत संग्रह में तुर्की के लोगों ने राष्ट्रपति को नई शक्तियां देने के समर्थन में मतदान किया था.

जल्द चुनाव कराने का विचार शुरुआत में अर्दोआन के राष्ट्रवादी सहयोगियों ने दिया था.

टीवी पर प्रसारित संदेश में राष्ट्रपति अर्दोआन ने कहा, "देश को पुरानी व्यवस्था की बीमारी से निजात दिलाने के लिए" नए चुनावों की ज़रूरत है.

राष्ट्रपति ने कहा, "सीरिया और दुनिया के अन्य हिस्सों में चल रहे घटनाक्रम की वजह से नए एक्ज़ीक्यूटिव सिस्टम को लागू करना ज़रूरी हो गया है ताकि हम अपने देश के हित में और मज़बूती के साथ फ़ैसले ले सकें."

अर्दोआन ने कहा कि उन्होंने अचानक चुनाव कराने का फ़ैसला राष्ट्रवादी एमएचपी पार्टी के अध्यक्ष देवलेत बाशेली से चर्चा के बाद लिया है. माना जा रहा है कि एमएचपी पार्टी सत्ताधारी एके पार्टी के साथ संसदीय चुनावों में गठबंधन करेगी.

अर्दोआन को इतनी जल्दी क्यों हैं?

बीबीसी के तुर्की संवाददाता मार्क लोवेन के मुताबिक ये सब बहुत ही नियोजित ढंग से किया जा रहा है.

तुर्की की सरकार लगातार जल्द चुनाव कराए जाने को नकारती रही थी लेकिन मंगलवार को गठबंधन सहयोगियों के साथ हुई वार्ता के बाद यू-टर्न ले लिया. दिखाने के लिए बुधवार को चर्चा की गई और जितना अनुमान लगाया जा रहा था उससे भी बहुत पहले की चुनावी तारीख़ घोषित कर दी.

ऐसे में सवाल उठ रहा है कि इतनी ज़ल्दबाज़ी क्यों? आलोचक तर्क दे सकते हैं कि राष्ट्रपति अर्दोआन अपनी मुख्य प्रतिद्वंदी मेराल अकसेनर के पर काटना चाहते हैं. अकसेनर ने कुछ महीने पहले ही देश में नई कट्टरपंथी पार्टी गठित की है.

तुर्की की मुद्रा लीरा रिकॉर्ड निचले स्तर पर है. उभर रही अर्थव्यवस्था वाले देशों की ये सबसे ख़राब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा है. यही नहीं देश में घाटा बढ़ रहा है और महंगाई बढ़ती ही जा रही है. ऐसे में अर्दोआन संभवतः अर्थव्यवस्था में गिरावट से पहले ही कार्रवाई करना चाहते हैं.

उनके समर्थकों का तर्क है कि वो बस पिछले साल हुए जनमत संग्रह के बाद स्थिति को और स्पष्ट करना चाहते हैं. जनमत संग्रह में तुर्की के संसदीय लोकतंत्र को बदलकर राष्ट्रपति शासित गणराज्य कर दिया गया था.

इसके फ़ायदे स्पष्ट हैं. सीरिया में हाल के दिनों में कुर्द लड़ाकों के ख़िलाफ़ की गई सैन्य कार्रवाई के बाद पैदा हुए देशभक्ति की लहर का सहारा लिया जाए और विपक्ष को बिना तैयारी के ही घेर लिया जाए.

लेकिन इसका ख़तरा ये है कि गिर रही अर्थव्यवस्था का दंश झेल रहे मतदाता चुनावों को सरकार को सबक सीखाने का मौका भी बना सकते हैं.

पिछले साल तुर्की के लोगों ने बेहद कम अंतर से जनमत संग्रह में नई व्यवस्था को मंज़ूरी दी थी, जिसके तहत देश में प्रधानमंत्री का पद समाप्त हो जाएगा और प्रधानमंत्री की कार्यकारी शक्तियां राष्ट्रपति के हाथों में आ जाएंगी.

ये नई शक्तियां राष्ट्रपति चुनावों के बाद ही प्रभावी होंगी.

जून में चुनाव होने का मतलब ये भी है कि तुर्की में आपातकाल की स्थिति में ही चुनाव होंगे. साल 2016 में हुई तख्तापलट की नाकाम कोशिश के बाद तुर्की में आपातकाल लगा दिया गया था.

कौन देगा अर्दोआन को टक्कर?

नई राष्ट्रवादी पार्टी का गठन करने वाली मेराल अकसेनर का कहना है कि वो ज़रूरी एक लाख हस्ताक्षर हासिल करने के बाद राष्ट्रपति अर्दोआन को चुनौती देंगी. अकसेनर ने ये भी कहा है कि उनकी पार्टी चुनावों के लिए पूरी तरह तैयार है.

वहीं विपक्षी रिपब्लिकन पीपुल्ज़ पार्टी ने भी आकस्मिक चुनावों का स्वागत किया है. पार्टी के प्रवक्ता बुलेंट तेजकान ने कहा, "आओ तो फिर अब हो ही जाए."

तेज़कान ने ये भी कहा कि देश में लागू आपातकाल को तुरंत हटाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, "आपातकाल में चुनाव नहीं हो सकता है. देश को आज ही आपातकाल से बाहर निकालने की ज़रूरत है."

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