जो बोले सो निहाल और उस पार सत श्री अकाल

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- Author, वुसअतुल्लाह ख़ान
- पदनाम, पाकिस्तान से बीबीसी हिंदी के लिए
अमरजीत सिंह 2005 में भर्ती हुए और तीन दिन पहले उन्होंने शाम का सूरज डूबते डूबते वाघा अटारी बॉर्डर पर गड़ा गेट ज़ोर से बंद करके झंडा उतारा और बीएसएफ़ के एक जवान की आंखों में आंखें डालकर धम्म से ज़मीन पर एड़ियां बजाईं तो सीमा के आर-पार खड़े सैकड़ों तमाशाईयों ने ज़ोर-ज़ोर से स्वागती तालियां बजाईं.
इस रस्म से पहले अमरजीत सिंह ने बीएसएफ़ के जवानों से भी हाथ मिलाया.
अमरजीत का जन्म ननकाना साहिब में हुआ. बचपन से सपना था कि फ़ौज में जाएं. अमरजीत पाकिस्तानी फ़ौज में दाख़िल होने वाले पहले सिख हैं.
दुनिया के हर फ़ौजी की तरह ही अमरजीत सिंह का भी एक ही जवाब है कि उन्हें अपनी सेना पर नाज़ है और वह वतन की आन पर जान क़ुर्बान के लिए हरदम तैयार हैं.

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मुझे आज तक कोई नहीं बता सका कि वाघा-अटारी बॉर्डर पर ये चलन कब शुरू हुआ कि सुबह गेट तो शांत तरीक़े से बीगल की आवाज़ के साथ खुलेगा, लेकिन शाम को जब यही गेट बंद होगा तो दो चौड़े सीने वाले जवान उस तरफ़ और दो कड़ियल जवान एक दूसरे को ऐसे घूरते हुए गेट बंद करेंगे जैसे अब ये कभी नहीं खुलेगा.
मगर इतनी घूरम-घारी के बाद भी गेट हर सुबह खुलता है. इस गेट ने अब तक दो बड़ी जंगें देखी हैं. ये कई बार बदला भी गया है.
एड़ी बजाने वाले कई जवानों के घुटने भी बेकार हुए. कई बार ये प्रस्ताव भी रखा गया कि सुबह और शाम की इस रस्म में से धरती को एड़ियों से हिलाने का जोखिम हटा दिया जाए ताकि जवानों की सेहत ठीक रहे और धरती मां को भी थोड़ा आराम मिले.

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मगर फिर ये होश वाला प्रस्ताव जोश के एड़ियों तले दबके रह जाता है. मैं जब-जब वाघा अटारी गेट पर झंडा चढ़ाने और उतारने का मंज़र देखने जाता हूं तो एक वाक़या हमेशा याद आ जाता है.
हुआ यूं कि गोल्डन टेंपल से बाहर निकलते ही मैंने एक रिक्शा चालक सरदार को हाथ दिया. उसने पूछा, “कित्थे.”
मैंने कहा- लाहौर. तो सरदार ने कहा, “फ़ौरन पीछे बैठ जाओ. अटारी का गेट बंद होने वाला है. तुम्हें लाहौर उतारकर मैं अपना गुजरावालां भी देखकर वापस आ जाऊंगा.”

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शनिवार को जब मैंने ये ख़बर पढ़ी कि पाकिस्तानी रेंजर्स के अमरजीत सिंह अब वाघा बॉर्डर पर ड्यूटी दे रहे हैं तो ये फ़िज़ूल सा ख़्याल भी मन में आया कि कल ख़ुदा ना करे कि जंग हो जाती है और अमरजीत पाकिस्तान की तरफ़ और कृपाल सिंह भारत की तरफ़ से वतन की आन बचाने के लिए पुर्जा पुर्जा कट मराई कबहू ना छंटाई खेत का ग्रंथी का नारा लगाते हुए एक दूसरे की तरफ़ दौड़ पड़ें तो जीत किसकी होगी?
जो बोले सो निहाल की या सत श्री अकाल की?
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