ऐसी राजनीति स्वीकार करते जेपी?

- Author, पंकज प्रियदर्शी
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, सिताबदियारा
छपरा से क़रीब 35 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश की सीमा से लगा सिताब दियारा. जेपी की जन्मभूमि.
राजनीति के इस दौर में एकाएक जेपी के विरासत का दावा करने वालों की बाढ़ सी आ गई है.
रैलियों में पीएम गर्जना करते हैं, कांग्रेस विरोध की राजनीति करने वाले आज कांग्रेस का दामन क्यों थाम रहे हैं.
तो नीतीश कुमार हों या लालू प्रसाद यादव, जेपी का नाम लेते वे थकते नहीं.

लेकिन सिताब दियारा में एक अजीब सी ख़ामोशी है. जनता को पता है कि जेपी एकाएक क्यों सुर्ख़ियों में आ गए हैं. क्यों एकाएक राजनेता हर बयान में जेपी-जेपी कर रहे हैं.
सिताब दियारा के क्रांति मैदान में कुछ लड़कों से मुलाक़ात हुई, तो वैसी ही प्रतिक्रिया आई, जिसका अंदाज़ा था.
लड़के कहने लगे चुनाव के मौसम में हर कोई एकाएक जेपी को याद करने लगता है, लेकिन काम कोई नहीं करता.
कुछ युवकों ने तो यहाँ तक कहा कि जेपी की विरासत संभालने वाला कोई नहीं है.
दरअसल भूगोल का एक रोचक उदाहरण इस इलाक़े में देखने को मिलता है. सिताब दियारा का एक हिस्सा उत्तर प्रदेश में है, तो दूसरा बिहार में.
चंद्रशेखर ने उत्तर प्रदेश वाले हिस्से को चमका दिया था. जेपी के नाम पर कई संस्थान, शोध संस्थान और संग्रहालय हैं, तो दूसरी ओर बिहार वाले सिताब दियारा में हालत उतनी बेहतर नहीं.

ऐसा नहीं है कि काम नहीं हुआ है. देश के जाने-माने राजनेताओं ने इलाक़े का कई बार दौरा किया है. लेकिन एक कमी आपको साफ़ दिख जाती है.
जब मैं बिहार वाले सिताब दियारा में जेपी की जन्मभूमि पर पहुँचा, तो जेपी के परिवार की एकमात्र सदस्य फुन्नी देवी मुझे वहाँ मिलीं.
वे जेपी के चचेरे भाई की पत्नी हैं.उन्होंने जेपी के जन्मस्थान को संभाल कर रखने की कोशिश की है और वहाँ एक संग्रहालय भी है.
लेकिन घर की जर्जर अवस्था आपको थोड़ा बेचैन करती है.
फुन्नी देवी कहती हैं, "लोगों ने ध्यान नहीं दिया. जेपी की जन्मस्थली तो यही है. यूपी वाले हिस्से में चंद्रशेखर ने काम किया. हम लोगों का घर बहुत बड़ा था. लेकिन नदी के कटाव के कारण घर गिर गया था."

एक बुज़ुर्ग महिला का जेपी की विरासत संभाल कर रखने का द्वंद्व भी खुल कर सामने आया.
वो कहती हैं, "हमसे अब कुछ होता नहीं है. लेकिन जन्मस्थान है तो देखभाल कर रही हूँ. बेटा यहाँ रहने देने से मना करता है. क्योंकि हमसे अब खाना पीना भी नहीं बनता है. अब अकेले रहना ठीक नहीं है."
बहुत पहले जेपी ने कहा था- हमला चाहे जैसा होगा, हाथ हमारा नहीं उठेगा. जेपी के इसी ख़ास रूप को याद किया, कुछ दिनों के लिए उनके सेवक रहे श्रीराम मल्लाह ने.
वो कहते हैं, "जेपी ने पुराने सचिवालय के पास धरना दिया था. मैं उनके साथ कुछ दिन ही रहा हूँ. कुछ लड़के ग्रुप में आए और कहा कि हम लोगों को सेक्रेटेरिएट में आग लगा देना चाहिए. लेकिन जेपी ने उन्हें ख़ूब डाँट लगाई. और कहा कि वो किसकी संपत्ति है. तब लड़कों ने कहा कि आप ठीक कह रहे हैं. वो तो हमारी ही संपत्ति हैं. फिर सभी लड़के चुपचाप बैठ गए."
लेकिन आज जेपी की विरासत का दावा करने वालों में प्रतिक्रियावादी राजनीति कूट-कूट कर भरी है. कोई किसी को शैतान कह रहा है, तो कोई ये कह रहा है कि ये चुनाव अगड़ों और पिछड़ों की लड़ाई है.
जेपी रहे तब भी संघर्ष करते रहे, आज उनके सिद्धांतों की राह भी इतनी आसान नहीं.
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