'फ़सल तबाह होने से किसान ख़ुदकुशी नहीं करता'

बेमौसम बारिश से परेशान किसान

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    • Author, विनीत खरे
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह किसानों की ख़दुकुशी की वारदात को ख़राब फ़सल से हुए नुक़सान से जोड़ने से साफ़ इंकार करते हैं.

बीबीसी से हुई बातचीत में उन्होंने कहा कि किसान कभी भी फ़सल ख़राब होने से आत्महत्या नहीं करते. वे इतने कमज़ोर नहीं होते कि आर्थिक नुक़सान न झेल पाएं और अपनी जान दे दें.

'किसान ख़ुदकुशी नहीं करता'

वे कहते हैं, “मैं ख़ुद किसान का बेटा हूं. मैं जानता हूं, किसान कभी ऐसा कर ही नहीं सकता, वह इतना कमज़ोर क़तई नहीं होता.”

बर्बाद फ़सल हाथ में लिए किसान

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बीते दिनों बेमौसम बारिश होने और ओले पड़ने के बाद उत्तर प्रदेश समेत देश की कई जगहों पर किसानों ने आत्महत्या की है.

उत्तर प्रदेश में महज़ 40 दिनों में 42 किसानों ने ख़ुदकुशी कर ली. प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा था कि किसी किसान ने फ़सल ख़राब होने की वजह से अपनी जान नहीं दी है.

तो फिर मौत के क्या कारण?

केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह ने इसी बात को दुहराया है. उनका कहना है कि यदि कुछ किसानों ने आत्महत्या की भी होगी तो उसके दूसरे कारण होंगे.

सिंह किसानों की ख़ुदकुशी को मीडिया का प्रचार क़रार देते हैं. उन्होंने कहा, “किसी किसान की मौत प्राकृतिक कारणों से भी हुई तो मीडिया ने उसे आत्महत्या बता दिया. यह पूरी तरह ग़लत है.”

ग्रामीण विकास मंत्री यह भी साफ़ तौर पर नहीं बताते कि किसानों को ख़राब फ़सल का मुआवज़ा कब तक और कितना मिलेगा.

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उन्होंने कहा, "ख़राब फ़सल से हुए नुक़सान का जायज़ा लेने के लिए एक टीम ने तीन राज्यों का दौरा किया और उसने अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी है. पर कई दूसरी टीमों का काम बाक़ी है. सबकी रिपोर्ट मिलने के बाद केंद्र सरकार पैसे दे देगी."

ज़्यादा मुआवजा, पर रक़म?

सिंह यह कहते हैं कि राज्य सरकार से बात करने के बाद पैसे दिए जाएंगे, जो पहले से 30 प्रतिशत ज़्यादा होंगे. पर वह रक़म कितनी होगी, वो यह नहीं बताते.

केंद्रीय मंत्री इससे इंकार करते हैं कि मोदी सरकार किसानों की अनदेखी कर रही है. वे कहते हैं कि कोई सरकार किसी सूरत में किसानों की अनदेखी कर ही नहीं सकती है.

बर्बाद फ़सल का जायज़ा लेते लोग

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वे कहते हैं कि इसके साथ ही यह भी सच है कि सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान कम हुआ है.

इससे साफ़ है कि अर्थव्यवस्था में किसानों की भूमिका पहले से कम हुई है. वो कहते हैं कि इस स्थिति को सुधारने के लिए उनकी सरकार किसानों की हर मुमकिन मदद करने को तैयार है.

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