'नीतीश के इस्तीफ़े के बाद ही दिल्ली जाऊंगा'

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- Author, पंकज प्रियदर्शी
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, मोतिहारी से
कृषि मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता राधामोहन सिंह उन केंद्रीय मंत्रियों में शामिल हैं, जो बिहार चुनाव के मद्देनज़र राज्य में कैंप कर रहे हैं.
राधामोहन सिंह पूर्वी चंपारण से भाजपा के सांसद हैं. बीबीसी ने मोतिहारी में उनसे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और आरक्षण समेत कई मुद्दों पर सीधे सवाल पूछे.
पढ़ें राधामोहन सिंह से बातचीत के कुछ अंश.
पीएम मोदी ने चुनाव को प्रतिष्ठा का विषय बनाया है?

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भारतीय जनता पार्टी का छोटे से छोटा कार्यकर्ता चुनाव को चुनौती के रूप में लेता है.
प्रधानमंत्री भी एक कार्यकर्ता हैं. वह प्रधानमंत्री बाद में हैं, पहले एक कार्यकर्ता हैं. मैं कृषि मंत्री बाद में हूं, पहले कार्यकर्ता हूं.
क्या आपकी प्रतिष्ठा दांव पर है?

मैं दिल्ली जाता रहा हूं, कृषि मंत्री का दायित्व निभाने के लिए दस दिन में जाकर बैठक करता हूं, लेकिन पिछले 10 दिन से नहीं गया.
मुख्यमंत्री ने मुझे चुनौती देकर पूछा था कि मैं कहां हूं. तो अब मैं दिल्ली उसी दिन जाऊंगा जिस दिन, आठ तारीख़ को, मुख्यमंत्री इस्तीफ़ा देंगे.
पासवान ने कहा कि आरएसएस प्रमुख का आरक्षण पर बयान गलती थी
किसी भी पार्टी का रुख़ वही होता है जो उसका अध्यक्ष बोलता है या उसका मुखिया बोलता है. प्रधानमंत्री ने कहा, 'मेरी जान चली जाएगी लेकिन आरक्षण पर कोई आंच नहीं आएगी.'

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बिहार के लोग समझ चुके हैं और अब वे पूछ रहे हैं कि नीतीश और लालू धर्म के आधार पर पांच फ़ीसदी आरक्षण की जो बात कहते हैं उसका आधार क्या है?
संविधान की सीमा है 50 फ़ीसदी, इसलिए यह पिछड़ों और दलितों का आरक्षण काटकर देंगे. इसलिए अनुसूचित जाति के लोग, पिछड़े लोग इनके रुख़ का विरोध कर रहे हैं.
लोकसभा की सफलता दोहरा पाएंगे?
डेढ़ साल में जो नरेंद्र मोदी सरकार ने देश के लिए किया है, और बिहार को जो इतना बड़ा पैकेज दिया है उसका असर बिहार के लोगों पर है. लोगों के दिमाग में है कि लालू और नीतीश की सरकार बिहार का भला नहीं कर सकती.

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देश का प्रधानमंत्री राज्य को इतना देना चाहता हो और राज्य का मुख्यमंत्री झगड़ा करता हो, तो देश का कैसे भला होगा? लोग इस बात को समझ चुके हैं इसलिए लोकसभा चुनाव से ज़्यादा समर्थन इस चुनाव में मिल रहा है.
'पाकिस्तान में पटाखे छूटेंगे', ये बयान सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश नहीं?
अमित शाह जो बोलते हैं वह ग़लत नहीं है, ऐसा देखा गया है.

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लेकिन पहले लालू प्रसाद अपने बयान पर बोलें कि गाय और बकरे के मांस में कोई अंतर नहीं है.
उनके बड़े नेता बोले कि हमारे ऋषि-मुनि गाय खाते थे. इसके पीछे उनकी क्या मंशा थी?
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