ब्लॉग: तीन धर्मों वाले यरूशलम की आंखोंदेखी हक़ीक़त

येरुशलम

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इमेज कैप्शन, यरूशलम के पुराने शहर में मौजूद पवित्र स्थल जिसे यहूदी टेम्पल ऑफ़ माउंट कहते हैं
    • Author, ज़ुबैर अहमद
    • पदनाम, बीबीसी संवददाता, यरुशलम से

मैं इन दिनों इसराइल में हूँ. यहां पहली बार आया हूं. जब से होश संभाला है यरूशलम के बारे में सुनता आया हूं और पढ़ता आया हूं.

जब आप किसी जगह के बारे में ख़ूब पढ़ते हैं और वहां पहली बार जाते हैं तो काफ़ी कुछ जाना पहचाना सा लगता है.

मैंने सोचा था कि यरूशलम के साथ भी कुछ ऐसा ही होगा. लेकिन ये शहर तो कुछ और ही है. मैंने अब तक जो कुछ भी यहां देखा है उसके लिए मैं तैयार नहीं था. इस ऐतिहासिक शहर के बारे में आप जितना भी पढ़ें काफ़ी नहीं है.

रोम की तरह इस पुराने शहर की दीवारें, इनकी एक-एक ईंट और यहां की गालियां इस बात की गवाह हैं कि ये शहर कई बार आबाद हुआ और कई बार उजड़ा है.

येरुशलम का पुराना शहर

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इमेज कैप्शन, येरुशलम का पुराना शहर

वो सड़क जहां से गुजरे ईसा मसीह

यहां लोगों का ख़ून हर शताब्दी में ख़ूब बहा है. यहां ईसा मसीह भी बख्शे नहीं गए. यहां की तंग सड़कों में से एक वया डेल्स रोज़ा पर से होकर मैं गुज़रा. ये वही सड़क है जहां से होते हुए ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाने के लिए ले जाया गया था.

पुरानी दिल्ली की तरह प्राचीन यरूशलम भी ऊंची दीवारों के अंदर आबाद था और शहर में प्रवेश करने के किए कई दरवाज़े थे. यहां ऐसे आठ दरवाज़े हैं जिनमें से सभी आज भी मौजूद हैं.

इन ऊंची दीवारों और मज़बूत दरवाज़ों के बावजूद 1099 में यूरोप से आकर धर्मयुद्ध करने वाले ईसाई क्रूसेडर्ज़ अंदर घुस आए थे और तीन दिनों में शहर के 40,000 मुसलमान और यहूदी नागरिकों का क़त्ल करके शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया था.

येरुशलम का पुराना शहर

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इमेज कैप्शन, यरूशलम के पुराने शहर में मौजूद वेस्टर्न व़ल प्लाज़ा जहां रोज़ाना हज़ारों की तादाद में पर्यटक आते हैं

दुनिया भर से आते हैं श्रद्धालु

हम उस जगह पर भी गए जहां सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने शहर पर मुसलमानों का दोबारा क़ब्ज़ा कराया था. हमने वो मकान भी देखे जो 1967 की अरब-इसराइल जंग से पहले आधे इसराइल में थे और आधे जॉर्डन में.

यरूशलम दुनिया के तीन धर्मों का पवित्र शहर है यानी यहूदी, मुसलमान और ईसाई धर्म का. यहां तीनों धर्मों के पवित्र स्थान हैं जिनकी यात्रा करने श्रद्धालू दुनिया भर से आते हैं. हमने ऐसा पढ़ा था और यहां आकर ऐसा देखा भी.

यहूदियों के लिए सबसे पवित्र स्थान वेस्टर्न वॉल की दीवार को चूमने वाले कुछ लोग जोश में रो भी रहे थे. ईसाइयों के प्राचीन गिरजाघर में जिस तरह से लोग श्रद्धा के साथ इबादत कर रहे थे वैसा मैंने पहले कभी नहीं देखा था.

मस्जिद अक्सा में यात्रियों में केवल श्रद्धालू ही नहीं बल्कि दुनिया भर से आए पर्यटक भी मिले.

धर्म का यहां का बोलबाला है. धार्मिक स्थलों पर लोगों का हुजूम रहता है जिनमें से कई जुनून का शिकार रहते हैं. यहां के लोग कहते हैं कि शहर में हमेशा से ही धर्म के लिए जुनून पाया जाता है.

इसराइली पुलिस

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कड़ी सुरक्षा

अंदर की गलियों में लगातार दोनों तरफ़ दुकानें है. हथियारों से लैस सुरक्षाकर्मी हर जगह तैनात हैं.

दीवार के अंदर अगर एक अलग और प्राचीन दुनिया है तो इसके बाहर पूरा यरूशलम है जो आधुनिक है पूरी तरह से यहूदी अबादी. हां, पूर्वी यरूशलम में इसराइली अरब अधिक आबाद हैं.

दोनों समुदाय इसराइली नागरिक हैं लेकिन इनके बीच फ़ासले बहुत अधिक हैं. आदान-प्रदान की कमी है जिसके कारण एक दूसरे को समझने में लोग नाकाम रहते हैं.

येरुशलम

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इमेज कैप्शन, यरूशलम में चर्च ऑफ़ नेटिविटी के बाहर क्रिसमस मनाने के लिए एकत्र हुए लोग

दावे पर सवाल

इसराइल की आबादी 80 लाख है. दिल्ली की इससे दो गुना से थोड़ी कम आबादी है, लेकिन घनी आबादी है. फ़लस्तीनी वेस्ट बैंक और ग़ज़ा में रहते हैं जो एक दूसरे से कनेक्टेड नहीं हैं.

इसका हाल 1971 से पहले पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान की तरह है. एक दूसरे से दूर इन दोनों इलाक़ों में रहने वाले कई विभाजित परिवार इसका उदाहरण हैं. वेस्ट बैंक और ग़ज़ा के लोग एक दूसरे से नहीं मिल सकते. और दोनों जगह के लोग पर्मिट के बेग़ैर एक दूसरे के इलाक़े में नहीं जा सकते.

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार पूर्वी यरूशलम पर इसराइल का क़ब्ज़ा नाजायज़ है जबकि इसराइली सरकार के अनुसार ये इसका अटूट हिस्सा है. वो यरूशलम को इसराइल की हमेशा के लिए राजधानी मानती है.

फलस्तीनी

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इमेज कैप्शन, इसराइल सैनिकों के उपर पत्थर फेंक रहे हैं फलस्तीनी

हाल में अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने इसराइल के इस दावे को मान्यता दे दी है जिसके कारण यहां के अरब समुदाय में काफ़ी मायूसी है. संयुक्त राष्ट्र चाहता है कि दोनों एक दूसरे से समझौता करें ताकि इलाक़े में शांति हो.

इसराइली अरब और फ़लस्तीनी अरब के बीच पुराने झगड़े को और इनके बीच हमेशा के विवाद ख़त्म करने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने दो स्टेट का फ़ॉर्मूला उनके सामने रखा है. लेकिन अब तक इसके परिणाम कुछ नहीं निकले हैं.

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