'माँ-बाप शर्मिंदा न हों, इसलिए घर छोड़ दिया'

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- Author, इमरान क़ुरैशी
- पदनाम, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए
तमिलनाडु की पच्चीस वर्षीय पृथिका यशिनी देश की पहली ट्रांसजेंडर पुलिस सब-इंस्पेक्टर बनने वाली हैं.
पुलिस अफ़सर बनने का उनका ये सपना ही था जिसकी वजह से उन्होंने चार बार अदालत का दरवाज़ा खटखटाया और इस दौरान हताश नहीं हुईं.
अब वो आईपीएस अफ़सर बनना चाहती हैं और अगले साल से उसकी भी परीक्षा देंगी.
तमिलनाडु यूनिफ़ॉर्म्ड सर्विसेज रिक्रूटमेंट बोर्ड (टीएनयूआरबी) ने हर बार उनकी राह में रोड़े अटकाए, लेकिन हर बार पृथिका यशिनी का इरादा और पक्का होता गया.
हर बार उन्होंने मद्रास हाईकोर्ट का दरवाज़ा क्यों खटखटाया?
इस सवाल पर पृथिका ने बीबीसी को बताया, “पुलिस विभाग में काम करने का सपना मुझे यहां तक ले आया.”

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वो कहती हैं, “पहली बाधा थी कि आवेदन में केवल दो श्रेणियां थीं. महिला और पुरुष. चूंकि तीसरा कॉलम नहीं था इसलिए मैंने दूसरे में टिक लगाया.”
समस्या ये थी कि उनके सभी सर्टिफ़िकेट्स में उनके अभिभावकों द्वारा दिया गया नाम के प्रदीप कुमार ही लिखा हुआ था और इसी नाम से उन्होंने कम्प्यूटर एप्लिकेशन में स्नातक किया था.
अदालत ने उन्हें नाम बदलने की इजाज़त दी ताकि उनका आवेदन स्वीकार किया जा सके.
एक बार यह समस्या हल हो गई तो उनसे कहा गया कि वो लिखित परीक्षा में नहीं बैठ सकतीं.
पृथिका कहती हैं, “हम फिर कोर्ट गए और जीते भी.”
इसके बाद शारीरिक परीक्षा की बारी आई जिसमें एथलेटिक्स को भी शामिल किया गया था. इसमें भी उनका प्रदर्शन बढ़िया था बस 100 मीटर की दौड़ में वो 1.1 सेकंड से पिछड़ गईं.
पृथिका के वकील भवानी सुब्बारोयां बताती हैं, “उन्हें इस दौड़ को 17.5 सेकंड में पूरा करना चाहिए था, लेकिन उन्होंने 18.6 सेकंड का समय लिया.”
पृथिका ने फिर अदालत का दरवाज़ा खटखटाया. अदालत ने नहीं सोचा कि 1.1 सेकंड का अधिक समय ले लेने से उनकी भर्ती पर असर पड़ना चाहिए.
अंततः उन्हें चौथी बार कोर्ट जाना पड़ा, ताकि उन्हें साक्षात्कार देने का मौक़ा मिल सके.

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एक पुलिस अफ़सर बनने की प्रेरणा के पीछे आख़िर कौन सी चीज़ उन्हें साहस दे रही थी.
इस पर वो बताती हैं, “मेरी वकील बहुत मददगार रहीं और मेरे दोस्तों ने मुझे काफ़ी प्रोत्साहित किया.”
पृथिका ख़ुद के लिए चिकित्सकीय मदद लेने का साहस तब बटोर पाईं जब वो कॉलेज में पढ़ने लगीं.
बिना मां-बाप जानकारी में वो अस्पताल गईं.
एक बार जब ये पता चल गया कि वो ट्रांसजेंडर हैं, तो उन्होंने घर छोड़ दिया ताकि उनके मां-बाप को शर्मिंदा न होना पड़े.
इसके बाद पुलिस बल में शामिल होने का सपना साकार करने के लिए उन्होंने सेक्स निर्धारित करने वाली एक सर्जरी करवाई.
लेकिन पृथिका का संघर्ष अभी ख़त्म नहीं हुआ है, नियुक्ति पत्र पाने से पहले उन्हें एक बार फिर चिकित्सकीय परीक्षण से होकर गुज़रना है.

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अगर इसमें और दिक़्क़तें आती हैं तो उनकी वकील आगे क्या करेंगी?
भवानी कहती हैं, “इसमें कोई और दिक़्क़त नहीं आनी चाहिए, लेकिन अगर ज़रूरत पड़ी तो हम फिर अदालत जाएंगे.”
इन कोशिशों का जो भी नतीजा निकले, पृथिका अगले साल सिविल सर्विसेज़ की परीक्षा देने के लिए पढ़ाई करने का पक्का इरादा बना चुकी हैं, “अगले साल आईपीएस की परीक्षा देने के लिए पढ़ाई करूंगी.”
पृथिका का यह इरादा उनके सपने को साकार कर सकता है. लेकिन उनके मामले की सुनवाई ने मुख्य न्यायाधीश संजय किशन कौल समेत दो सदस्यों वाली खंडपीठ को ऐसा फ़ैसला देने के लिए मजबूर कर दिया जो आने वाली ट्रांसजेंडर पीढ़ियों के लिए काफ़ी फ़ायदेमंद रहेगा.
जजों ने फ़ैसला दिया कि टीएनयूएसआरबी अपनी अगली भर्तियों में तीसरी श्रेणी को भी शामिल करे.
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