कांग्रेस के लिए अलग रणनीति लेकर आए हैं प्रशांत

राहुल गांधी

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    • Author, शिवम विज
    • पदनाम, वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए

उत्तर प्रदेश में अभी कांग्रेस का चुनावी अभियान शुरू ही होने वाला है कि उससे पहले ही कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कांग्रेस के लिए अलग तरह की चीजें करनी शुरू कर दी हैं.

कांग्रेस लंबे समय से मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री के नाम की घोषणा करने के ख़िलाफ़ रही है. कांग्रेस कहती रही है कि भारत एक संसदीय लोकतंत्र है और जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधि ही मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री के नाम का फ़ैसला करते हैं.

व्यवहार में यह होता रहा है कि अब तक पार्टी का हाईकमान चुनाव के बाद मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा करती रही है लेकिन चुनाव से पहले नाम की घोषणा नहीं करने का मतलब यह होता था कि पार्टी के अंदर सभी धड़ों को चुनाव के वक्त एकजुट रखा जाए.

मुख्यमंत्री पद के लिए अमरिंदर सिंह की उम्मीदवारी राहुल गांधी से करीबी होने के कारण पहले से तय थी लेकिन उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में पहले से मुख्यमंत्री के उम्मीदवार की घोषणा करना एक अप्रत्याशित कदम है.

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अपने स्टैंड से यू टर्न लेना कांग्रेस के लिए इतना आसान नहीं था लेकिन यह साफ़ होता जा रहा है कि मोदी के इस तर्ज पर सत्ता में आने के बाद भारतीय राजनीति में यह प्रवृति बढ़ेगी.

पार्टी के अंदर टिकट के लिए धड़ों के बीच लड़ाई और लाबिंग के कारण कांग्रेस सबसे आखिरी में अपने टिकटों की घोषणा और चुनावी प्रचार अभियान शुरू करता था.

मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में शीला दीक्षित के नाम की घोषणा करना ही सिर्फ एक अचंभे वाली बात नहीं है बल्कि चुनाव से छह महीने पहले यह करना और भी अंचभित करने वाली बात है.

इस पर कोई बहस नहीं कर सकता कि इस फ़ैसले से उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की किस्मत बदलेगी लेकिन इस बात में कोई संदेह नहीं कि इससे भारतीय जनता पार्टी के ऊपर मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के नाम की घोषणा करने का दबाव पड़ा है.

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उत्तर प्रदेश में बीजेपी उधेड़-बुन में है जबकि कांग्रेस ने अपना काम करना शुरू कर दिया है. बीजेपी के नए प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या ने पार्टी के अंदर मचे घमासान को लेकर पार्टी कार्यकारिणी की बैठक दो दिन पहले वापस बुला लिया.

वे अप्रैल से अपनी नई टीम की घोषणा करने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं.

कांग्रेस उत्तर प्रदेश में इतनी ख़राब हालत में थी कि पार्टी नेताओं ने शुरुआती संदेह के बाद प्रशांत किशोर के साथ सहयोग करना शुरु कर दिया. लेकिन कोई भी पार्टी कांग्रेस जितनी गुटबाज़ी की शिकार नहीं है.

अगर पार्टी उत्तर प्रदेश में और पंजाब में महासचिवों को नहीं बदलती तो इस्तीफ़ा देने की धमकी के बाद प्रशांत किशोर महासचिव के तौर पर गुलाम नबी आज़ाद और अध्यक्ष के रूप में राज बब्बर को अपनी टीम में जोड़ने में कामयाब रहे हैं.

राज बब्बर

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उत्तर प्रदेश में जो भी नए नामों की घोषणा हुई हैं वे उत्तर प्रदेश में किसी भी धड़े से ताल्लुकात नहीं रखते हैं.

प्रशांत किशोर ने गुटबाजी को पार्टी की सबसे बड़ी समस्या के रूप में पहचानने के बाद इसके समाधान के तौर पर नेताओं को जिम्मेवारियां दी हैं.

