एंगेला मर्केल चौथी बार बनेंगी जर्मनी की चांसलर?

एंगेला मर्केल

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    • Author, अनवर जमाल अशरफ़
    • पदनाम, वरिष्ठ पत्रकार, जर्मनी से बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए

जर्मनी में रविवार को आम चुनाव होने जा रहा है. चांसलर एंगेला मर्केल चौथी बार चुनावी मैदान में हैं.

तीन बार से वो सत्ता में हैं. एक नेता के तौर पर उन्होंने दुनिया भर में काफ़ी मजबूत स्थिति हासिल कर ली है.

आख़िर के दिनों में मर्केल के लिए ये चुनाव काफ़ी आसान हो गया है. सर्वे भी बता रहे हैं कि मर्केल एक आसान विजय की ओर बढ़ रही हैं.

ताज्जुब की बात है कि पिछले दिनों जब शरणार्थी संकट पैदा हुआ था और जिसे लेकर यहां के लोगों में गहरा असंतोष था, उससे लग रहा था कि मर्केल इस बार चुनाव न जीत पाएं.

उनके अनुसार, ऐसा लगता है कि पिछले दो महीनों में ये मुद्दा पीछे चला गया है.

जर्मन सोशल डेमोक्रेट (एसडीपी) पार्टी के नेता और चांसलर पद के उम्मीदवार

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इमेज कैप्शन, जर्मन सोशल डेमोक्रेट (एसडीपी) पार्टी के नेता और चांसलर पद के उम्मीदवार

यूरोपीय संघ

हालांकि यहां के चुनाव में कट्टर दक्षिणपंथी पार्टी ने अपना जनाधार बढ़ाया है. राष्ट्रवादी और दक्षिणपंथी दलों का पूरी दुनिया में ही उभार हुआ है.

पिछले साल अमरीकी चुनाव के साथ इसको और हवा मिली है. यूरोप भी इससे अछूता नहीं रहा है.

यूरोप को तो अभी ब्रेक्सिट से भी निपटना है और ब्रिटेन के अलग होने के बाद जर्मनी यूरोपीय संघ का सबसे मजबूत और ताक़तवर देश बन गया है.

जर्मनी में पिछले चार-पांच सालों में एक कट्टर दक्षिणपंथी पार्टी उभर कर आई है, जिसका नाम है अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफ़डी).

ये पार्टी शरणार्थियों, मुसलमानों और संयुक्त यूरोप के ख़िलाफ़ है. इस पार्टी का इतनी तेज़ी से उभार हुआ है कि ये 16 में से 12 प्रांतीय असेंबलियों में पहुंच चुकी है.

और ये लगभग तय माना जा रहा है कि वो इस बार संसद में भी पहुंच जाएगी.

जर्मनी

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शरणार्थी संकट

संसद में पहुंचने के लिए उसे कम से कम पांच प्रतिशत वोट चाहिए. पिछली बार वो एक से भी कम प्रतिशत वोटों से रह गई थी.

दूसरे विश्व युद्ध के बाद ये पहली बार होगा जब एक कट्टर दक्षिणपंथी पार्टी, जर्मनी के संसद में जाने वाली है.

हम जानते हैं कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जर्मनी का एक काला अध्याय रहा है.

इस बात को जर्मनी के लोग भी मानते हैं कि ये एक ऐसा बदनुमा दाग़ है जिसे वो कभी मिटा नहीं सकते. ऐसे समय में एएफ़डी का उभार चिंताजनक है.

लेकिन राहत की बात है कि इसके विरोध में भी काफ़ी लोग हैं.

शरणार्थी संकट पर उनके रुख़ के लिए मर्केल की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफ़ी तारीफ़ की जा रही है और दो तीन सालों से नोबेल शांति पुरस्कार के लिए भी लगातार उनका नाम भेजा जा रहा है लेकिन शरणार्थी संकट उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई है.

जर्मनी की दक्षिणपंथी पार्टी

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इमेज कैप्शन, जर्मनी की दक्षिणपंथी पार्टी अल्टरनेट फॉर जर्मनी (एएफ़डी) के इस बार संसद में उपस्थिति दर्ज करने की संभावना है

यूरोपीय राजनीति

जर्मनी के एक आम आदमी को लगता है कि शरणार्थियों के आने से यहां अपराध बढ़े हैं, उन पर सार्वजनिक धन खर्च हो रहा है.

उन्हें ये भी लगता है कि ये एक अतिरिक्त बोझ हैं, जिससे बचा जा सकता था.

शरणार्थी मुद्दे पर मर्केल का कोई स्पष्ट पक्ष नहीं रहा है और ये बात जर्मनी के लोगों को थोड़ी अजीब लगती है.

मर्केल को चुनौती दे रहे हैं मार्टिन शुल्ज़. यूरोपीय राजनीति से उन्होंने जर्मनी की राजनीति में प्रवेश लिया है.

शुल्ज़ यूरोपीय की संसद के अध्यक्ष थे, इसलिए उन्हें लेकर एक बड़े तबके में काफ़ी उम्मीद थी. लेकिन उनका जादू अधिक दिन तक नहीं चला.

शुरुआत में सर्वे में उन्हें क़रीब 35 प्रतिशत का समर्थन हासिल था जो कि वर्तमान में गिरकर 20 प्रतिशत के आस पास पहुंच गया है.

(जर्मनी में पत्रकार अनवर जमाल अशरफ़ से बीबीसी संवाददाता हरिता कांडपाल से बातचीत पर आधारित.)

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