लास वेगास गोलीबारी: अमरीका के हथियार कानूनों में बदलाव ना होने की 5 वजहें

लास वेगास में हुई गोलीबारी के बाद हथियारों पर नियंत्रण के पैरोकार फिर से संबंधित क़ानूनों को सख्त किए जाने की मांग करने लगे हैं

ये पहली बार नहीं है जब इस तरह की बात उठी है. जब भी कोई ऐसा हमला सुर्खियों में आता है, अमेरिका में बंदूक कानूनों को सख्त किए जाने की मांग उठने लगती है.

सरकार की तरफ से तो कई दशकों से नए क़ानून को लेकर ना दिलचस्पी ली गई है और ना कोई क़दम ही उठाया गया है जबकि इस पर हुई कई पब्लिक पोल में नए क़दम उठाए जाने को समर्थन मिला है. नए क़दम जैसे लाइसेंस जारी करने से पहले आवेदक की पृष्ठभूमि ठीक से जांची जाए और कुछ भारी हथियारों के रखे जाने पर पाबंदी लगा दी जाए.

लेकिन इस बार की घटना में दिस तरह कई जानें गई हैं, उसे देखते हुए क़ानून में बदलाव के लिए दबाव भी काफी होगा. लेकिन बदलाव की राह में 5 बड़ी दिक्कतें हैं.

1. नेशनल राइफ़ल एसोसिएशन

नेशनल राइफ़ल एसोसिएशन अमरीका की राजनीति में सबसे प्रभावशाली ग्रुप है. ना सिर्फ इसलिए कि ये राजनेताओं के साथ लॅबिंग के लिए पैसे ख़र्च करता है ब्लकि इसके प्रभाव की वजह इसके 50 लाख स्दस्य भी हैं.

ये उन सभी कोशिशों के ख़िलाफ़ है जो राज्य और केंद्र स्तर पर हथियारों की रेगुलेशन और नियंत्रण को लेकर की जाती हैं.

2016 में इस एसोसिएशन ने 40 लाख मिलियन डालर लाबिंग पर और राजनेताओं को डोनेशन देने में ख़र्च किए और साथ ही 5 करोड़ डालर से ज्यादा राजनीतिक पक्ष जुटाने में. अनुमान है कि एसोसिएशन ने 3 करोड़ डालर डोनल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति बनवाने के लिए भी खर्च किए.

इसका सालाना बजट तक़रीबन 250 करोड़ डालर है जिसे शिक्षा कार्यक्रमों में, बंदूक़ मुहैया कराने में, स्दस्यता के लिए कार्यक्रमों में, प्रायोजित कार्यक्रमों में, राजनीतिक पक्ष जुटाने में ख़र्च किया जाता है.

इस एसोसिएशन ने अमरीका में अपनी एक ऐसी संस्था के रूप में छवि बना ली है जो किसी राजनेता को बना भी सकती है और झुका भी सकती है.

यह एसोसिएशन राजनेताओं को उनके वोट के आधार पर तवज्जो देती है और अपने सभी संसाधन और स्दस्य अपने पक्षकारों के समर्थन में और विपक्ष को हराने में लगा देती है.

एक पूर्व रिपब्लिक सांसद ने 2013 में न्यूयार्क टाइम्स से कहा था : "ये एक ग्रुप ऐसा था जिसके लिए मैंने कहा था कि जब तक मैं सांसद हूं, इसे बढ़ावा नहीं दूंगा."

क्या उसे बदला जा सकता है - हथियार नियंत्रक ग्रुप्स जिन्हें पूर्व न्यूयार्क मेयर माइकल ब्लूमबर्ग जैसे अमीर दान दाताओं का समर्थन हासिल है, वो पिछले कुछ समय में ज्यादा संगठित हुए है. उनकी कोशिश नेशनल राइफ़ल एसोसिएशन की राजनीतिक ताक़त की बराबरी करने की है. लेकिन जब तक हथियारों के पैरोकार ग्रुप्स को चुनावी जीत मिलती रहेगी तब तक राज उन्हीं का चलेगा.