जो लोग टिकट और नेतृत्वकारी भूमिका पाना चाहते थे उन्हें विशेत तौर पर कुछ-न-कुछ जिम्मेवारियां दी गई हैं और प्रशांत किशोर की टीम उनके काम पर नज़र रखे हुए है.

यह 2014 में नरेंद्र मोदी और 2015 में नीतीश कुमार के लिए अपनाए गए रणनीति से अलग है. ब्रांड गांधी इतिहास में अपने सबसे ख़राब दौर से गुजर रहा है और कांग्रेस उधेड़-बुन में लगी हुई है.

ऐसे हालत में प्रशांत किशोर को कांग्रेस को अच्छा करते हुए दिखाना है ताकि नतीजतन ब्रांड गांधी एक बार फिर से अपने रंग में आ सकें.

टिकट की चाहत रखन वालों से बूथ स्तर पर उनकी ताकत और उनके समर्थकों की तदाद के बारे में पूछने से पार्टी संगठन को फिर से खड़ा करने में मदद मिल रही है.

कैप्टन अमरिंदर सिंह

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आईपीएसी की टीम इन नामों की पुष्टि करती है और इन समर्थकों का इस्तेमाल चुनाव अभियान में कैडर के तौर पर किया जाएगा.

इस तरीके से पार्टी का संगठन ज़मीनी स्तर पर मज़बूत हो सकता है जहां गांवों में अक्सर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को ढूढ़ना तक मुश्किल होता है.

समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के पास अपने समर्पित कार्यकर्ता हैं जो कि यादव और दलित समाज से आते हैं.

बीजेपी को ऐसे मज़बूत कार्यकर्ताओं की ज़रूरत नहीं है क्योंकि उनके पास राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के कार्यकर्ता होते हैं.

कांग्रेस के अंदर गुटबाजी से निपटने के लिए प्रशांत किशोर ने एक और रास्ता खोज निकाला है. वे पार्टी के अंदर दो धड़ो के बीच खुद को एक मध्यस्थ के तौर पर पेश कर रहे हैं.

उन्होंने कुछ हद तक पंजाब में पार्टी के असंतुष्टों से पार पाने में सफलता हासिल की है.

उन्होंने एक तरफ अंसतुष्टों के लिए कैप्टन अमरिंदर के साथ मध्यस्था करने की कोशिश की तो वहीं कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए वे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के साथ मध्यस्थ बने.

प्रियंका गांधी हमेशा से सक्रिय राजनीति में कदम रखना चाहती थी लेकिन प्रशांत किशोर ने हाईकमान को इस बार उन्हें उत्तर प्रदेश के चुनाव में लाने के लिए राजी कर लिया है.

प्रियंका गांधी

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अब उत्तर प्रदेश के इस चतुर्कोणीय चुनाव में प्रियंका गांधी और शीला दीक्षित की स्थिति देखना दिलचस्प होगा.

पार्टी को फिर से ज़मीन पर खड़ा करने की कोशिशों के साथ ही ये कोशिशें यह संदेश देती है कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में कितनी गंभीर है.

प्रशांत किशोर की टीम इस बात को लेकर अभी भी डरी हुई है कि देर से निर्णय लेने और गुटबाजी के कारण उनके काम पर प्रभाव पड़ सकता है लेकिन पार्टी प्रशांत किशोर को उत्तर प्रदेश और पंजाब में परखने के मूड में है.

प्रशांत किशोर को जो चाहिए वो सब मुहैया कराए जा रहा और बदले में उन्होंने एक ऐसे चुनाव प्रचार अभियान का वादा किया है जो कांग्रेस ने कभी नहीं देखा है.

अगस्त शुरू होते करीब हर हफ़्ते उनकी टीम एक नए मॉड्यूल पर काम करेगी. वे दूसरे तीनों पार्टियों से एजेंडा सेट करने में एक कदम आगे रहने की कोशिश करेगी.

क्या वे कांग्रेस को चौथे नंबर की पार्टी से तीसरे नंबर की पार्टी बनाने में भी कामयाब हो पाएंगे. हो सकता है वे कांग्रेस के काम करने की शैली पर कोई फ़र्क डाल पाए.

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