भारत-चीन विवाद: तनाव कहीं का और मोर्चाबंदी कहीं

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- Author, ज़ैनुल आबिद
- पदनाम, बीबीसी मॉनीटरिंग
डोकलाम को लेकर भारत और चीन के बीच चल रहा तनाव, दरअसल इन दो पड़ोसी एशियाई शक्तियों के बीच इलाक़ाई दबदबा बनाने की होड़ का संकेत है.
भारत, चीन और भूटान के सीमा से लगा ये इलाक़ा रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है और इस पर दोनों देशों की दावेदारी, ये दिखाता है कि पाकिस्तान,श्रीलंका, बांग्लादेश मालदीव, नेपाल, वियतनाम और मंगोलिया में दिल्ली और बीजिंग दोनों अपनी मौजूदगी मज़बूत बनाना चाहते हैं.
डोकलाम संकट इस मायने में अभूतपूर्व है कि चीन और भारत एक तीसरे देश भूटान में खुले तौर पर आमने सामने हैं.
हालांकि इलाक़ाई दबदबा स्थापित करने में चीन साफ़ तौर पर आगे है. जबकि भारत इस इलाक़े में, ख़ासकर हिंद महासागर में आर्थिक और सैन्य गतिविधियों को बढ़ाकर अपना दबदबा क़ायम करने की कोशिश कर रहा है.
इलाक़ाई दबदबे में चीन आगे
चीन इस इलाके में रणनीतिक रूप से बुनियादी ढांचा और समुद्री आधारभूत संरचनाओं के मार्फ़त मौजूदगी बढ़ा रहा है, जोकि भारत के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है.
राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने हिंद महासागर को अपनी महत्वाकांक्षी 'वन बेल्ट वन रोड' परियोजना का केंद्र बिंदु बना लिया है.
इसका मक़सद एशिया, यूरोप और अफ़्रीका के बीच प्राचीन व्यापारिक रास्तों को फिर से जीवित कर चीन को वैश्विक गतिविधियों के केंद्र में ला खड़ा करना है.
इस योजना के तहत शुरू हुई, चीन-पाकिस्तान-आर्थिक-कॉरिडोर (सीपीईसी) परियोजना में शामिल होने से, भारत ये कहते हुए इनकार कर चुका है कि इसके पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर से होकर गुजरने से उसकी संप्रभुता का उल्लंघन होता है. भारत इस इलाक़े पर दावा करता रहा है.
पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर चीनी नियंत्रण को लेकर भी भारत की रक्षा चिंताएं हैं.

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पिछले सप्ताह चीन ने हिंद महासागर के उत्तरी पश्चिमी छोर पर जिबूती में अपना पहला विदेशी नेवी बेस स्थापित किया.
इसके बाद श्रीलंका के साथ चीन ने 1.1 अरब डॉलर का एक ऐतिहासिक समझौता किया, जिसके तहत चीन को भारत के दक्षिणी हिस्से के क़रीब हम्बनटोटा में समुद्र के अंदर बंदरगाह को विकसित करने और उस पर नियंत्रण का अधिकार मिल गया है.
हम्बनटोटा मध्यपूर्व और पूर्वी एशिया को जोड़ने वाला ईंधन आपूर्ति मार्ग का प्रमुख पड़ाव है. इस पर नियंत्रण का मतलब है कि इस इलाक़े में चीन का दबदबा और मज़बूत होना.

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इस इलाक़े में दो बड़े बंदरगाह, बांग्लादेश का चितगांव और म्यांमार का चाउकपियू पहले ही चीन के नियंत्रण में हैं.
हम्बनटोटा सौदे पर हस्ताक्षर होने से पहले, मालदीव की संसद ने एक क़ानून पास किया, जो उसकी ज़मीन पर विदेशी मालिकाने की इजाज़त देता है.
विशेषज्ञों का कहना है कि इसका मक़सद, चीन को द्वीप खऱीदने और उसे आर्किपेलागो में रणनीतिक ढांचा स्थापित करने की इजाज़त देना है.
भारत की जवाबी कार्रवाई
चीन के इलाक़ाई दबदबे को संतुलित करने के लिए भारत उन दक्षिणपूर्वी देशों के साथ अपने संबंधों को मज़बूत कर रहा है, जो इस इलाक़े में चीन के ऐसे ही आक्रामक रुख से चिंतित हैं.
भारत म्यांमार में समुद्र के अंदर एक छोटा बंदरगाह बना रहा है, जबकि वियतनाम ने हाल ही में भारत को दक्षिणी चीन सागर विवाद में बड़ी भूमिका निभाने का न्यौता दिया.

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चीन के पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह के जवाब में भारत ईरान में चाबहार बंदरगाह बना रहा है.
साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'एक्ट ईस्ट' नीति के तहत मंगोलिया का दौरा किया था, जिसका मक़सद एशिया में चीन के ख़िलाफ़ एक रणनीतिक संतुलन स्थापित करना था.
डोकलाम, दिल्ली और बीजिंग के बीच इलाक़ाई प्रभुत्व का एक नया मुद्दा बन गया है और अभूतपूर्व रूप से दोनों देशों की सेनाओं को एक दूसरे सामने ला खड़ा किया है.
दबदबे की जंग
भारत ने, भूटान से जुड़े इस विवादित इलाक़े में चीन की ओर से सड़क बनाए जाने की आलोचना की तो चीन की तीखी प्रतिक्रिया आई. भूटान, भारत को इस इलाक़े में अपना सबसे भरोसेमंद साथी मानता है और कूटनीतिक और सैन्य मामलों में दिल्ली पर निर्भर है.

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लेकिन चीन ने भारत पर पलटवार करते हुए, अपने सैनिकों को वहां से तत्काल हटाए जाने की मांग की.
चीन के सरकारी अख़बार 'ग्लोबल टाइम्स' में छपे एक लेख में भारत को चेतावनी दी गई कि भारत का यही तर्क, चीन को पाकिस्तान के न्यौते पर भारत प्रशासित कश्मीर में दाख़िल होने का बहाना देता है.
जबकि, जानकार, इसे इलाक़े में चीन के बढ़ते दबदबे को लेकर भारत की प्रतिक्रिया के रूप में देखते हैं.
'दि डिप्लोमेटिक' पत्रिका के वरिष्ठ संपादक अंकित पांडा ने लिखा है कि, 'मौजूदा विवाद की मूल वजह, इलाक़े में दोनों देशों की प्रतिद्वंद्विता है.'
साल 2012 में शी जिनपिंग के राष्ट्रपति बनने के बाद इस तरह के तनावों में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है.
उनके कार्यकाल में भारत के चारो ओर ख़ासकर हिंद महासागर में चीन ने अपनी मौजूदगी बढ़ाई है, जबकि भारत इसे अपनी गतिविधि का प्राथमिक इलाक़ा मानता है.
क्वार्ट्स इंडिया वेबसाइट में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है, "अपने कार्यकाल के शुरुआती सालों में प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को एक इलाक़ाई महाशक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए 36 देशों की यात्राएं कीं. इस बीच शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन, एशिया में अपनी विदेश नीति को मज़बूत करने में लगा रहा."
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