गौतम बुद्ध को ज्ञान देने वाली बौद्धी माई!

बौद्धी माई, बाभनगामा, रीगा, सीतामढ़ी.

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    • Author, प्रदीप कांत चौधरी
    • पदनाम, पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर, दिल्ली यूनिवर्सिटी

बिहार के गांवों और क़स्बों में स्थानीय देवी-देवता होते हैं जिन्हें लोक देवी-देवता भी कहते हैं. इन देवी-देवताओं में स्थानीय लोगों की अटूट आस्था होती है.

गांव के लोग कोई भी अच्छा काम करने से पहले इन देवताओं की अनुमति और आशीर्वाद लेना ज़रूरी मानते हैं.

बिहार के लोक देवी-देवताओं की इस सिरीज़ के पहले भाग में बरहम बाबा, सिरकट्टी माई और गढ़ी देवी के बारे में बताया गया था. यहां पर ऐसे ही कुछ और देवी-देवाताओं के बारे में बताया जा रहा है.

बिहार के कई हिस्सों में बौद्धी माई की पूजा महज एक पिंड के रूप में होती है. नाम और स्थानीय मौखिक परंपरा बताती है कि यह चंपारण से सीतामढ़ी तक के नेपाल के सीमावर्ती इलाके में बौद्धों की देवी थी.

कहा जाता है कि बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति भी इसी देवी की कृपा से हुई थी. स्थानीय बुज़ुर्ग दावा करते हैं कि कुछ पीढ़ी पहले तक बौद्ध तांत्रिक इस इलाके में उपासना किया करते थे.

मलंग बाबा, सुल्तानपुर के नज़दीक, दरियापुर, सारण.

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पश्चिमी बिहार के कई गांवों में जिन बाबा या मलंग बाबा के स्थान बहुत जाग्रत माने जाते हैं. ये मुस्लिम फकीरों से संबंधित लगते हैं. लेकिन परंपरा का एक ऐसा मिश्रण पैदा हुआ है कि ये हिन्दू-मुसलमान न रह कर सशक्त लोक-देवता हो गए हैं.

जिन बाबा को लाल लंगोट, खड़ाऊं, छड़ी, गांजा, खीर, आदि चढ़ाते हैं और ये इतने लोकप्रिय हैं कि ऐसा कोई दिन नहीं बीतता जब कोई न कोई खीर न चढ़ाता हो.

जिन बाबा, बड़कागांव, हथुआ, गोपालगंज

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मलंग बाबा के स्थान पर पीपल के पेड़ के साथ प्रतीकात्मक मज़ार बना होता है. लोग मज़ार पर चादर चढ़ाते हैं और पीपल के पेड़ में कच्चा धागा बांधते हैं. इन्हें चीनी का बना सिरनी और लड्डू चढ़ा कर खुश किया जाता है.

कालीस्थान, अजाबीनगर, बैकुंठपुर, गोपालगंज

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पश्चिमी बिहार के गांवों में काली की पूजा सात पिंडी के रूप में होती है. ज्यादातर राजपूत बहुल गांवों में बरहम स्थान से ज्यादा महत्व काली स्थान का होता है.

दुर्गास्थान, मुसहर टोली, राय बलवान, कुचाईकोट, गोपालगंज

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कई दलित बस्तियों के अपने अलग कालीस्थान होते हैं, जहां पशुबलि भी होती है. उच्च जातियों के काली स्थान में कई जगह अब धीरे-धीरे बलि का प्रचलन बंद हो रहा है.

भगवती स्थान, झझीहाट, पुपरी, सीतामढ़ी.

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पश्चिमी बिहार में काली के ज्यादातर पिंडी पतले और नुकीले आकार के बनाए जाते हैं, जबकि पूर्व की तरफ जैसे-जैसे बढ़ते जाते हैं ये गोलाकार रूप ग्रहण करने लगते हैं.

चंपारण में पिंडी को चांदी या पीतल से ढंकने का चलन भी देखा जाता है.

(प्रदीप कांत चौधरी बिहार के लोक देवी-देवताओं पर शोध कर रहे हैं.)

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