ये हैं चंदौली के ‘ऑनलाइन शॉपिंग हीरो’

    • Author, शालू यादव
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता, अलवर से

अलवर के चंदौली गांव में 19 साल के मोहम्मद कमरु ख़ान की मोटरसाइकल के खासे चर्चे हैं.

ये शोरूम से ख़रीदी कोई आम बाइक नहीं, बल्कि ऑनलाइन खरीदी गई सेकेंड-हैंड बाइक है.

इस बाइक पर बड़ी शान से पोज़ देते हुए मोहम्मद कमरू ख़ान कहते हैं, "मैंने ये बाइक पिछले साल ओएलएक्स वेबसाइट से ख़रीदी थी. बाज़ार में इस मॉडल की कीमत करीब 50,000 रुपए हैं."

कमरू खान बताते हैं, "चूंकि ये बाइक एक साल पुरानी थी तो इसे बेचने वाले ने मुझे 35,000 में दे दी. इस बाइक की तस्वीरें मुझे भा गईं. ये अच्छे कंडीशन में भी थी. बस फिर मैंने ज़्यादा नहीं सोचा और इसे ख़़रीद लिया."

ओएलएक्स

मोहम्मद कमरु ख़ान को इंटरनेट पर ज़रूरत की चीज़ें ख़रीदने का शौक है
इमेज कैप्शन, मोहम्मद कमरु ख़ान को इंटरनेट पर ज़रूरत की चीज़ें ख़रीदने का शौक है

मोहम्मद कमरू ख़ान के लैपटॉप को देख कर लगता है कि वे उसका खूब ख़्याल रखते हैं.

लैपटॉप के की-बोर्ड पर सफ़ेद पारदर्शी शीट लगी है ताकि उसमें धूल-मिट्टी न जा पाए.

लैपटॉप पर ब्राउज़ करते हुए वो कहते हैं कि उन्होंने इस बाइक को खूब चलाया और अब वे नई बाइक ख़रीदने की सोच रहे हैं.

उन्होंने बताया, " मैं इसे भी ओएलएक्स पर ही बेच दूंगा. कितना आसान है इंटरनेट पर खरीददारों को ढूंढना. और हां नई बाइक भी ऑनलाइन ही खरीदूंगा. "

स्मार्टफोन के फायदे

जब से चंदौली में कम्प्यूटर सेंटर खुला है, तबसे गांव में स्मार्टफ़ोन ख़रीदने वालों की संख्या बढ़ गई है
इमेज कैप्शन, जब से चंदौली में कम्प्यूटर सेंटर खुला है, तबसे गांव में स्मार्टफ़ोन ख़रीदने वालों की संख्या बढ़ गई है

चंदौली गांव में एक साल पहले गिने-चुने लोगों के पास ही स्मार्टफ़ोन था.

लेकिन पिछले साल फ़रवरी में डीईएफ़ का साइबर सेंटर खुलने के बाद लोगों के बीच इंटरनेट के फ़ायदों के बारे में जागरुकता बढ़ी. फिर घर-घर में लोग स्मार्टफ़ोन खरीद इंटरनेट का इस्तेमाल करने लगे.

मोहम्मद कमरु ख़ान का कहना है, " अब तो स्मार्टफ़ोन के बिना ज़िंदगी मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सी लगती है. कभी-कभी जब कई घंटों तक बिजली गुल रहती है और फ़ोन चार्ज नहीं हो पाता, तो मन बेचैन सा हो जाता है."

खेती की प्लानिंग

चंदौली जैसे बहुत कम गांव हैं भारत में जहां एनजीओ द्वारा इंटरनेट पहुंचाया गया है
इमेज कैप्शन, चंदौली जैसे बहुत कम गांव हैं भारत में जहां एनजीओ द्वारा इंटरनेट पहुंचाया गया है

मोहम्मद पॉलीटेक्निक के छात्र हैं लेकिन वे अपने घर में खेती के काम में भी हाथ बंटाते हैं.

उनका परिवार गेहूं, बाजरा, चना और सरसों की खेती करता है. वे मौसम की जानकारी के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल कर अपनी खेती प्लान करते हैं.

कमरु ख़ान कहना है, " न सिर्फ़ मौसम की जानकारी बल्कि नौकरियों के लिए फ़ॉर्म, रेल यात्रा के लिए टिकट और अपनी परीक्षा का परिणाम देखने के लिए मैं अपने लैपटॉप का इस्तेमाल करता हूं. अब हमें इन कामों के लिए अलवर शहर जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती."

मोहम्मद का कहना है कि आज के ज़माने में गांवों को इंटरनेट से जोड़ना बहुत ज़रूरी है
इमेज कैप्शन, मोहम्मद का कहना है कि आज के ज़माने में गांवों को इंटरनेट से जोड़ना बहुत ज़रूरी है

मोहम्मद ने अपने स्मार्टफ़ोन पर फ़ेसबुक, व्हाट्सएप, ट्रू-कॉलर, यू-ट्यूब और न्यूज़-लाइव जैसे तमाम ऐप्स डाउनलोड किए हुए हैं.

गांव क्यों पिछड़ गए?

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘डिजिटल इंडिया’ योजना के बारे में भी इंटरनेट पर ही पढ़ा था.

भारत की आधी से ज़्यादा आबादी ग्रामीण क्षेत्र में रहती है और इंटरनेट से पूरी तरह जुड़ नहीं पाई है. क्या मोहम्मद को लगता है कि हर गांव इंटरनेट से जुड़ पाएंगे?

कमरू जवाब देते हैं, "हमारे गांव आज के युग में सिर्फ़ इसलिए पीछे हैं क्योंकि हमें जानकारी उपलब्ध नहीं है. शहरों को एक क्लिक में ही सब ख़बर मिल जाती है जबकि गांव वालों को अपने अधिकारों तक की जानकारी नहीं है. उम्मीद तो है कि प्रधानमंत्री का भाषण वास्तविकता में बदलेगा."

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