2. मतदाताओं का तुष्टीकरण

हथियारों के क़ानूनों में बदलाव की कोशिशें शुरू होने से पहले ही अमरीकी लोकसभा (हाउस आफ रिप्रेजेंटेटिव) में ख़त्म हो जाती हैं जो 2011 से रिपब्लिक पार्टी के हाथों में है.

जून 2016 में डेमोक्रेट नेताओं के एक ग्रुप ने हथियार नियंत्रण पर वोट ना करवाए जाने के ख़िलाफ़ सभा के फर्श पर बैठ कर विरोध प्रदर्शन किया था.

सभा में बंदूकों के पक्ष में झुकाव इसलिए भी नज़र आता है क्योंकि हाल ही में यहां रिपब्लिकन पार्टी की संख्या भी बढ़ गई है.

संसदीय क्षेत्रों के विभाजन के आधार पर वहां रिपब्लिक पार्टी के लिए ज्यादा सुरक्षित सीटें हैं बजाय कि डेमोक्रेटिक पार्टी के.

इन संसदीय क्षेत्रों में राजनेता अपने प्राइमरी मतदाताओं की तरफ जवाबदेह होते हैं जो हथियार के अधिकार जैसे मुद्दे पर उत्साहित होते हैं. इन मतदाताओं को नाराज़ करने की क़ीमत उन मतदाताओँ से ज्यादा है जो हथियार नियंत्रण के पक्षदर हैं और वे रिपब्लिक पार्टी को वोट भी नहीं देते.

सभा में हथियारों के पक्ष में भावना होने की एक वजह ये भी है कि ग्रामीण इलाकों में शहरी इलाक़ो से ज्यादा हथियार रखने वाले लोग हैं. इसलिए भी शहरों में हथियार नियंत्रण के पक्षकारों की संख्या भले ही ज्यादा हो लेकिन सभा में इसका राजनीतिक असर होना मुश्किल है.

क्या इसे बदला जा सकता है? या तो हथियार नियंत्रण के पक्ष वाले लिबरल लोगों की बाढ आ जाए वरना इलाक़ों की हकीक़त तो नहीं बदल सकती. इस तुष्टीकरण को ख़त्म करने की कुछ कोशिशें हुई हैं. बराक ओबामा ने इसे राष्ट्रपति की ज़िम्मेदारियां ख़त्म होने के बाद का लक्ष्य भी बनाया था. सुप्रीम कोर्ट भी विसकोनसिन क्षेत्र जहां रिपब्लिक पार्टी को फायदा मिलता है, उसे दी गई कानूनी चुनौती पर विचार कर रही है. लेकिन फिर भी ये एक मुश्किल काम है.

3. वोटिंग टालना

हथियार नियंत्रण बिल अगर अमरीकी लोकसभा (हाउस आफ रिप्रेजेंटेटिव) से पास हो भी जाता है तब भी ये ऊपरी सभा (सीनेट) में अटक जाएगा क्योंकि वहां पर ग्रामीण-शहरी वोट विभाजन बड़े स्तर पर रोल अदा करता है. न्यूयार्क, मैसाश्यूट्स या कैलिफोर्निया जैसे बड़े राज्यों के शहरी मतदाताओं से ग्रामीण और दक्षिणी राज्य के मतदाता कहीं ज़्यादा हैं जो हथियार के अधिकारों को बने रहने देना चाहते हैं.

सीनेट के एक नियम (फिलीबस्टर) के हिसाब से स्पीकर कुछ सीनेटर्स को इजाज़त देता है कि वो किसी भी विषय पर कितना भी लंबा बोल सकते हैं. इस नियम का ग़लत इस्तेमाल करते हुए सांसद तय सीमा से ज़्यादा बोलते रहते हैं ताकि वोटिंग ना हो सके.

अगर 100 में से 60 सीनेटर्स वोट कर देते हैं तो इस नियम को रोका जा सकता है ताकि फिर अंतिम वोट की जा सके.

2013 में, कनेटीकट स्कूल में गोलीबारी के बाद ऐसा लग रहा था कि सीनेट में हथियार ख़रीदने से पहले पृष्ठभूमि की जांच जैसे क़दम के पक्ष में हवा है. लेकिन नेशनल राइफल एसोसिएशन की लाबिंग के बाद इस बिल को 56 वोट ही मिल पाए जो कि फिलीबस्टर तोड़ने के लिए बहुमत से सिर्फ 4 कम थे.

