बिहार: नौ दिन ख़ूब होगी सियासी उठापटक

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- Author, मनीष शांडिल्य
- पदनाम, बीबीसी हिन्दी डॉट कॉम के लिए
बिहार के राज्यपाल ने मुख्यमंत्री मांझी को 20 फ़रवरी को बहुमत साबित करने को कहा है. साथ ही वह तारीख तय हो गई है जिस दिन मांझी सरकार के भविष्य का फ़ैसला होगा.
ऐसे में अब आने वाले नौ दिनों में मांझी और नीतीश खेमे अपनी-अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए बहुत कुछ करेंगे.
मांझी सरकार के मुखिया भी हैं. ऐसे में वे पर्दे के पीछे होने वाले जोड़-तोड़ के अलावा अपने फ़ैसलों और घोषणाओं के सहारे विधायकों और आम लोगों का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर सकते हैं.
वहीं नीतीश खेमे की पूरी कोशिश रहेगी कि वह अपने समर्थक विधायकों को प्रलोभनों के बीच एकजुट रखे और विरोध के बावजूद राज्यपाल द्वारा मांझी को बहुमत साबित करने के लिए अधिक समय देने के फ़ैसले के बहाने भाजपा को बेनकाब करे.
आक्रामक जदयू

मांझी को उनकी मांग के मुताबिक़ बहुमत साबित करने के लिए काफ़ी समय दिए जाने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ जदयू आक्रामक रवैया अख्तियार कर सकती है.
जदयू और उसके समर्थक दलों का लगातार कहना रहा है कि मांझी सरकार को अधिक समय देने से विधायकों की खरीद-फरोख़्त को बढ़ावा मिलेगा.
वरिष्ठ पत्रकार सुरूर अहमद मानते हैं कि जदयू अब इस लड़ाई को राष्ट्रपति भवन के आंगन से निकालकर सड़कों पर उतार सकती है.
लोक-लुभावन घोषणाएं

सियासी उठापटक के बीच बिहार के मुख्यमंत्री मांझी ने मंगलवार को कैबिनेट की बैठक करके कई लोकप्रिय घोषणाएं की थीं.
बैठक में जहां एक ओर पथ निर्माण विभाग की ठेकेदारी में एससी-एसटी वर्ग से आने वाले आवेदकों को प्राथमिकता देने का फैसला लिया गया, वहीं कैबिनेट ने आर्थिक रूप से कमज़ोर सवर्ण वर्ग को सरकारी नौकरी में आरक्षण देने को तीन सदस्यीय विशेषज्ञ समिति गठित करने का भी फ़ैसला किया.
हिंदुस्तान अख़बार के राजनीतिक संपादक विनोद बंधु मानते हैं कि आने वाले दिनों में मांझी ऐसे कई और फ़ैसले ले सकते हैं जिससे बतौर नेता उनकी स्वीकार्यता बढ़े.
मांझी खेमे की तैयारी
नियम के मुताबिक़ विधानसभा अध्यक्ष के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव आने के बाद वे सदन की अध्यक्षता नहीं कर सकते.

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ऐसे में मांझी खेमे की एक तैयारी यह भी है कि वो वर्तमान अध्यक्ष के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाए.
इस रणनीति पर मांझी खेमा काम भी कर रहा है लेकिन अब तक विधानसभा अध्यक्ष ने यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया है.
इस वजह से मांझी खेमे के एक विधायक रवींद्र राय हंगामा भी कर चुके हैं.
छवि का भरोसा
साथ ही मांझी खेमे की सारी तैयारी विधानसभा में विधायकों का समर्थन हासिल करने की है. उन्हें मांझी की छवि का भरोसा है.
मांझी सरकार में मंत्री नीतीश मिश्रा कहते हैं, ''मांझी ने अपनी सादगी, कार्यशैली और व्यवहार से विधायकों का दिल जीता है और इस कारण विधानसभा के अंदर बड़ी संख्या में जदयू विधायक उनका समर्थन करेंगे.''

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लेकिन यह भरोसा फ़िलहाल नीतीश के समर्थन में जदयू विधायकों की बड़ी संख्या में एकजुटता से टूटता नज़र आ रहा है. विनोद बंधु का मानना है कि जदयू में मचे घमासान से नीतीश कुमार को फ़ायदा ही हुआ है.
वे कहते हैं, ''ऐसी धारणा थी कि नीतीश कुमार के साथ विधायकों की सहानुभूति नहीं है लेकिन लगभग 90 प्रतिशत जदयू विधायकों का जदयू के साथ होना इस धारणा को ग़लत साबित कर रहा है.''
भाजपा विकल्पहीन
नीतीश कुमार, लालू यादव और उनकी पार्टी बिहार में वर्तमान राजनीतिक संकट के लिए सीधे तौर पर भाजपा को जिम्मेदार बताती रही हैं.
जानकारों का भी मानना है कि मांझी और उनके क़रीबियों को भाजपा का अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन रहा है.
दूसरी ओर भाजपा दिल्ली के नतीजों के बाद अब कोई बहुत बड़ा जोखिम नहीं लेना चाहती.
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