महिला राष्ट्रपति जिन्होंने नारीवाद को अतिवाद माना

    • Author, मार्कोस गोंज़ालेज़ डियाज़
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता

साल 2014 में इबोला महामारी के कारण सुर्खियों में आए लाइबेरिया में राष्ट्रपति चुनाव हो रहे हैं और बुधवार तक इसके नतीजे आ जाएंगे.

यहां पिछले 12 साल से दो कार्यकाल तक राष्ट्रपति रहीं एलेन जॉनसन सरलीफ़ चुने हुए उम्मीदवार के लिए अपना पद छोड़ देंगी.

एलेन किसी भी अफ़्रीकी देश की राष्ट्रपति बनने वाली पहली महिला थीं. देश में शांति स्थापित करने के लिए उन्हें शांति का नोबल पुरस्कार भी दिया गया लेकिन अपने कुछ विचारों को लेकर वो विवादों में भी रहीं.

नारीवाद को अतिवाद मानने और समलैंगिकों के लिए कड़े क़ानून का समर्थन करने पर उनकी काफ़ी आलोचना हुई.

बहुत कम लोग जानते हैं कि क़रीब एक दशक तक गृह युद्ध झेल चुके, दुनिया के सबसे ग़रीब देशों में से एक लाइबेरिया को 19वीं सदी में अमरीका ने अपने पूर्व दासों के लिए बसाया था.

हालांकि अब इस देश की जनसंख्या के सिर्फ़ पांच प्रतिशत ही दास परिवारों से आते हैं.

लाइबेरिया में शांति के लिए किया काम

लाइबेरिया ने 1989 से 1996 और 1999 से 2003 तक दो चरणों में हुए भीषण गृह युद्ध का गवाह रहा है.

दूसरे गृहयुद्ध के तीन साल बाद सरलीफ़ ने लाइबेरिया की कमान संभाली तब देश अस्थिरता, अशांति और जर्जर हालत में था. गृहयुद्ध में लाखों लोगों की मौत हो चुकी थी और हज़ारों घर छोड़कर भाग गए थे.

2006 में उनके राष्ट्रपति बनने को लाइबेरिया के लिए उम्मीद की एक किरण की तरह देखा गया. उनसे पहले राष्ट्रपति रहे चार्ल्स टेलर को बाद में मानवता के ख़िलाफ़ अपराध के लिए 50 साल की क़ैद भी सुनाई गई.

लाइबेरिया की 'आयरन लेडी' कही जाने वाली सरलीफ़ के दो कार्यकालों में कई बदलाव हुए और कई सवाल भी खड़े हुए.

ज़्यादातर विश्लेषक इस राय से इत्तेफ़ाक रखते हैं कि एलेन 1989 से चले आ रहे ख़ून-खराबे को ख़त्म करने और देश में स्थिरता और शांति क़ायम करने में सफल रहीं.

लाइबेरियाई रिसर्चर और विश्लेषक इब्राहिम अल-बकरी-न्येई ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "यह अहम है कि उनकी प्रभावी अंतरराष्ट्रीय कूटनीति ने दुनिया के बाक़ी देशों के सामने लाइबेरिया की प्रतिष्ठा वापस लौटाई."

नोबेल पुरस्कार

लाइबेरिया में शांति कायम करने के लिए उन्हें साल 2011 में शांति का नोबेल पुरस्कार भी दिया गया.

लेकिन सरलीफ़ के हिस्से सिर्फ़ उपलब्धियां ही नहीं आईं. उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार जैसे कई गंभीर आरोप भी लगे.

इब्राहिम कहते हैं, "उनकी सबसे बड़ी नाक़ामयाबी ये रही कि वे भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई हार गईं. कई सरकारी अधिकारी घोटालों में लिप्त थे और उन्हें इसकी कोई सज़ा नहीं मिली."

उन पर महिलाओं की बेहतरी के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाने के आरोप भी लगते रहे. कहा गया कि उन्होंने राजनीति में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित कराने के लिए कुछ नहीं किया.

उनके अपने कैबिनेट में भी गिनी-चुनी महिलाएं थीं. इसी तरह इस साल चुनाव के पहले दौर में खड़े हुए 20 उम्मीदवारों में से सिर्फ़ एक महिला थी.

आरोप

सरलीफ़ पर वंशवाद के आरोप भी लगे. उन्होंने अपने एक बेटे को लाइबेरिया के केंद्रीय बैंक का डिप्टी गवर्नर बना दिया था और दूसरे को नेशनल पेट्रोलियम कंपनी का अध्यक्ष.

इन सब के अलावा सरलीफ़ जिस वजह से कड़ी आलोचनाओँ के घेरे में रहीं वो है 'फ़ेमिनिज़्म' और समलैंगिक अधिकारों पर उनके विचार.

उन्हें जब नोबेल पुरस्कार दिया गया था तो ज्यूरी ने महिलाओं के हक़ के लिए किए गए उनके कामों का ज़िक्र किया था.

विडंबना ये है कि सत्ता में आने के बाद सरलीफ़ अपने उन विचारों को अमल में नहीं ला पाई जिन्होंने उन्हें एक वक़्त पर दुनिया में 'फ़ेमिनिस्ट आइकन' बना दिया था.

लोगों को उम्मीद थी कि अफ़्रीकी महाद्वीप में चुनकर आने वाली पहली महिला राष्ट्रपति के तौर पर वो औरतों के हक़ में कुछ बड़े फ़ैसले लेंगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

विवादित बयान

सरलीफ़ देश में महिलाओं के ख़तना पर रोक लगाने में भी नाक़ामयाब रहीं जो अफ़्रीका में महिलाओं के उत्पीड़न की एक बड़ी वजह है.

लाइबेरिया की ऐक्टिविस्ट लेमा बोवी कहती हैं कि, "उन्होंने महिला अधिकारों के लिए ज़्यादा कुछ नहीं किया. बेशक उनका आना एक नई शुरुआत थी लेकिन उनकी नीतियों से औरतों की बुनियादी समस्याएं नहीं सुलझीं."

बोवी को भी 2011 में सरलीफ़ के साथ नोबेल पुरस्कार मिला था. वो कहती हैं, "सरलीफ़ से बहुत उम्मीदें थीं लेकिन वे फ़ेमिनिस्ट साबित नहीं हुईं."

फ़ेमिनिज़्म के बारे में बात करते हुए सरलीफ़ ने हाल ही में कहा था कि उन्हें नहीं लगता है कि हमें किसी अतिवाद की ज़रूरत है. हम पहले ही बहुत झेल चुके हैं.

समलैंगिक संबंधों के ख़िलाफ़ बयान देने के लिए भी सरलीफ़ की आलोचना हुई थी.

उन्होंने समलैंगिक संबंधों के लिए सज़ा की वकालत करने वाले एक क़ानून का समर्थन किया और कहा कि, "समाज में हमारे कुछ परंपरागत मूल्य हैं जिन्हें हम सहेजना चाहेंगे."

इसके लिए मानवाधिकार संगठनों ने सरलीफ़ की काफ़ी आलोचना की.

लाइबेरिया दुनिया के दस सबसे गरीब देशों में शामिल है और इस वक़्त कई चुनौतियों से जूझ रहा है. 2014 में एबोला महामारी ने देश की स्वास्थ्य सेवाओं को तबाह कर दिया.

सरलीफ़ के बाद राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठने वाले शख़्स के सामने शांति बनाए रखने के साथ-साथ देश की सेहत और अर्थव्यवस्था सुधारने की बड़ी चुनौती होगी.

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