उसके बाद से कोई हथियार नियंत्रण बिल पास होने के करीब नहीं आ पाया.

क्या इसे बदला जा सकता है? अमरिकी राष्ट्रपति फिलीबस्टर को खत्म करने के पैरोकार रहे हैं क्योंकि उन्हें ये अपने कानून बनाने की राह में रोड़ा नज़र आता है. लेकिन ज़्यादातर सीनेटर्स इस नियम को बदलने के ख़िलाफ़ हैं.

4. कोर्ट

जहां एक तरफ संसद नए कानून लाने की बजाय मौजूदा हथियार नियंत्रण कानूनों को वापस लेने में ज़्यादा दिलचस्पी लेती दिखाई दे रही हैं वहीं लेफ्ट झुकाव वाले राज्य हथियार नियंत्रण क़दम उठा रहे हैं.

2012 की कनेटीकट स्कूल में गोलीबारी के बाद 21 राज्यों ने नए हथियार कानून बनाए जिसमें कनेटीकट, मेरीलैंड और न्यूयार्क में हथियारों पर पाबंदी लगाना भी शामिल है.

लेकिन इन नए कानूनों के सामने एक और दिक्कत खड़ी हो गई. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले कुछ सालों में दो बार ये फैसला दिया है कि हैंडगन जैसे हथियार का अधिकार अमरीका के संविधान में शामिल है.

संविधान के दूसरे संशोधन में कहा गया है कि एक रेगुलेटिड नागरिक सेना एक आज़ाद देश की सुरक्षा के लिए ज़रूरी है और नागरिकों के हथियार रखने के अधिकारों को नहीं छीना जा सकता.

उसके बाद से निचली अदालतों ने राज्यों के प्रतिबंध पर आने वाली चुनौतियों पर विचार करना शुरू कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने भी किसी नए केस को सुनने से इनकार कर दिया है.

क्या इसे बदला जा सकता है? ट्रंप के नियुक्त किए गए जस्टिस नील गोरसच ने साफ कर दिया है कि वो दूसरे संशोधन को व्यापक रूप में देखते हैं. राष्ट्रपति निचली अदालतों में हथियारों के पक्षकार जजों को नियुक्त कर रहे हैं. न्यायपालिका इस मामले पर दक्षिणपंथी विचारधारा की ओर जा रही है.

5. दो मान्यताओं के जोश में अंतर

सबसे बड़ी दो दिक्कत है वो ये कि हथियारों के समर्थक अपनी मान्यता के साथ अड़े रहते हैं और जो नए कानून लाने की हिमायत करते हैं वो सिर्फ तब होता है जब किसी गोलीबारी की दुर्घटना होती है.

नेशनल राइफल एसोसिएशन और हथियार के पक्षकारों की रणनीति होती है कि तूफान के थमने का इंतज़ार करो, कानून को टालने की कोशिशें करते रहो जब तक की ध्यान कहीं और नहीं भटक जाता. धीरे-धीरे हो-हल्ला कम हो जाता है.

हथियारों के समर्थक राजनेता किसी दुर्घटना के बाद शोक सभा करते हैं, प्रार्थना करते हैं. बाद में चुपके से किसी भी कानूनी कोशिश को टाल दिया जाता है.

सोमवार को व्हाइट हाऊस की प्रेस सचिव साराह हक्काबी सेंडर्स ने पत्रकारों से कहा कि किसी राजनीतिक बहस के लिए एक जगह और वक्त होता है लेकिन फिलहाल ये वक्त देश के एकजुट होने का है.

राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि हथियार कानून पर बात होगी कुछ वक्त बाद.

क्या इसे बदला जा सकता है? 2016 के राष्ट्रपति कैपेंन में एक पोल के दौरान ये सामने आया था कि बंदूकें डैमोक्रेट और रिपब्लिकन दोनों के लिए मुद्दा है. वो शायद ओरलैंडों के नाइटक्लब की गोलीबारी के बाद की प्रतिक्रिया में था या नए दौर शुरू होने का पहला इशारा.

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