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नज़रिया: क्या कुलभूषण जाधव पर भारत-पाकिस्तान में 'डील' मुमकिन है?
- Author, हारून रशीद
- पदनाम, बीबीसी उर्दू संवाददाता, इस्लामाबाद
पाकिस्तान और भारत के संबंधों के बारे में अच्छी खबर तो कभी-कभी सामने आती है लेकिन अक्सर बुरी खबरें उस पर छाई रहती हैं.
कुलभूषण जाधव का मामला भी इन्हीं अनगिनत बुरी खबरों में से एक है.
और पाकिस्तान में यही खतरा महसूस किया जा रहा है कि कुलभूषण को मौत की सजा का फैसला दोनों देशों के बीच जारी तनाव को किसी इंतेहा पर ले जाने का कारण न बन सकता है.
भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का भारत की संसद में दिया बयान बदकिस्मती से इसी तरफ़ इशारा कर रहा है.
उनका कहना है कि भारत अपने नागरिक को सज़ा से बचाने के लिए किसी भी हद तक जाएगा, यकीनन ये कोई अमन की बांसुरी नहीं है, जो भारत बजा रहा है.
'पाकिस्तानी चिंतित और हैरत में'
पाकिस्तान में इस बात पर सरकारी स्तर पर तो प्रतिक्रिया मालूम है कि 'जब कुछ होगा तो देख लेंगे' लेकिन आम पाकिस्तानियों के बीच ये चिंता और हैरत दोनों का विषय है.
चिंता इस बात पर कि भारत पाकिस्तान को किस तरह से 'अकड़' दिखा रहा रहा है?
क्या वह वास्तव में कोई 'सैन्य कार्रवाई' की ओर इशारा कर रहा है या उसका कूटनीतिक मोर्चे पर कोई कड़ी कार्रवाई का इरादा है.
सैन्य विकल्पों ने तो दोनों देशों के संबंध का पहले से ही बेड़ा ग़र्क़ कर रखा है, अब इसमें इस किस्म की कोई बात बेहतरी तो नहीं ला सकती.
दोनों देशों के लाखों-करोड़ों लोगों की तरह जो सिर्फ और सिर्फ अमन के ख्वाहिशमंद हैं, यही कहा जा सकता है कि समझदारी मुद्दे को सुलझाने में है न कि लोगों की नज़रों में ये दिखाने में, कि किसने किसको ज्यादा अकड़ दिखाई.
राष्ट्रीय सुरक्षा
अक्सर लोग कुलभूषण के मामले में भी पूछते हैं कि क्या पाकिस्तान में राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व एक जैसी सोच रखते हैं. ये मामला तो सौ फीसदी फौज के हाथ में है.
इस मुद्दे पर फौज के स्टैंड के खिलाफ राय रखने वाले लोगों को 'गद्दार' या 'भारत का एजेंट' करार दिए जाने का खतरा है.
जासूसों के मामले में सबूत जो भी हों, दूसरों का रुख कुछ भी हो, जब एक बार फौज ने इस पर एक रुख अख्तियार कर लिया है तो फिर इधर-उधर देखने की गुंजाइश नहीं बचती.
और यही सब कुछ चुनी हुई सरकार के स्तर पर भी दिखाई दे रहा है.
रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने नेशनल असेंबली फौज के फैसले का पूरी तरह से बचाव किया है और भारत के एतराज को पूरी तरह से खारिज कर दिया है. उन्होंने ये भी कहा कि ये तो सीधे-सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा और हितों से जुड़ा मामला है.
'इकबालिया बयान'
इसमें किंतु-परंतु की गुंजाइश बिल्कुल नहीं है. सार्वजनिक स्तर पर भी बहुमत सरकार के स्टैंड के समर्थन में दिखता है.
लोगों का मानना है कि एक व्यक्ति ने जब अपने अपराध स्वीकार कर लिए हैं तो अब इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती.
हाँ, सेना की हिरासत में दिए गए 'इकबालिया बयान' की वैधता पर क्या कोई बात होनी चाहिए या नहीं इस पर तर्क करने की ज़रूरत ही नहीं समझी जा रही है.
रक्षा मंत्री ने संसद को बताया है कि कुलभूषण के पास अब आर्मी एक्ट के तहत फौजी कोर्ट में अपील करने के लिए 40 दिन का वक्त है.
इसमें जो भी फैसला होता है उसके खिलाफ वह रहम की अपील आर्मी चीफ़ जनरल कमर जावेद बाजवा और पाकिस्तान के राष्ट्रपति ममनून हुसैन को कर सकते हैं.
तो फिलहाल उन्हें फौरन सजा दिए जाने की संभावना नहीं है लेकिन उनके बचने की संभावना भी बहुत कम है.
भारत-पाक रिश्ते
अगर उनकी सजा पर जल्दी तामील नहीं भी की गई तो उन्हें जेल में कई साल रहना पड़ सकता है और ये बात निश्चित है.
कुलभूषण के बारे में एक बात ये भी चल रही है कि क्या किसी समझौते के तहत उसे भारत के हवाले किया जा सकता है? इसकी भी संभावना बहुत कम दिखाई दे रही है.
ऐसा क्या है जो भारत पाकिस्तान को कुलभूषण के बदले में देने की पेशकश कर सकता है, ऐसा कुछ भी साफ नहीं है.
एक पूर्व पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी की नेपाल में पिछले दिनों गुमशुदगी को इससे जोड़ने की कोशिश की जा रही है लेकिन इस बाबत कोई ठोस जानकारी हासिल नहीं है.
भारतीय नौसेना के अधिकारी कुलभूषण जाधव के साथ पाकिस्तान और भारत के संबंध भी निकट भविष्य में सुधार की कोई उम्मीद नहीं दिखती.
एक बार फिर दोनों देशों के संबंध दांव पर लगे हुए हैं.
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