क्या बदहाली की तरफ़ बढ़ता जा रहा है क़तर?

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सऊदी अरब, बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात की अगुवाई में लगी आर्थिक पाबंदियां अगर लंबे वक़्त तक जारी रहती हैं तो क़तर मुश्किल में फंस सकता है.

एक समय था जब क़तर के आर्थिक विकास और तरक्की को लेकर जानकार आश्वस्त नज़र आ रहे थे, लेकिन पड़ोसियों के साथ उसके संबंध बिगड़ने के बाद जैसे सब कुछ बदल गया.

सभी प्रमुख क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने क़तर को लेकर अपना रेटिंग आउटलुक नेगेटिव में बदल दिया है, जो किसी भी मुल्क़ के लिए चिंता का विषय है.

क्या मतलब है रेटिंग का?

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ये रेटिंग दिखाती हैं कि किसी देश में निवेश का माहौल और आर्थिक विकास की संभावनाएं कैसी हैं और इनमें गिरावट सीधे तौर पर वहां की बिगड़ती स्थिति की ओर इशारा करती है.

दुनिया की जानी-मानी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पूअर्स ने क़तर को लेकर पहले रेटिंग एए से घटाकर एए- कर दी थी और फिर उसके बाद नेगेटिव कर दी.

साथ ही उसने ये भी कहा है कि अगर आर्थिक पाबंदियां और कड़ी की जाती हैं या लंबी खिंचती हैं तो रेटिंग में और गिरावट की जा सकती है.

तेल पर निर्भर क़तर का संकट

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क़तर की अर्थव्यवस्था काफ़ी हद तक तेल पर निर्भर करती है. लेकिन इन दिनों वो अपने पड़ोसी देशों से अलग-थलग पड़ गया है. इन देशों का कहना है कि क़तर 'आतंकी समूहों' का समर्थन करता है हालांकि वो इस इल्ज़ाम से इनकार करता है.

इस फ़ैसले की वजह से उड़ानों में दिक्कतें पेश आईं, खाने की कमी पैदा होने का ख़तरा बढ़ा और वहां बड़े पैमाने पर चल रहे निर्माण कार्य के लिए सामान की सप्लाई पर असर हुआ.

एसएंडपी का कहना है कि उसे आशंका है कि क़तर की आर्थिक रफ़्तार धीमी पड़ सकती है क्योंकि क्षेत्रीय कारोबार में गिरावट आएगी और कॉरपोरेट मुनाफ़े में भी कमी आएगी. क़तर में कारोबार और कारोबारियों का भरोसा घट रहा है.

नॉन रेज़िडेंट डिपॉजिट का खेल

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इमेज कैप्शन, क़तर के तत्कालीन प्रधानमंत्री हमाद बिन जासिम अल-थानी हिजबुल्ला के महासचिव हसन नसरूल्लाह के साथ, तस्वीर 2010 की है

दरअसल, एजेंसी का कहना है कि क़तर के बैंकों में 'नॉन रेज़िडेंट' डिपॉजिट काफ़ी बड़ा था और सरकार को इससे मिलने वाला कर्ज़ बढ़ गया था जिससे वो इंफ़्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की फ़ंडिंग कर रही थी.

हालिया घटनाक्रम से इन डिपॉज़िट के अस्थिर होने का ख़तरा है और इनमें कमी आने की आशंका है. क़तर के सबसे बड़े कारोबारी इस क्षेत्र के बाहर हैं.

लेकिन जिन छह मुल्कों ने उस पर पाबंदी लगाई हैं, वो क़तरी निर्यात में 10% और उसके आयात में 15% की हिस्सेदारी रखते हैं.

साल 2018 तक चलेगा संकट?

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कई विश्लेषकों का मानना है कि क़तर पर लगी पाबंदियों से पैदा हुआ संकट साल 2018 तक खिंच सकता है क्योंकि दोनों पक्षों के बीच सुलह-समझौते की कोशिशें कामयाब होती नहीं दिख रहीं.

दुनिया की दूसरी प्रमुख क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज़ ने क़तर की रेटिंग नेगेटिव आउटलुक के साथ एए3 रखी है.

ईरान कर रहा है मदद

उसका ये भी कहना है कि अगर इस तनाव की अवधि खिंचती है और तल्ख़ी बढ़ती है तो इससे क़तर की आर्थिक और वित्तीय मज़बूती पर गहरा असर होगा.

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हाल ये है कि क़तर के लोगों को खाने के लाले पड़ गए हैं. वो ईरान की मदद से अपने देशवासियों को खाना-पानी और दूसरी चीज़ें मुहैया करा रहा है.

इस संकट का साया 2022 के फ़ुटबॉल वर्ल्ड कप पर भी मंडरा रहा है.

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